राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के धौड़ाई के पास माहराबेड़ा से यात्री बस को रोककर गणतंत्र दिवस के ठीक, एक दिन पहले 25 जनवरी को 5 जवानों तथा एक स्थानीय युवक को मुखबिरी के शक में नक्सली अगवा कर ले गए थे। बाद में युवक को नक्सलियों ने छोड़ दिया। इसके बाद अगवा किए गए जवानों के परिजन, नक्सलियों से लगातार गुहार लगा रहे थे, लेकिन नक्सली अपनी कुछ मांगों पर अड़े रहे। इस बीच मीडिया द्वारा मामले को कव्हरेज दिया जाता रहा। यहां बताना यह आवश्यक है कि जब से जवान अगवा किए गए थे, उसके बाद विपक्ष भी सरकार पर दबाव बनाया हुआ था कि किसी भी तरह से जवानों को छुड़ाया जाए। साथ ही परिजन भी सरकार के समक्ष गुहार लगा रहे थे।
अभी तीन दिनों पूर्व 8 फरवरी को छग के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश से चर्चा हुई, क्योंकि नक्सलियों ने सरकार के समक्ष उनके माध्यम से ही मध्यस्थता कराने अपनी बात पहुंचाई थी। एक बात और है कि स्वामी अग्निवेश ने नक्सली तथा सरकार के बीच, एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहले भी मध्यस्थता की बात कहते रहे हैं। सरकार के चर्चा के बाद स्वामी अग्निवेश, अपने अन्य पांच सदस्यों के साथ 10 फरवरी को सुबह रायपुर पहुंचे और इसके बाद जगदलपुर पहुंचकर मीडिया से चर्चा की। इस तरह पहला दिन बीत गया। दूसरा दिन अर्थात 11 फरवरी की तड़के स्वामी अग्निवेश, दल के साथ निकले और सुबह से शाम तक नारायणपुर क्षेत्र के अबूझमाड़ के जंगल का खाक छानते रहे। इस बीच कई चैनलों से जुड़े पत्रकार भी साथ थे। पहले यह माना जा रहा था कि दोपहर तक अगवा सभी 5 जवान रिहा हो जाएंगे, लेकिन देर शाम तक यह संभव हो पाया और अबूझमाड़ के जंगल में नक्सलियों द्वारा जनअदालत लगाई गई और रिहाई, इस शर्त पर की गई कि जवानों को नौकरी छोड़नी पड़ेगी। इस बीच जवानों से मिलकर उनके परिजनों के आंसू थम नहीं रहे थे और उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
यहां एक बात और है कि जवानों को नक्सलियों द्वारा रिहा किए जाने से मानवता की लाज बच गई, क्योंकि नक्सली अपनी हिंसक वारदातों से लगातार खूनी खेल, खेल रहे हैं। ऐसे में अगुवा किए गए जवानों को रिहा करने से जहां परिजनों में खुशी है, वहीं सरकार ने भी राहत की सांस ली है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह का कहना है कि वे नक्सलियों से पहले भी बातचीत करने की बात कह चुके हैं और वे आगे भी इसके लिए तैयार हैं, बशर्ते नक्सली बात करने राजी तो हों। इधर यहां महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि अगवा जवानों के रिहा के मामले में छग के स्थानीय चैनलों में इस बात की होड़ मची रही कि किसके प्रयास कारगर साबित हुआ है और किसकी मुहिम कामयाब हुई है। प्रादेशिक चैनलों में प्रसारण के दौरान लगातार इस बात का जिक्र किया जाता रहा कि पहली तस्वीर हमारे चैनल पर दिखाए जा रहे हैं और इस तरह पहला श्रेय लेने की कोशिश पूरे समय जारी रही। यह बात भी सामने आई है कि स्वामी अग्निवेश के साथ मीडिया के होने के कारण नक्सली लगातार अपनी जगह बदल रहे थे और यही कारण रहा कि दोपहर में हो जाने वाली रिहाई, देर शाम तक हो पाई। चैनलों द्वारा इस बात की भी दुहाई, खबर देते समय दी जाती रही कि सबसे पहले स्वामी अग्निवेश ने उनसे पहले बात की और अगवा जवानों को छुड़ाने संबंधी खुलासा किया गया।
सवाल यहां यही है कि मीडिया के लिए कव्हरेज तो जरूरी है, लेकिन उन बातों का ख्याल होना भी आवश्यक है, ऐसे नाजुक हालात में श्रेय लेने की होड़ नहीं होनी चाहिए। जवानों के रिहा होने से परिजनों की आंखों से आंसू टपकते रहे और इधर चैनल अपनी मुहिम और प्रयास को कामयाब बताते रहे। इस तरह पहली तस्वीर दिखाने के जद्दोजहद के साथ चैनलों में छाई टीआरपी वार, एक बार फिर छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। छग की जनता किसे श्रेय दे, सरकार, पुलिस, चैनलों या फिर नक्सलियों में अचानक जाग आई मानवता को ?
