14.3.11

आँखों में गेंद

कविता -

           काली ऑंखें

मेरी कालीदह आँखों में गेंद देख
कृष्ण उसमे कूद आये
मैंने  गेंद उन्हें वापस कर दी
मेरी आँखों में
अब वे , एक पाँव खड़े
बांसुरी बजाते हैं 
आँखों की गेंद 
उनकी धुन पर 
नाच रही है | 
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for and on behalf of-
कृते - सुशीला पुरी
उनकी एक कविता के तर्ज़ पर
विनम्र सम्वैदानिक धृष्टता |

1 comment:

  1. डा.मनोज रस्तोगी , मुरादाबाद15/3/11 2:42 AM

    गागर में सागर । बधाई ।
    rastogi.jagranjunction.com

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