किसी पश्चिमी दार्शनिक ने कहा है कि आपकी रुचि राजनीति में हो या नहीं हो;राजनीति की रुचि आपमें हमेशा होती है.तभी तो भारतीय क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ कप्तान और भारतीय क्रिकेट का महाराजा कहलानेवाले सौरव गांगुली को आई.पी.एल. की नीलामी में गन्दी राजनीति का शिकार होना पड़ा.यह वही सौरव हैं जिन्होंने भारतीय टीम पर अजहरुद्दीन के समय लगे मैच फिक्सिंग के आरोपों के बाद टीम के प्रति लोगों के विश्वास को पुनर्जीवित किया.यह वही सौरव हैं जिन्होंने भारतीय टीम के खिलाड़ियों की शारीरिक भाषा को पूरी तरह से बदल कर रख दिया और टीम के खिलाड़ियों को विदेशी बदतमीज खिलाड़ियों से आँखों में आखें डालकर बात करना सिखाया.यह वही सौरव हैं जिन्होंने भारत को विदेशों में भी जीतना सिखाया.वही सौरव जिसके नेतृत्व में खेले गए ४९ टेस्ट मैचों में भारत ने २१ मैच जीते और १४९ एकदिवसीय मैचों में से ७६ जीते;आज बाजार के क्रिकेट के आगे लाचार और अपमानित है.
ऐसा नहीं है कि पहले क्रिकेट का बाजार से कुछ भी लेना-देना नहीं था.पहले भी क्रिकेट का बाजार था और बाजार से लेना-देना था.लेकिन आई.पी.एल. तो क्रिकेट का बाजार है ही नहीं यह तो बाजार का क्रिकेट है.यह ड्रामा है,सर्कस है और ग्लैमर है;केवल नहीं है तो खेल नहीं है.यहाँ जितना खेल बल्ले और गेंद से खेला जा रहा है उससे कही ज्यादा पैसों से खेला जा रहा है.अब जब यह स्पष्ट है कि आई.पी.एल. कोच्ची टीम के प्रमोटरों दिलीप,अरुण और हर्षद मानिक लाल मेहता ने लिखेंस्तें बैंक में अपना काला धन जमा कर रखा है;हम भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को आई.पी.एल. को लेकर किसी भी तरह के भ्रम में पड़ने की जरूरत नहीं है.मित्रों,यह आई.पी.एल. क्रिकेट को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं लाया गया है बल्कि यह इसलिए बनाया और लाया गया है जिससे भारत के शीर्ष पूंजीपति अपने काले धन को सफ़ेद धन में बदल सकें.वस्तुतः यह काले धन को सफ़ेद धन में बदलने की मशीन है.इस विशुद्ध रूप से धनाधारित सर्कस के रिंगमास्टर हैं बी.सी.सी.आई. के कर्ता-धर्ता और केंद्रीय मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य.इनमें से एक शशि थरूर को तो रिश्वत में अपनी पत्नी को कोच्ची टीम में हिस्सेदारी दिलवाने के आरोप में मंत्री पद ही छोड़ना पड़ा.हालांकि कुछ ऐसे ही आरोप शरद पवार पर भी थे लेकिन वे तो ठहरे मोटी चमड़ीवाले सो मंत्रिमंडल में बने हुए हैं और आज भी आई.पी.एल. सहित पूरे भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ता बने हुए हैं.
मित्रों,क्या आप बता सकते हैं कि आई.पी.एल. से भारतीय और विश्व क्रिकेट का कितना भला हुआ है?इस फटाफट क्रिकेट के चलते हमारे खिलाड़ी देश के लिए खेलना भूल रहे हैं.पहले जहाँ भारतीय खिलाड़ियों का दिल देश के लिए धड़कता था अब वही खिलाड़ी सिर्फ पैसों के लिए खेलते हैं.देश के लिए खेलना जहाँ पहले गौरव की बात होती थी आज इन पूंजीपतियों की टीमों में खेलना गर्व की बात है.जहाँ पैसा हो और कम पूँजी में ज्यादा लाभ दिखाकर काला धन को सफ़ेद धन बनाने का स्वर्णिम अवसर हो वहां राजनीति तो होगी ही.भारतीय क्रिकेट के दो दिग्गजों शरद पवार और जगमोहन डालमिया की शत्रुता किसी से छुपी नहीं है.पवार ठहरे शक्तिशाली केंद्रीय मंत्री;उनके सामने डालमिया की क्या बिसात?इसलिए पहले तो डालमिया के प्रिय पात्र रहे गांगुली को नीलामी में किसी पूंजीपति ने नहीं ख़रीदा और बाद में इडेन गार्डेन से विश्व कप की मेजबानी छीन ली गई.
मित्रों,अब आप भी सोंचिये यह कैसा क्रिकेट है जिसमें खिलाड़ी सिर्फ एक खिलाड़ी ही नहीं है बल्कि वह खरीदी-बेची जानेवाली वस्तु भी है,जिंस है.इस नीलामी में सिर्फ खिलाड़ियों का ही दाम नहीं लगता बल्कि इसमें तराजू के पलड़े पर होता है उनके प्रति हमारा विश्वास भी.भारत में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं है बल्कि एक धर्म है और कुछ पूंजीपति हमारी इस धार्मिक आस्था का सौदा करने में लगे हैं.जहाँ तक सौरव के इस सर्कस में होने या नहीं होने का प्रश्न है तो सौरव भले ही इसमें नहीं हों इसमें भाग लेनेवाले कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो देश और दुनिया के क्रिकेट को सिर्फ और सिर्फ सौरव की देन हैं.शाहरुख़ खान या अन्य आई.पी.एल. प्रमोटर चाहे कितना ही रबर क्यों न घिस लें,पवार कितनी भी राजनीति क्यों न कर लें;न तो वे सौरव के क्रिकेट रिकार्ड को कागजों पर से ही मिटा सकते हैं और न ही करोड़ों भारतीय के दिलों से ही.सौरव करोड़ों भारतीयों के दिलों में बसते हैं और बसते रहेंगे.