अभी तीन दिनों पूर्व 8 फरवरी को छग के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश से चर्चा हुई, क्योंकि नक्सलियों ने सरकार के समक्ष उनके माध्यम से ही मध्यस्थता कराने अपनी बात पहुंचाई थी। एक बात और है कि स्वामी अग्निवेश ने नक्सली तथा सरकार के बीच, एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहले भी मध्यस्थता की बात कहते रहे हैं। सरकार के चर्चा के बाद स्वामी अग्निवेश, अपने अन्य पांच सदस्यों के साथ 10 फरवरी को सुबह रायपुर पहुंचे और इसके बाद जगदलपुर पहुंचकर मीडिया से चर्चा की। इस तरह पहला दिन बीत गया। दूसरा दिन अर्थात 11 फरवरी की तड़के स्वामी अग्निवेश, दल के साथ निकले और सुबह से शाम तक नारायणपुर क्षेत्र के अबूझमाड़ के जंगल का खाक छानते रहे। इस बीच कई चैनलों से जुड़े पत्रकार भी साथ थे। पहले यह माना जा रहा था कि दोपहर तक अगवा सभी 5 जवान रिहा हो जाएंगे, लेकिन देर शाम तक यह संभव हो पाया और अबूझमाड़ के जंगल में नक्सलियों द्वारा जनअदालत लगाई गई और रिहाई, इस शर्त पर की गई कि जवानों को नौकरी छोड़नी पड़ेगी। इस बीच जवानों से मिलकर उनके परिजनों के आंसू थम नहीं रहे थे और उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
यहां एक बात और है कि जवानों को नक्सलियों द्वारा रिहा किए जाने से मानवता की लाज बच गई, क्योंकि नक्सली अपनी हिंसक वारदातों से लगातार खूनी खेल, खेल रहे हैं। ऐसे में अगुवा किए गए जवानों को रिहा करने से जहां परिजनों में खुशी है, वहीं सरकार ने भी राहत की सांस ली है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह का कहना है कि वे नक्सलियों से पहले भी बातचीत करने की बात कह चुके हैं और वे आगे भी इसके लिए तैयार हैं, बशर्ते नक्सली बात करने राजी तो हों। इधर यहां महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि अगवा जवानों के रिहा के मामले में छग के स्थानीय चैनलों में इस बात की होड़ मची रही कि किसके प्रयास कारगर साबित हुआ है और किसकी मुहिम कामयाब हुई है। प्रादेशिक चैनलों में प्रसारण के दौरान लगातार इस बात का जिक्र किया जाता रहा कि पहली तस्वीर हमारे चैनल पर दिखाए जा रहे हैं और इस तरह पहला श्रेय लेने की कोशिश पूरे समय जारी रही। यह बात भी सामने आई है कि स्वामी अग्निवेश के साथ मीडिया के होने के कारण नक्सली लगातार अपनी जगह बदल रहे थे और यही कारण रहा कि दोपहर में हो जाने वाली रिहाई, देर शाम तक हो पाई। चैनलों द्वारा इस बात की भी दुहाई, खबर देते समय दी जाती रही कि सबसे पहले स्वामी अग्निवेश ने उनसे पहले बात की और अगवा जवानों को छुड़ाने संबंधी खुलासा किया गया।
सवाल यहां यही है कि मीडिया के लिए कव्हरेज तो जरूरी है, लेकिन उन बातों का ख्याल होना भी आवश्यक है, ऐसे नाजुक हालात में श्रेय लेने की होड़ नहीं होनी चाहिए। जवानों के रिहा होने से परिजनों की आंखों से आंसू टपकते रहे और इधर चैनल अपनी मुहिम और प्रयास को कामयाब बताते रहे। इस तरह पहली तस्वीर दिखाने के जद्दोजहद के साथ चैनलों में छाई टीआरपी वार, एक बार फिर छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। छग की जनता किसे श्रेय दे, सरकार, पुलिस, चैनलों या फिर नक्सलियों में अचानक जाग आई मानवता को ?
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