9.2.11

कांटों से सिलसिला सियासत का चल निकलेगा, इक गुलाब भेज रहा हूं ...।


14 फरवरी नजदीक है, यानि अब समाज के तथाकथित उन ठेकेदारों के काम का समय आ चला है, हमारे पूर्वजों द्वारा लहू बहाकर हासिल की गई आजादी के बहाने लोकतंत्र में हमें मिले अधिकारों के बावजूद इस समाज में फैल रहे खुलेपन को अनैतिकता का जामा पहनाकर, यह ठेकेदार चेहरे को काला करने की जुर्ररत जुटाते है और कानून को धता भी बताते है?
इस आजाद मुल्क में 14 फरवरी को जिन युगल जोड़ों को अपनी तालिबानी पहरेदारी में इन तथाकथित समाज के ठेकेदारों द्वारा लिया जाता है, या फिर मेरठ के पार्क में बिगड़ रहे लाडलोंं को जिस तरह पुलिस द्वारा लाठियों से पीट-पीट कर घास पर बिछाया जाता है? निरंकुश हो चली राजनीति और भ्रष्ट हो चले अफसरशाह जिस रास्ते पर चल कर, समाज को बचाये रखने का दंभ रखने की गुस्ताखी करते हैं, तब यह गुस्ताखी खुद इन्हें ही अपने निशाने पर लेकर कई सवाल खड़े कर जवाब मांग बैठती है? मसलन जिन ठेकेदारों को समाज की चिंता 365 दिन में मात्र 14 फरवरी को ही सताती है, उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के विभिन्न प्रान्तों के तमाम शहरों में जिस तरह महिलाओं के साथ घटनाएं घट रही हैं, ऐसे में यह ठेकेदार किस हरम में बैठ कर समाज को सुधारने की रणनीति बनाने की जिद जुटाये बैठे है यह कहना या समझना मुश्किल है?
जी... जनाब क्यूं कि उसी मेरठ की पुलिस जिसके मुखिया लखनऊ में सियासत की तिमादरी करते बैठे है और उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के अधीन अपराधियों पर कार्यवाही भले ही न हो लेकिन उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को अपने ऊपर हुये अपराध से अवगत करवाने का प्रयास करने भर से उस महिला पर अपराध पंजीबद्ध कर लिया जाता है, जी... सरकार सूकून में है? यही वजह है कि अब अफसर काम कम ओर राजनीति ज्यादा करते दिखते हैं या कहें राजनीतिक माहौल बनाने की कुचेष्टा करते है?
तब ऐसे में पार्कों में समाज सुधारने के नाम पर तो लाठियां भांजी जा सकती है, लेकिन प्रदेश में प्रेम पर पहरा बैठाने वाले, वासना शांत करने के लिये किये जाने वाले तमाम अपराधियों को प्रश्रय देते से दिखलाई देते से प्रतीत होते है? इन दिनों बलात्कार का पर्याय बन चुके उत्तरप्रदेश की युवतियों खासकर नाबालिगों के साथ हुये पिछले दिनों यौन अपराधों भारी वृद्धि हुयी है? उत्तर प्रदेश में महिला मुख्यमंत्री ने ही जब महिलाओं की पीड़ा समझने और उन पर हुये अत्याचार पर कार्यवाही करने के बजाये खाकी महकमें को अपनी जूतियां चमकाने में लगा रखा है? जी.....समझा जा सकता है क्या कहानी है? और इस कहानी को कोई दृश्य मिले, इस खातिर कोई आपके हाथों में तूलिका दे दे तब कैसी तस्वीर बनाइयेगा आप या कहें कैसी तस्वीर बनेगी? जी... बहुत मुश्किल है, हां... तस्वीर के बहाने फिल्म तारे जमीं पर में उभरे तमाम प्रश्न जैसे ही सिर्फ प्रश्न वाचक चिन्ह उभरेगें या बनेंगे, आज की सत्ता, सियासत और समाज को लेकर? हां इन्हीं सवालों के बहाने सवाल उन लोगों के चरित्र पर भी उठना चाहिये जो पार्क में बैठकर गपियाते निर्बल युगल को प्रेम का प्रतीक मान, चेहरे पर कालिख पोतने का दुस्साहस तो जुटा बैठते है, पर इसे राजनीतिक हनक में कहें या ठसक में, उत्तर प्रदेश सहित तमाम जगहों पर जिस तरह युवतियों की इज्जत बलात् तार-तार की जाती है, तब यही समाज के जागरूक पहरेदार शांत हो चलते ताकि उनका यह लुकाछिपी का खेल बदस्तूर जारी रहे। सामाजिक चिन्ता से इतर यही चाल-चरित्र उन्हें सियासत के सरमाये में रूतबे का आसमान भी मुहैया करवाता है और रोटी के लिये जमीन भी......।
फिर ऐसे में प्रेम दिवस मनाना हो तो सवाल कई हैं, भ्रष्टाचार, महंगाई, घोटालों की धुन पर सालसा करती राजनीति और गठबंधन की सत्ता पर मौजा ही मौजा भोगती सरकार ऐसा वैलेन्टाइन-डे किस मुल्क में मना पाईयेगा?
हां... इस मुल्क में इतना हक तो है कि हम भी आप के साथ वैलैन्टाइन-डे मना सकें? इन्कार मत कीजिएगा, नंगे-भूखे रहते हुये भी इक गुलाब आपको भेज रहा हूं, कांटों की बात मत कीजियेगा सिलसिला फिर सियासत का चल निकलेगा?

हैप्पी वैलैन्टाइन-डे

रविकुमार बाबुल

0930 2650 741

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