25.2.11

सफलता चाहिए कि...... ?


सफलता चाहिए कि...... ?
दिनांकः-25/2/2011
किसी भी मनुष्य को अपने जीवन में सफलता पाने का एक सिद्धांत है। आप परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लें या परिस्थितियों के अनुकूल स्वंम बन जाएं। सभी परिस्थितियों में एक जैसा रह कर विचलित न होना सफलता पाने की पहली शर्त है। न जाने हमारे जीवन में कब,  कौन-सी समस्या किस रुप में आ जाए। इसके लिए हमें हमेशा चौंकना और सजग प्रहरी की तरह रहना पड़ता है। जीवन में जिन का तरीके और जिनके मर्यादित रुप से जीवन निर्वाह करने एवं प्रबंधन का एक सूत्र यह है कि यदि आप समाधान का अंग नहीं हैं, तो फिर आप खुद एक समस्या हैं। समाधानकारी चरित्र हमें जीवन तत्वों का सही उपयोग करते हुए व्यक्तित्व विकास की ओर ले जाने की प्रेरणा देता है। ऐसा न हो कि आज सफल हुए, लापरवाही के कारण या किसी अन्य बजह से भविष्य में सफलता आपके जीवन से फिसल जाए। जिस तरह  ताश के खेल में जो अपने पत्तों को छुपाना जानता है उसे ही एक अच्छा खिलाड़ी समझा जाता है। लेकिन जिन्दगी के मामले में यह विपरीत है। छुपाना व्यक्तित्व का एक दोष है। इसके ठीक विपरीत खुलापन एवं उदारता शांति का प्रतीक है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व की पारदर्शिता है। वास्तव में एक मनुष्य का जीवन और व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए जैसे किसी पुस्तकालय की मेज पर पड़ी हुई एक खुली किताब या समाचार पत्र जो चाहे जब भी पड़ ले। दुरुहता एवं छिपाव, से व्यक्ति के अन्दर की सहजता समाप्त हो जाती है। अक्सर यह देखने में आता है कि खुले दिलो-दिमाग के लोग अपनी उन्नति में अपने से जुड़े लोगों को भी समान रुप से सम्मिलित करते हैं। अपने जीवन में खुलापन बनाये रखने से व्यक्ति के अन्दर सत्य का निर्माण होकर हिम्मत एवं साफ सुथरी चीज को पसंन्द करने जैसी व्यक्तित्व का निर्माण होता है। वर्तमान समय में यह देखने को मिल रहा है कि लोग अकारण ही छोटी से छोटी बात पर भी बहुत आसानी से झूठ बोलते रहते हैँ, ऐसे लोगों पर यह यकीन करना बहुत ही कठिन हो जाता है, कि उनके द्वारा कही बातों में से कौन सी सच और कौन झूठ। मेरे समझ से यदि मनुष्य अपने जीवन में झूठ के स्थान पर सच को आधार बना कर चले तो निश्चित रुप से मनुष्य का जीवन निर्भय और दुखः कलेश से मुक्त तो होगा ही साथ ही साथ हम अपने जीवन में निश्चित रुप से सफल भी होंगे।

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