24.3.11

खूब बिक रहे हैं राजनीतिक पार्टियों के झंडे

विधानसभा चुनाव-2011

शंकर जालान

कोलकाता। राज्य में अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा की कुल 294 सीटों के चुनाव के मद्देनजर विभिन्न राजनीतिक पाटिर्यों के झंडे समेत विभिन्न प्रकार की प्रचार सामग्री की बिक्री बढ़ गई है। झंडे का कारोबार करने वाले लोगों के मुताबिक, वाममार्चा के घटक दलों के अलावा तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य राजनीतिक दलों के झंडे की मांग बढ़ गई है। महानगर समेत विभिन्न जिला स्थित विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार के अलावा पार्टी समर्थक मतदाताओं को रिझाने के लिए काफी संख्या में झंडे लगा रहे हैं। इन दिनों कपड़े के अलावा प्लास्टिक के झंडे की भी अच्छी-खासी मांग है।
महात्मा गांधी रोड में बीते पचास सालों से झंडे का कारोबार करते आ रहे रामदीन यादव ने बताया कि गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के अलावा चुनाव के मौसम में उनका कारोबा खूब चलता है। उन्होंने बताया कि में नगर निगम और नगरपालिका चुनाव की तरह तो विधानसभा चुनाव में झंडे नहीं बिकते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव के दौरान अधिक संख्या में झंडों की बिक्री होते हैं।
उनके मुताबिक गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर महानगर के अलावा अन्य जिलों से आए लोग अपनी-अपनी जरूरत के मुताबिक झंडे खरीद कर ले जाते हैं और तत्काल भुगतान कर देते हैं। लेकिन चुनाव के दौरान हमें खरीदार के इच्छानुसार झंडे पर छपाई करवानी पड़ती है और उधार बेचना पड़ता है।
किस पार्टी के झंडे अधिक बिक रहे हैं? लगभग कितनी फीसद की बचत हो जाती है? क्या झंडों की बिक्री से संतुष्ट हैं? इन सवालों के जवाब में आदित्य कुमार ने बताया कि सटीक तौर पर यह बताना मुश्किल है। आम तौर पर झंडे के व्यापार में 15 से 18 फीसद की बचत होती है, लेकिन चुनाव में कुछ भुगतान डूबने का डर रहता है, इसलिए मुनाफा का अनुपात बढ़ाते हुए 20 से 25 फीसद तक की कमाई कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि आठ-दस साल पहले तक दीवार लेखन और झंडे के जरिए प्रचार किया जाता था, क्योंकि प्रचार का और कोई साधन नहीं था। इन दिनों प्रचार के कई तरीके विकसित हुए हैं, लिहाजा झंडे की बिक्री कुछ प्रभावित हुई है।
इसी तरह एक अन्य व्यापारी ने बताया कि इस बार विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों की ओर से प्रचार के लिए बैनर, पोस्टर, दीवार लेखन और टीवी चैनल के अलावा इंटरनेट का सहारा लिया जा रहा है।
वहीं, विज्ञापन एजंसियों का कहना है कि इस बार के चुनाव में राजनीतिक दल वाले उनकी सेवाएं कम ले रहे हैं। एजंसी वाले इसका कारण चुनाव आयोग की सख्ती बता रहे हैं। विज्ञापन एजंसी चलाने वाले लोगों का कहना है कि राजनीतिक दल इस बार पोस्टर व बैनर पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। उम्मीदवारों का ध्यान विज्ञापन देने के प्रति कम है। विज्ञापन का बाजार तो और अधिक खराब है।
होर्डिंग बनाने वाले एक कारीगर ने बताया कि पहले विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से होर्डिग लगाने के लिए इतने आर्डर मिलते थे कि अस्थाई तौर कोलकाता नगर निगम से होर्डिंग लगाने की अनुमति लेनी पड़ती थी, लेकिन इस बार के चुनाव में ऐसा नहीं हो रहा है।
दूसरी ओर, हर पार्टी का हर प्रत्याशी हर तरीके मतदाताओं के बीच पहुंचने की कोशिश में जुटा है। प्रचार के नए-नए तरीके का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी कड़ी में इन दिनों विभिन्न दलों के उम्मीदवार प्रचार के लिए गुब्बारे, साड़ी, कमीज, टोपी व छाते का सहारा ले रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह वाले छोटे-बडे आकार के रंग-बिरंगे गुब्बारे इन दिनों खूब बिक रहे हैं। पोलक स्ट्रीट में गुब्बारे के कारोबार से जुड़े कई लोगों ने बताया कि इससे पहले चुनावों में गुब्बारे प्रचार का माध्यम नहीं बने थे। पहली बार ऐसा देखा गया है कि उम्मीदवार प्रचार के लिए गुब्बारे का सहारा ले रहे हैं। कुछ उम्मीदवार केवल चुनाव चिन्ह वाले गुब्बारे मांग रहे हैं तो कुछ चुनाव चिन्ह के साथ अपनी फोटो भी छपवा रहे हैं। गुब्बारों के व्यापारियों ने बताया कि साधारण गुब्बारे की तुलना में चुनाव चिन्ह वाले गुब्बारे की कीमत कहीं ज्यादा है, फिर भी लोग खरीद रहे हैं। ठीक, इसी तरह चुनाव चिन्ह वाले छातों, टोपी, साड़ी व कमीज की भी इन दिनों खूब मांग है।

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