पीथमपुर में रंग पंचमी से शुरू होने वाले मेले में भीड़ उमड़ रही है। मेले के पहले दिन भगवान शिव की बारात निकली, जिसमें देश के अनेक अखाड़ों से आए नागा साधु बड़ी संख्या में शामिल हुए और शौर्य प्रदर्शन किए। बाबा कलेश्वर नाथ धाम में दर्शन के लिए भक्त दूर-दूर से पहुंचते हैं। मेले की रौनकता में पहले से जरूर कमी आई है, मगर भगवान कलेश्वरनाथ के प्रति असीम श्रद्धा का ही परिणाम है कि अब भी मेले के माध्यम से एक प्राचीन संस्कृति की पहचान कायम है।
जिला मुख्यालय जांजगीर से 15 किमी दूर ग्राम पीथमपुर में बरसों से मेला लगता आ रहा है। बाबा कलेश्वरनाथ मंदिर में पूजा-पाठ के बाद चांदी की पालकी में भगवान शिव की बारात निकलती है और इस तरह मेला शुरू होता है। रंग-पंचमी के ही दिन पीथमपुर में मेला लगता है और यह सात दिन चलता है। पहले मेला तीन दिन का हुआ करता था। बदलते समय के साथ मेले के स्वरूप में काफी परिवर्तन आया है। मेले का खास आकर्षण देश के अनेक प्रदेशों के अखाड़ों से आए नागा साधु होते हैं। जिनके आशीर्वाद के लिए भी दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं।
पीथमपुर में लगने वाला मेला अंचल का अंतिम मेला होने के कारण लोगों का उत्साह देखने लायक रहता है और आसपास गांवों के अलावा दूसरे जिलों से भी लोगों का हुजूम उमड़ता है। मेले में मनोरंजन के साधन की भी व्यवस्था होती है, इसके चलते शाम को अधिक संख्या में लोगों का जमावड़ा होता है। इस वर्ष पीथमपुर मेले में इलाहाबाद, द्वारिकानाथ, बद्रीनाथ, गुजरात समेत अन्य स्थानों से पहुंचे हैं।
मंदिर के इतिहास पर एक नजर
बाबा कलेश्वरनाथ मंदिर परिसर की दीवार में लगे शिलालेख के मुताबिक मंदिर का निर्माण कार्तिक सुदी 2, संवत 1755 को किया गया था। बाद में मंदिर के जीर्ण-शीर्ण होने के कारण चांपा के जमींदारों ने निर्माण कराया। भगवान शिवजी की बारात की परिपाटी 1930 से शुरू होने की जानकारी मिलती है। इसके बाद से लगातर रंग पंचमी के दिन बारात की परंपरा कायम है और दूर-दूर से आकर नागा साधु शामिल होते हैं। पीथमपुर के कलेश्वरनाथ मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, इसे सपने में देखने के बाद एक परिवार के व्यक्ति ने खोदाई करवाकर निकलवाया था और फिर मंदिर का निर्माण कर प्रतिमा की स्थापना की गई। इस तरह पीथमपुर में शिव की बारात के साथ मेले का सिलसिला अब तक चल रहा है।
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