सोलह कला,श्री जो प्रदान करे वही षोडशी है। ये ऐश्वर्य,धन,पद जो भी चाहिए सभी कुछ प्रदान कर देती है।इनके श्री चक्र को श्रीयंत्र भी कहा जाता है।इनकी साधना से भक्त जो इच्छा करेगा,वह पा ही लेगा।ये त्रिपुरा समस्त भुवन मे सबसे अधिक सुन्दर है।इन्हे जो एक बार देख ले तो दूसरी कोई भी रुप देखने की रुची नही रहती।इनकी पलक कभी नही गिरती है,ये जीव को शिव बना देती है।अभाव क्या है,कर्म क्या है,इनके भक्त क्या जाने,भक्त जैसी भी इच्छा करते है,वह सभी उन्हे प्राप्त हो जाता है।ये सभी की अधिश्वरी है।
श्याम वर्ण मे काली कामाख्या है,वही गौर वर्ण मे राज राजेश्वरी है।सौन्दर्य रुप,श्रृंगार,विलास,स्वास्थ्य सभी कुछ इनके कृपा मात्र से प्राप्त होता है।ये श्री कुल की विद्या है,इनकी पूजा गुरु मार्ग से की जाती है।ये साधक को पूर्ण समर्थ बनाती है,आकर्षण,वशित्व,कवित्व,भौतिक सुख सभी को देने वाली है।
इनकी साधना से सभी भोग भोगते हुये मोक्ष की प्राप्ती होती है।ये परम करुणामयी जीव को उस स्वरुप को प्रकट करती है तो जीव शिव बन अपना स्वरुप देखता है की वह तो मै ही हूँ।ॐ तत्सत् इस रहस्य से परिचित होता है।इनकी पूजा मे श्री बाला त्रिपुरसुन्दरी की भी पूजा की जाती है।इनकी साधना से साधक का कुन्डलिनी शक्ति खुल जाती है।ये श्री माँ है,सारे अभावो को दूर कर भक्त को धन,यश के साथ दिव्यदृष्टि प्रदान करती है।ये चार पायों से युक्त जिनके नीचे ब्रह्मा,विष्णु,रुद्र,ईश्वर पाया बन जिस सिंहासन को अपने मस्तक पर विराजमान किये है उसके ऊपर सदा शिव लेटे हुये है और उनके नाभी से एक कमल जो खिलता हुआ,उसपर ये त्रिपुरा विराजमान है।सैकड़ों पूर्वजन्म के पुण्य प्रभाव और गुरु कृपा से इनका मंत्र मिल पाता है।किसी भी ग्रह,दोष,या कोई भी अशुभ प्रभाव इनके भक्त पर नही हो पाता।श्रीयंत्र की पूजन सभी के वश की बात नही है।किसी भी महाविद्या की साधना मे गुरु,गणेश,भैरव,शिव,योगनी की पूजा अनिवार्य होती है।
इनकी साधना से सभी भोग भोगते हुये मोक्ष की प्राप्ती होती है।ये परम करुणामयी जीव को उस स्वरुप को प्रकट करती है तो जीव शिव बन अपना स्वरुप देखता है की वह तो मै ही हूँ।ॐ तत्सत् इस रहस्य से परिचित होता है।इनकी पूजा मे श्री बाला त्रिपुरसुन्दरी की भी पूजा की जाती है।इनकी साधना से साधक का कुन्डलिनी शक्ति खुल जाती है।ये श्री माँ है,सारे अभावो को दूर कर भक्त को धन,यश के साथ दिव्यदृष्टि प्रदान करती है।ये चार पायों से युक्त जिनके नीचे ब्रह्मा,विष्णु,रुद्र,ईश्वर पाया बन जिस सिंहासन को अपने मस्तक पर विराजमान किये है उसके ऊपर सदा शिव लेटे हुये है और उनके नाभी से एक कमल जो खिलता हुआ,उसपर ये त्रिपुरा विराजमान है।सैकड़ों पूर्वजन्म के पुण्य प्रभाव और गुरु कृपा से इनका मंत्र मिल पाता है।किसी भी ग्रह,दोष,या कोई भी अशुभ प्रभाव इनके भक्त पर नही हो पाता।श्रीयंत्र की पूजन सभी के वश की बात नही है।किसी भी महाविद्या की साधना मे गुरु,गणेश,भैरव,शिव,योगनी की पूजा अनिवार्य होती है।
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