11.3.11

व्यंग्य - बुखार के मौसम में...

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
जिस तरह परीक्षा के मौसम में छात्र, अभी दिमागी बुखार से तप रहे हैं, कुछ ऐसा ही देश-दुनिया में विश्वकप क्रिकेट का खुमारी बुखार छाया हुआ है। इन बुखारों के मौसम में शायद ही कोई बच पा रहा है और हर कोई किसी न किसी तरह से मानसिक तौर पर बुखार की चपेट में है। क्रिकेट की खुमारी तो ऐसी छाई है, जिससे सटोरियों की चल निकली है तथा वे हर गंेद व रन पर मौज कर रहे हैं। हालात यह है कि वे खाईवाली मैदान में नोटों की गड्डी की गरमाहट से तप रहे हैं। बेचारी तो देश की जनता है, जो न तो कुछ बोल सकती है और न ही हुक्मरानों को इनकी फिक्र है ? जनता के भोलेपन तथा सहनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार हो रहे हैं और देश की करोड़ों जनता चुप बैठी है ? फिलहाल आम जनता केवल एक ही बुखार से तप रही है और वो है, महंगाई। क्या करें, गरीबों के हिस्से में जैसे लिखा हुआ है कि कम कमाओ-कम खाओ ? और बदहाली में जीना सीख जाओ।
देश के प्रति समर्पण की भावना हमारी और क्या हो सकती है, कोई कुछ भी करते रहें और हम चुप बैठे रहें, देश लुट रहा है तो लूटने दो ? भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार हो और रोज घपलेबाज व घोटालेबाज पैदा हों। गरीबों को दो जून की रोटी के सिवाय और क्या चाहिए ? छोटा सा पेट भरने के लिए रोजी-मजदूरी ही भाग्य में है। गरीबों के हिस्से में पसीना बहाना ही लिखा है ? नोट कमाना तथा नोटों की गरमी का अहसास, केवल मोटी चमड़ी व बड़े पेट वाले भ्रष्टाचारियों को होता है, तभी तो सीने में नोट लादकर रखने की आदत इन जैसों को ही है। भला, कोई आम व्यक्ति नोटों की गरमाहट सहन कर सकता है ? वह तो बरसों से ऐसे ही गरीबी के बुखार से तप रहा है। जिस बीमारी का न तो इलाज अब तक ढूंढा जा सका है और न ही इस दर्द की कोई दवा तलाशी जा सकी है। हर बार सरकार यही कहती है कि गरीबी खत्म कर दी जाएगी, लेकिन गरीब तो आज भी वहीं हैं, लेकिन भ्रष्टाचारियों का बोलबोला है और दिन-दूना, रात चौगुना कर मालदार भट्ठी के मालिक बन बैठे हैं।
देश के दगाबाज कब जनता की गाढ़ी कमाई हथिया, सफेदपोश नामचीन बनकर गरीबों का खून चूस लेता है और देश भ्रष्टाचार के बुखार में तप रहा है। यह बीमारी संक्रामक होती जा रही है। आने वाला समय और फिर भयावह हो सकता है, क्योंकि गरीबी हटाने की दवा अब तक नहीं खोजी जा सकी है, कुछ ऐसा ही हाल भ्रष्टाचार का भी है। शायद, भ्रष्टाचारी व घपलेबाज भी इस बात को समझ रहे हैं, तभी तो घटिया करतूत से बाज आने का नाम नहीं ले रहे हैं। भ्रष्टाचारी, दीमक की तरह देश को चाट रहे हैं और हम टकटकी लगाए देख रहे हैं। इस तरह आम जनता गरीबी व महंगाई की आग में तप व जल रही हैं। यही तो है देश में बेमौसम बुखार का, न उतरने वाला तपन।

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