17.3.11


तुम आग हो

तुम आग हो ,
तुम्हे सुलगना नहीं
जलना हैं
ताप देना हैं
सारे जहाँ को
घुट घुट कर सांस लेना
तुम्हारी प्रकृति नहीं
ऊर्जा हो तुम
युवा
तुम्हारे रक्त की उष्णता
सिर्फ प्रेयसी को उन्मादित करने के लिए नहीं
इसके बहुत से प्रयोजन हैं
राष्ट्र, समाज,
ताक रहे हैं तुम्हारी ओर
कब जलाओगे
भ्रष्टाचार और आतंकवाद की लाश ?

2 comments:

  1. डा.मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद17/3/11 2:07 PM

    प्रेरणादायक रचना , बधाई ।
    rastogi.jagranjunction.com

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  2. yahee to unke hansne khelne ke din hain .

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