एक जमाना था जब बच्चे के पैदा होने के दो या तिन वर्ष बाद उसके हाथ में लकड़ी की पटरी चाक के साथ पकडाई जाती थी जिसके द्वारा बच्चा अपने जिन्दगी की मजबूत लाईनों की सुरुआत करता था जो जिन्दगी में आने वाले अनेको प्रकार के तुफानो से निपटने के लिए इन्शान को मजबूत बनाया करती थी और फिर बाद में नंबर आता था कापी के साथ दावात/स्याही का वो भी लकड़ी के ही बनाये हुए कलम(नरकट के लकड़ी का बनाया हुआ पेन)/स्याही वाले पेन या पेन्सिल का जिसके सहारे बच्चा अपने इरादों को मजबूत करते हुए मंजिल की ओर आगे बढ़ता था! लेकिन शायद आज के बच्चे इनका रूप तो रूप नाम तक नहीं जानते होंगे क्योंकि ठीक इसके विपरीत अब सुरु में ही बच्चो के हाथ में होती है पटरी की जगह कागज या स्लेट और चाक के जगह पर पेन या पेन्सिल!
दरअसल पढाई की सुरुआत करने की ये चीजे अपने बीच से कैसे और कब तथा क्यों गायब हो गयी पता ही नहीं चलता,जरा सोचिये वो पटरी जिसने इस महान देश के साथ-साथ दुनिया को एक से बढ़ कर एक विद्वान दिया आखिर अब कहाँ चली गयी और क्यों? शायद ये किसी को पता नहीं………………………………………कहाँ चला गया वो चाक जो पहले बच्चों के कोमल हाथों की सोभा बढ़ाने के साथ-साथ क्लास रुमो में गुरुओं के हाथो में लेखनी के रूप में रहा करता था आखिर अब कहा चला गया और क्यों? शायद किसी को नहीं पता अब तो गुरु जनों के हाथ में भी अधिकतर चाक के जगह मारकर ही देखने को मिलता है……………………………….नरकट नरकट तो आज भी है लेकिन कहाँ चला गया नरकट का कलम,कहा चले गए नरकट जैसी लकड़ी को कलम का रूप देने वाले,आखिर इस लकड़ी की कलम कहाँ चली गयी जिसने न जाने कितने महान लेखकों को जन्म दिया जो आज भी ससम्मान के साथ याद किये जाते है और जिनके लिखे हुए लाईनों को गर्व के साथ पढ़ कर कुछ सीख मिलती है………………………………………………आखिर कहा चली गयी वो दावात/स्याही जिसके द्वारा रचित लाईने आज भी सुनहरे रूप में चमकती है! आज ये सारी चीजे समाज से लगभग लुप्त हो चुकी है दिखाई तो दिखाई अब कहीं सुनने को भी नहीं मिलती,जो चीजे कभी समाज को एक मजबूत नीव देती थी वो क्यों आज हमारे बीच नहीं है? क्या इन चीजों को आधुनिकता में जगह नहीं मिल सकती शायद आज भी अगर इन चीजों को आधुनिकता के साथ थोड़ी सी जगह दी जाय तो नीव मजबूत करने में एक बार फिर ये पुरानी ब्याव्स्थाएं कारगर साबित हो सकती हैं!
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