रविकुमार बाबुल
जिस तरह वैश्विक परिदृश्य में हर रिश्तों को बाजार बना दिया गया या कहें जिस तरह वह बाजार बन चला है बीते दिनों, वह सेरोगेट मदर को लेकर ही नहीं, प्रेमिका से बने भावनात्मक रिश्ते को भी कटघरे में खड़ा करता है? ठेठ बाजार हो चले इस दौर को क्या कहियेगा? हर कोई अपनी-अपनी पींगे प्यार के नाम पर परवान चढ़ा रहा है या चढ़ रहा है, मसलन भ्रष्टाचारियों को टटोलिये तो वह कानून कह लें या नियम की धज्जियां उड़ाते हुये धन के लालच में भ्र्रष्ट हो चला है या प्रेम करने लगा है? नेता आवाम को बैशाखी बना, सत्ता में रह, कुर्सी से प्रेम के बहाने अय्याशी करते रहने कि खूली छूट चाहने लगा है? कई सवाल खड़े करने के बाबजूद न्यायालय में न्यायधीश का प्रेम इन्साफ देने के साथ महसूसा जा सकता है तो यह भी सच है कि देश में सत्तर फीसदी गरीब आबादी के बावजूद देश के तमाम कॉरपोरेट घरानों को सिर्फ मुनाफे से प्रेम करने की लत लग चुकी है? और अब हथियारों से प्रेम हिंसा का सबब बन चला है तो प्रेम के इसी दौर में देश की आवाम भी इससे अलग कैसे रह सकती है? गांधी की धरती से दूर,गांधी की ही राह पकड़, मिस्र की जिस जनता ने होश्नी मुबारक को गद्दी से उतरवाकर, जिस मुबारक मौके का एहसास दिलाया या दिखलाया है, इससे इतर गांधी के देश में ही मुट्ठी भर राजनेताओं और नौकरशाहों के सामने आज तलक वह पगडंडी तलाशी ही नहीं जा सकी जो हमें मिस्र-सा तो नहीं पर उससे कमतर भी नहीं, समस्याओं से जूझ रहे मसलन बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख, गरीबी और भयादोहन के दौर से मुक्त करवा दे, यानी इन्हीं सबके आसरे ही हम अपने तरीके का प्रेम तलाशना चाहते हैं? जी.....जनाब बहुत मुश्किल है, प्रेम के इस दौर में प्रेम के सहारे प्रेम की उम्मीद जगा लेना वह भी तब, जब हर शख्स का प्रेम अपने-अपने तरीके का है और अपनी-अपनी भाषा है, यानी कर्नाटक या महाराष्ट्र से दिल्ली, पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश तक। समझदार होने या कहें बने रहने के बावजूद इसे समझना बहुत मुश्किल है, जी....वह तो समझ गये हैं, जो समझना चाहते है या जिन्हें समझना चाहिये?जी... जनाब..., इस सियासी ताने-बाने से इतर हम अपने सामाजिक प्रेम को भी तलाशे, जी... सामाजिक तौर पर किस रिश्ते की बात कीजियेगा या रिश्ते में प्रेम की बात कर बैठियेगा। आयुषी के इंसाफ की जिस जंग को आयुषी के माता-पिता लडऩे की बात कर रहे थे, वह ही कटघरे में आ चले है? पंचायत एक ही गोत्र में प्रेम को मान्यता नहीं देती है इसलिये युगल प्रेमी का कत्ल उसके ही घर वाले कर देते हैं? शादी से नाराज एक भाई अपनी सगी बहिन और जीजा का कत्ल कर देता है, यही नहीं रिश्ते में प्रेम की यह तथाकथित बानगी टटोलियेगा परेशां हो चलेगें, इतना ही नहीं रिश्ता और भूख के बीच जब रिश्ते की डोर ढूढिय़ेगा तो वह भी टूटती-सी ही दिखलाई देगी, एक मां अपनी सगी बेटी को बेचती भी दिख जायेगी, खुद का जिस्म बेचने की बात तो आम हो चली है? जी... जनाब इन सबके बीच ही प्रेम दिवस के बहाने आप प्रेम करना और पाना चाहते है, सो आपको रोकेगें हम भी नहीं?जी... पर आपके पास एक सवाल खुद को खुद से पूछने के लिये जरूर छोड़ जायेगें? भूख और मुफलिसी के जिस दौर में मॉल में बिकती महंगी गिफ्टें और होटल का महंगा वैलेन्टाइन कैंडिल डिनर आसान हुआ जाता दिखता है, वह वाकई किस सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा है?आज वैलेन्टाइन-डे दीपावली से बड़ा त्यौहार बन चला है? पांच दिन चलने वाले दीपावली के त्यौहार पर सात दिन चलने वाला वैलेन्टाइन-डे भारी पड़ रहा है? जिस पश्चिमी संस्कृति को कोसते हुये इसका हिंसक विरोध होता है और उसी भव्यता से इसे मनाया भी जा रहा है, के बीच हो सकता है शायद आपने भी यानी 11 फरवरी प्रपोज-डे पर किसी को प्रपोज किया होगा? तमाम लोगों ने तो किया है लेकिन इसी पश्चिमी संस्कृति में 11 फरवरी को ही ग्रैंड मदर अचीवमेंट-डे मनाने का प्रचलन भी है लेकिन हमारी सामाजिक हैसियत और स्वतंत्रता इतनी तो है कि हम 11 फरवरी प्रपोज-डे पर किसी को प्रपोज करें लेकिन इसी दिन 11 फरवरी को ग्रैंड मदर अचीवमेंट-डे के रूप में मनाना नहीं चाहते है, भले ही यह पश्चिमी देशों में प्रपोज-डे जैसा ही शिद्दत से मनाया जाता हो? एम-पी-3, एम-पी-4, और इन्टरनेट के इस दौर में हमें 11 फरवरी प्रपोज-डे क्यूं याद रहता है और कहानी-लोरी सुनाने वाली दादी-नानी नहीं? बीता 11 फरवरी प्रपोज-डे यह सवाल 11 फरवरी ग्रैंड मदर अचीवमेंट-डे को लेकर ही हम सबके सामने छोड़ गया है। इस सवाल का जबाव आप बूझ सके... तो मुझे जरुर बतलाइयेगा, प्रपोज-डे के बहाने प्रेम नहीं उक्त सवाल का जवाब चाहता हूं मैं।
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