इनका क्या कहना,ये दया की,ममता की पराकाष्ठा है।अपने भक्त,अपने स्वजन के लिए ये क्या नही करती है।जो माया को छिन्न कर जो जीव को अष्टपाश से मुक्त करती है,वही छिन्नमस्ता है।जीव माया से बँधकर नाना प्रकार के कष्ट भोगता है।तंत्र का मंत्र का कोई भीषण प्रयोग करा दिया हो,डाईन,भूतनी लग गया हो,हर तरफ से संकट उपस्थित हो गया हो,ग्रह बाधा या कोई भी दुष्ट प्रभाव हो वह भी इनकी साधना से तत्क्षण दूर हो जाता है।यह लेख यहाँ तक दिनांक ०१।०७।२०१० को रात्री मे लिखा और सोचा बाद मे पूर्ण करूँगा,दो तारीख को व्यस्तता रही,०३।०७।२०१० को न्यूज पेपर मे पढ़ा कि रजरप्पा माता छिन्नमस्ता का मूर्ति खंडित कर माता का आँख और आभूषण दुष्टों ने चोरी कर लिया।इतने बड़े असुर बच नही सकते उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी विनाश को प्राप्त होना है। हे माता तेरी इच्छा के बिना इस सृष्टि मे एक तिनका तक नही हिल सकता परन्तु तुम तो ममता की ऐसी देवी हो की जब तुम्हारी सखी जया,विजया जब भूख से व्याकुल होकर तुम्हे पुकारने लगी की माता बड़ी भूख लगी है तो तुने उनकी पीड़ा से करूणा करके अपना ही सिर धड़ से अलग कर अपने रक्त धारा से स्वयं अपनी और उनकी तीन धाराओं से उनकी भूख मिटाई।
माता के गर्भ मे रक्त से ही शिशु का विकास होता है,तुने तो अपने भक्तों के लिए खुद को बलिदान कर दिया,अब बताओ सृष्टि मे कौन है,जो तेरी जैसी ममतामयी करूणा रखने वाली है।चारों तरफ सब रोते है,तड़पते है कारण सभी माया से वशीभूत है,अज्ञान का पर्दा पड़ा है उस माया को छिन्न कर देती हो ...ओ माँ तुम धन्य हो,तु भक्तों के लिए कितना कष्ट सहती हो,जीव को माया से मुक्त कर देती हो।स्वार्थ,लोलुपता वश लोग साधना कम करते है दिखावा अधिक,पाखंड,भेदभाव बढ़ गया है,साधना क्षेत्र के बिहंगम दुर्लभ प्रयोग कम हो गया है,साधक,सिद्ध,परम भक्त की जब कमी हो जाती है तो माता भी मुख मोड़ लेती है।छिन्नमस्ता का एक भी सिद्ध साधक माता के समीप हो तो क्या मजाल जो ये असुर,दुष्ट आँख उठा कर देख सके।हिन्दु धर्म मे जो पतन हो रहा है उसका कारण साधना क्षेत्र मे एकजुट और अति गंभीर साधक की कमी है।हम जबतक शक्ति के व्यापक विशेष प्रभाव को नही समझेंगे तो क्या होगा।श्री रामकृष्ण को दक्षिणेश्वर से निकाल दिया गया,वामाखेपा को अपमान सहना पड़ा,काशी विश्वनाथ के अवतार राष्ट्र गुरु श्री स्वामी, (दतिया) ने भी अपमान सहा।श्री करपात्री जी,काली साधक गुरु श्री सीताराम जी को भी लोगो का विष पीना पड़ा,परन्तु माता के ये सभी बहुत दुलारे,परम सिद्ध भक्त थे।छिन्नमस्ता को अगर कोई दिल से पुकारे तो वो ममतामयी दौड़ ही पड़ती है,अपना सब कुछ लूटा देती है अपने भक्तों के लिए।मै प्रार्थना पूर्वक यह कहना चाहता हूँ की भारत के सभी तीर्थ स्थल,शक्ति केन्द्र,प्राचीन मंदिर मे विशेष सुरक्षा की जरूरत है साथ ही दुर्लभ साधनायें भेद भाव रहित हर जाति के लोग जो योग्य है वो आगे बढ़े।इस सभी स्थल पर भेद भाव रहित दर्शन कराने की जरूरत है।जब माता ही भेद भाव नही करती तो ये कौन होते है नियम बनाने वाले,इन्हे सिर्फ अनुशासित होकर अपना कार्य करना चाहिए।साधको की गोष्टी,एक दूसरे की सहमति प्रेम पूर्ण ढ़ँग से आगे बढ़ना चाहिए।माता की लीला माँ ही जाने,उनका स्वभाव है अति उग्र परन्तु वह अति ममतामयी,दयामयी करूणा बरसाती रहती है।ये प्रेम की,बलिदान की पराकाष्टा है।ये सभी को देती है किसी को निराश नही करती ये तो अपने रक्त से भी भक्त की भूख मिटाने वाली है।ऐ माँ! इतनी ममता तु ही कर सकती है।कृष्ण ने छिन्नमस्ता साधना के द्वारा ही एक साथ कई रूप प्रकट कर लेते थे।इनकी साधना से पूर्ण संकटो से छूटकारा मिलता है।
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