कइसे कहीं की भारत ह....
रामजियावन दास बावला।
शिष्टाचार, सभ्यता, संस्कृति एकदम जहाँ नदारत ह
कैसे कहीं की भारत ह
हरिश्चन्द्र का महानगर बेइमानन क किलकारी
पैसा पर ईमान बिकत ह
उलटा बेट कुदारी
गो हत्या व्यापर हो गइल
हिन्दू शान बघारत ह
कैसे कहीं की भारत ह ।।
ये बोल हैं उत्तर प्रदेश के चंदौली ज़नपद के चकिया तहसील के बियाबान जंगली इलाका में रहने वाले जनकवि या यूँ कह लें भोजपुरी के तुलसी दास की।
इन्हें रामजियावन दास बावला कहते हैं।
आईये हम आपको ले चलते हैं इनके निवास पर .....
गौर से देखिएगा....
बावला जी का खपरैल का माकन।
जी हाँ, इसी घर में रहते हैं बावला जी।
आप भी कहेंगे की क्या बात है जनाब ये कैसे हो सकते है तुलसीदास।
हम आपको बताते हैं ये रामायण लिख रहे हैं भोजपुरी में, तक़रीबन पूरा ही हो जाता अगर प्रसाशनिक दिक्कत में ये न पड़ते।
इनको राजस्व बिभाग ने अपने में उलझा रक्खा है, ये मैं नहीं कहता जनाब, ये खुद बावला जी कहते हैं।
इनको दो बार विश्व भोजपुरी सम्मलेन का अधयक्षता करने को मिला। तत्कालीन राज्यपाल बंगाल वीरेंद्र शाह ने सम्मान भी दिया था। चंदौली महोत्सव में वाराणसी के कोम्मिसोनेर मनोज कुमार जी ने इन्हें सम्मानित किया था....
पुरुस्कार लेते बावला जी।
इनसे मेरी मुलाकात इनके निवास पर हुई। एकदम मस्ताना अंदाज़ में मिले। फक्कड़ स्वभाव। बड़ा मजा आया। एक कविता भी सुना मैंने इनसे। आपको सुनायुं । सुन लीजिये....
बबुआ बोलता ना, के हो देहलस तोहके बनबास
कोने कारंवा बतावा आईला बनवा
कोने-कोने घुमेला भवरवा जैसे मनवा
कवने हो नगरिया में अजोरिया नहीं भावे
दिह्लाये तोहके घरवा से निकास
बबुआ बोलता ना॥
जी हाँ बहुत प्यारे बोल हैं पुरबियों के। ज़रा इसमें रम के तो देखिये।
बावला जी के साथ यह गुस्ताख एम अफसर खान सागर।
ज़रा सोचिये। अवार्ड और पुरस्कार उसी को मिल रहा है जो गणेश परिक्रमा कर रहा है। ऐसे बेचारों का क्या?
जिनका काम लिखना और छपवाने भर पैसा भी नहीं। तभी तो एक सज्जन ने बावला जी की रचना छपवा कर कॉपी राईट अपने नाम करा लिया। फिर भी इनको संतोष है।
यकीं करते होंगे और जेहन में सोचते होंगे की खुद्दारी बड़ी चीज है।
उसको खुद्दारी का क्या पाठ पढाया जाये,
जिसने भीख को पुरुस्कार समझ रक्खा है ।
बावला जी की हस्तलिपि।
फिर भी जिन्दा हैं बावला जी। पर कहीं न कहीं सालता होगा एक दर्द उपेक्क्षा का।
इनके लिए नीरज के चन्द लाइन...
मेरे घर ख़ुशी आती तो कैसे आती
उम्र भर साथ रहा दर्द महाजन की तरह॥
खैर...
बड़ा मज़ा आ रहा भड़ास निकलने में।
शुक्रिया और बधाई दूंगा पडोसी हैं हमारे, अग्रज और पथप्रदर्शक भी हैं।
इनके और मेरे बीच फासला सिर्फ माँ गंगा की सलिल धराओं का है, जिसमे सभी लोग होकर मोक्क्ष पाना चाहते हैं।
फिर बात होगी आपसे।
आप सभी के दुआओं का तलबगार...
एम अफसर खान सागर
धानापुर-चंदौली, उ.प्र
09889807838
badhiya lagal, jankavi log ke baat bhi sunal jaroori ba .
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