29.3.11
युवाओं को किसी दल से कोई खास उम्मीद नहीं
शंकर जालान आगामी विधानसभा चुनाव के सिलसिले में आप क्या सोचते हैं? किस दल या उम्मीदवार को वोट देना पसंद करेंगे? आप की नजर में किस मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियों को वोट मांगना चाहिए? वर्तमान समय में राज्य किस हालात से गुजर रहा है? बढ़ती बेरोजगारी और हिंसा पर आप की क्या राय है? राज्य में तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस के तालमेल का चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ेगा? क्या भाजपा का खाता खुलेगा? क्या कांग्रेस के विक्षुब्ध नेता निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ कर जीत पाएंगे? इन सवालों पर अपनी राय देते हुए महानगर के युवा वर्ग के लोगों ने कहा कि चाहे कोई भी दल क्यों न हो सभी अपने हित के लिए जनता के हित को नजरअंदाज करते हैं, इसलिए किसी भी दल से कोई खास उम्मीद रखना खुद को धोखे में रखने जैसा होगा। ज्यादातर लोगों ने कहा कि विकास, उद्योग व शांति के नाम पर राजनीतिक दलों को वोट मांगना चाहिए। फिलहाल राज्यवासी कुछ पार्टियों के राजनेताओं के झूठे वादे के झांसे में आ रहे हैं, लेकिन राज्य में बढ़ती बेरोजगारी और हिंसा की वारदातें चिंता का विषय है। सिकदरपाड़ा लेन के रहने वाले विनोद सिंह ने कहा कि फिलहाल राज्य बेरोजगारी और हिंसा की समस्या से जूझ रहा है, इसलिए ऐसे दल और ऐसे उम्मीदवार को वोट देना चाहिए जो इन समस्याओं पर अंकुश लगा सके। उन्होंने कहा कि पहली प्राथमिकता स्थिर सरकार की होनी चाहिए और इसके बाद विकास को प्रमुखता देने वाली पार्टी को वोट देना चाहिए। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के विरोध के कारण राज्य से टाटा मोटर्स की नैनो कार का कारखाना नहीं लग पाया, इस वजह से हुगली जिले के लोगों में रोजगार पाने की जो ललक लगी थी वह बुझ गई। जिसका खामियाजा तृणमूल कांग्रेस को इस चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।कालीकृष्ण टैगोर स्ट्रीट के रहने वाले चंद्रशेखर बासोतिया ने कहा कि राज्य की जनता यह भलीभांति जानती है कि कौन सा दल राज्य में विकास चाहता है और कौन सी पार्टी अराजकता फैला रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में चुनाव के क्या नतीजे होंगे और किसकी सरकार होगी यह कहना तो फिलहाल जल्दबाजी होगी। उन्होंने बताया कि जहां तक कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस में गठजोड़ की बात है, तो मुझे नहीं लगता है कि इसका कोई खास प्रभाव पड़ेगा।पाथुरियाघाट स्ट्रीट के निवासी मनोज अग्रवाल ने कहा कि जिस किसी पार्टी की सरकार क्यों न बने और मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहे जिस नेता को क्यों न मिले, उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए हिंसा पर अंकुश लगना और बेरोजगारों के लिए रोजगार उपलब्ध करना। उन्होंने कहा कि हो सकता है तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस में हुए तालमेल के कारण वाममोर्चा की कुछ सीटें घट जाए या फिर जीत का अंतर कम हो जाए, लेकिन सरकार गठन मामले में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।उल्टाडांगा के रहने वाले अशोक झा ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि राज्य में भाजपा का खाता खुल पाएगा। उन्होंने कहा कि मेरी नजर में तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस के तालमेल का भी कोई विशेष लाभ होता नजर नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि लोग को इस बात को ध्यान में रखते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए कि कौन सा उम्मीदवार और कौन सी पार्टी सचमुच राज्य का विकास चाहती है। जहां तक निर्दलीय उम्मीदवारों की बात है उनके लिए जीत की राह आसान नहीं है।
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