4.2.11

कविता: प्रेम पीड़ा

हृदय है आहत  दग्ध -निश्चल

प्रेम में तुमने किया है छल
यद्यपि मैं नहीं करुँगी अब स्मरण
उन यादों को , पर न बिसारूँ वो क्षण
प्रण था तुम्हारा साथ रहोगे  आमरण
पर ये क्या तुमने बिखेर दिया मेरा कण-कण 

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