ऐसा नहीं है कि पहले क्रिकेट का बाजार से कुछ भी लेना-देना नहीं था.पहले भी क्रिकेट का बाजार था और बाजार से लेना-देना था.लेकिन आई.पी.एल. तो क्रिकेट का बाजार है ही नहीं यह तो बाजार का क्रिकेट है.यह ड्रामा है,सर्कस है और ग्लैमर है;केवल नहीं है तो खेल नहीं है.यहाँ जितना खेल बल्ले और गेंद से खेला जा रहा है उससे कही ज्यादा पैसों से खेला जा रहा है.अब जब यह स्पष्ट है कि आई.पी.एल. कोच्ची टीम के प्रमोटरों दिलीप,अरुण और हर्षद मानिक लाल मेहता ने लिखेंस्तें बैंक में अपना काला धन जमा कर रखा है;हम भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को आई.पी.एल. को लेकर किसी भी तरह के भ्रम में पड़ने की जरूरत नहीं है.मित्रों,यह आई.पी.एल. क्रिकेट को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं लाया गया है बल्कि यह इसलिए बनाया और लाया गया है जिससे भारत के शीर्ष पूंजीपति अपने काले धन को सफ़ेद धन में बदल सकें.वस्तुतः यह काले धन को सफ़ेद धन में बदलने की मशीन है.इस विशुद्ध रूप से धनाधारित सर्कस के रिंगमास्टर हैं बी.सी.सी.आई. के कर्ता-धर्ता और केंद्रीय मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य.इनमें से एक शशि थरूर को तो रिश्वत में अपनी पत्नी को कोच्ची टीम में हिस्सेदारी दिलवाने के आरोप में मंत्री पद ही छोड़ना पड़ा.हालांकि कुछ ऐसे ही आरोप शरद पवार पर भी थे लेकिन वे तो ठहरे मोटी चमड़ीवाले सो मंत्रिमंडल में बने हुए हैं और आज भी आई.पी.एल. सहित पूरे भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ता बने हुए हैं.
मित्रों,क्या आप बता सकते हैं कि आई.पी.एल. से भारतीय और विश्व क्रिकेट का कितना भला हुआ है?इस फटाफट क्रिकेट के चलते हमारे खिलाड़ी देश के लिए खेलना भूल रहे हैं.पहले जहाँ भारतीय खिलाड़ियों का दिल देश के लिए धड़कता था अब वही खिलाड़ी सिर्फ पैसों के लिए खेलते हैं.देश के लिए खेलना जहाँ पहले गौरव की बात होती थी आज इन पूंजीपतियों की टीमों में खेलना गर्व की बात है.जहाँ पैसा हो और कम पूँजी में ज्यादा लाभ दिखाकर काला धन को सफ़ेद धन बनाने का स्वर्णिम अवसर हो वहां राजनीति तो होगी ही.भारतीय क्रिकेट के दो दिग्गजों शरद पवार और जगमोहन डालमिया की शत्रुता किसी से छुपी नहीं है.पवार ठहरे शक्तिशाली केंद्रीय मंत्री;उनके सामने डालमिया की क्या बिसात?इसलिए पहले तो डालमिया के प्रिय पात्र रहे गांगुली को नीलामी में किसी पूंजीपति ने नहीं ख़रीदा और बाद में इडेन गार्डेन से विश्व कप की मेजबानी छीन ली गई.
मित्रों,अब आप भी सोंचिये यह कैसा क्रिकेट है जिसमें खिलाड़ी सिर्फ एक खिलाड़ी ही नहीं है बल्कि वह खरीदी-बेची जानेवाली वस्तु भी है,जिंस है.इस नीलामी में सिर्फ खिलाड़ियों का ही दाम नहीं लगता बल्कि इसमें तराजू के पलड़े पर होता है उनके प्रति हमारा विश्वास भी.भारत में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं है बल्कि एक धर्म है और कुछ पूंजीपति हमारी इस धार्मिक आस्था का सौदा करने में लगे हैं.जहाँ तक सौरव के इस सर्कस में होने या नहीं होने का प्रश्न है तो सौरव भले ही इसमें नहीं हों इसमें भाग लेनेवाले कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो देश और दुनिया के क्रिकेट को सिर्फ और सिर्फ सौरव की देन हैं.शाहरुख़ खान या अन्य आई.पी.एल. प्रमोटर चाहे कितना ही रबर क्यों न घिस लें,पवार कितनी भी राजनीति क्यों न कर लें;न तो वे सौरव के क्रिकेट रिकार्ड को कागजों पर से ही मिटा सकते हैं और न ही करोड़ों भारतीय के दिलों से ही.सौरव करोड़ों भारतीयों के दिलों में बसते हैं और बसते रहेंगे.
the name of this blog should be "jalen" or jelousy in english.
ReplyDeleteevery body in govt, neta, officers, are enjoying, and you are writing these blogs , out of jeaolousy.
i am sure, most of the indians are honest, because they did not get chance to be dishonest.
some years ago, and now also, it started in the society that the bride side used to ask the groom side, how much the groom earns in "bribe" "upper ki kamai"
i would be happy if i am wrong.
yours
ashok gupta
delhi