4.3.11

जब उस बेचारी पर दो कुत्तों की नजर पड़ी……


सुबह सुबह सूर्य की किरणों की लालिमा जैसे ही छटना सुरु हुई कि वो बिचारी नीचे आने को लालायित थी मानो ऐसा लग रहा था की शायद या तो उसे बहुत जोरों से भूख लगी हो या फिर नीचे आकर सबके बीच वो घूमना फिरना चाहती हो तभी तो काफी देर से बार-बार इधर-उधर घूम कर नीचे कैसे उतरे की योजना बनाने में ही जुटी थी! लेकिन उसकी इस दशा को देख कर इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था कि आखिर क्यों निचे आते आते भी अचानक उसके कदम अपने आप ही रुक जाते थे,एक बार तो वो इस झोक में अपने कदम को नीचे की ओर बढाती कि मानो अब तो उतर कर नीचे अपने कदम रख ही देगी कि अचानक ही रुक कर सहम जाती और वही थोड़ी देर कुछ सोचते हुए फिर ऊपर को वापस चली जाती!

कुछ देर मंथन करने के बाद उसे शायद जब उतरने के सिवाय कोई और उपाय नहीं सुझा तो हिम्मत कर आखिर नीचे धरती पर कदम रख ही दिया, पर डरी हुई बिचारी को क्या पता था कि जिस चीज की वजह से वो नीचे आने से घबरा रही थी वो आज होने ही वाला था…………………. क्योंकि उसके ऊपर निचे होने वाले कार्यक्रम को बहुत देर से कुछ गन्दी निगाहें घूरते हुए कबरेज कर रही थी फिर क्या था जैसे ही उसने अपना पहला कदम आगे बढाया इन शिकारी कुत्तों की नजर उसे और जोर से घूरने लगी! मानो जैसे जंगल में शिकार को देख कर शेर के मुह से लार टपकने लगता है और अपने पुरे शरीर को तोड़ते हुए अंगड़ाई भरने लगता है……………………. जैसी हालत हो चुकी थी इन कुत्तों की, इनकी आँखे बिलकुल लाल हो चुकी थी ये तो बस इसी फ़िराक में लगे हुए थे कि कब वो बिचारी असहाय कुछ कदम और चले कि उस पर झपटा जाय और एक ही बार में उसे अपने चगुल में ऐसे फशाया जाय कि उसके लाख चिल्लाने का भी किसी के ऊपर कोई असर न पड़े!

आखिर वो वक्त आ गया और जैसे ही वो कुछ दूर आगे बढ़ी कि एक बिना कुछ उससे बोले उसकी तरफ दौड़ा और झपटना चाहा कि अचानक ही अपने तरफ इतने तेजी से आ रहे उस कुत्ते को देख अपने आप को बचाने के लिए वो बिचारी भागी…………………………तबतक दुसरे ने सामने से आक्रमण बोल दिया यानि बिचारी के लिए आगे से रास्ता बंद और पीछे ये घूरती लाल-लाल आँखे तरेरते हुए आगे की तरफ लगातार बढ़ी जा रही थी! कुछ ही देर में वो दोनों कुत्ते उसे अपने चंगुल में करने के लिए अपना हर दाव आजमाने लगे और वो बिचारी असहाय हर संभव उनके जाल से बचने कि लडाई लडती रही! नजारा कुछ ऐसा था मानो एक पहलवान और एक कमजोर लेकिन बचने वाले हर दाव के जानकार तथा हिम्मत न हारने वाले के बीच कुश्ती चल रही हो जिसमे जहाँ एक तरफ पहलवान हर शम्भव अपनी ताकत को झोक जीत दर्ज कर लेना चाहता हो वहीँ दूसरी तरफ कमजोर बिचारा उसके हर आक्रमण पर अपनी हिम्मत को मजबूत करते हुए आन्खाड़े में अपने बचाने वाले दाव के बदौलत उसे चित्त करने में प्रयासरत तथा अपने को बचा लेने की हर कोशिश में लगा हो …………………………!

आखिर अंत तक बिचारी हिम्मत नहीं हारी और उन दो कुत्तों से लडती रही तथा अपने शरीर का एक भी अंग उनसे टच नहीं होने दिया कि अचानक ही एक कुत्ता अपने हाथों को बढ़ाते हुए उसके ऊपर इस क़द्र कूदा मानो अब तो उसका बच पाना नामुमकिन लेकिन वो तो शुक्र ऊपर वाले का जिसकी रछा और अपने आत्मबिस्वास के बल पर उसे चकमा देने में कामयाब रही तथा आख़िरकार वार खाली जाने की वजह से उस कुत्ते को धूल चाटना ही पड़ा!

मौका मिलते ही बिना कोई गलती किये थकी हारी असहाय बिचारी अपने जान को बचाते हुए ऐसे भागी की जब तक चकमा खाए हुए ये दोनों कुत्ते उसका पीछा करते और उसे पकड़ पते दुबारा वो पेड़ पर चढ़ गयी! हाथ से आये शिकार के न मिलने की गम में ये कुत्ते उस पेंड के नीचे बहुत देर तक आपस में एक दुसरे पर कमजोरी और गलती का आरोप लगाते हुए भोंकते रहे और उधर वो बिचारी गिलहरी ऊपर बैठ कर भागवान का सुक्रिया अदा करते हुए इन्हें चिढाते हुए काफी देर तक अपनी भाषा में बहुत कुछ कहने में मशगूल रही !

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