कविता -
काली ऑंखें
मेरी कालीदह आँखों में गेंद देख
कृष्ण उसमे कूद आये
मैंने गेंद उन्हें वापस कर दी
मेरी आँखों में
अब वे , एक पाँव खड़े
बांसुरी बजाते हैं
आँखों की गेंद
उनकी धुन पर
नाच रही है |
##########
for and on behalf of-
कृते - सुशीला पुरी
उनकी एक कविता के तर्ज़ पर
विनम्र सम्वैदानिक धृष्टता |
गागर में सागर । बधाई ।
ReplyDeleterastogi.jagranjunction.com