भाई साहेब , मैं छपने छपाने योग्य कुछ नहीं लिख पाता ब्लॉग पर बस डायरी जैसा लिखता हूँ उस विषय पर अपने किसी सहायक से nagriknavneet .blogspot पर धर्म- कर्म lebel में दिखवा लें , शायद कुछ मिल जाय वैसे मुझे उम्मीद कम है क्योंकि मैं कहने को तो नास्तिक और रेशनलिस्ट हूँ लेकिन सच्चाई में मैं घनघोर आस्तिक और जड़ अन्धविश्वासी हूँ अपने भी धर्म को मैं जिद के रूप में लेता हूँ जैसे ईश्वर को नहीं मानना तो नहीं मानना हिंसा नहीं करना , जिना [बलात्कार] नहीं करना,सूद नहीं लेना इत्यादि इसमें तर्क बुद्धि लगाने की क्या ज़रूरत ? ऐसे कार्य दृढ़ता से ही पूरे होते हैं , दुलमुलपन से
नहीं ऐसे ही व्यक्तिगत निष्ठां [पागलपन?] से समाज नैतिक बना रहता
है सारी अनैतिकता का स्रोत अति - बुद्धिमत्ता है अब यह बुद्धि हीनता कहाँ दिखती है कि चोरी नहीं करनी तो नहीं करनी , घूस नहीं लेना तो नहीं लेना , स्कैम नहीं करना तो नहीं करना इसमें सोचना -विचारना कैसा ? फल चाहे जो भुगतना पड़े
इसी ताक़त के बल पर मैं किसी भी ढकोसले को सिरे से ही नकार देता हूँ भविष्य फल , हस्तरेखा ,जन्म कुंडली , भूत -प्रेत , गण्डा -तावीज़ , रत्न अंगूठी ,पूजा पाठ , रोली -टीका ,दिशा विचार , टोना -टटका कुछ भी धारण नहीं करता भले ही वे पूर्ण सत्य क्यों न हों और प्रभाव भी डालते हों पर मैं उससे विचलित होने का ख्याल भी मन में नहीं आने देता न कोई तर्क - वितर्क क्योंकि अगर इनके लिए आप ने ज़रा भी किन्तु - परन्तु , कोई संशय का कोना दिमाग में छोड़ा तो ये आपके ऊपर हावी होकर ही रहेंगे
दाढ़ी हर दूसरे दिन बनाता हूँ वह दिन जो भी पड़े पहले सायकिल से चलता था तो रास्ते में जितने नींबू मिर्चे के टोटके पड़े मिलते थे सबको अदबदा कर कुचलता चलता था स्कूटर खरीदा तो तय करके शनीचर के दिन ऐसा नहीं कि उससे एक्सीडेंट नहीं हुए , लेकिन यह भी कोई कैसे कह सकता है कि वे इसलिए हुए क्योंकि वह शनिवार के दिन खरीदा गया था ?
यह सब अभी उम्र की पैन्सठ्वें साल (तक) में तो निभ ही रहा है और आगे न निभने की कोई सम्भावना तो नहीं दिखती Ugra Vichar
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