16.3.11

मीडिया के दलालों से एक हिंदुस्थानी के कुछ सवाल ......

मित्रों,
भारत के संविधान निर्माण के समय मीडिया को लोकतंत्र का एक स्तम्भ माना गया है... अभी कुछ दिनों पहले एक लोकतंत्रता पर कविता लिखी थी सोचा चलो लोकतंत्र के सबसे उर्जावान और जवान होते स्तम्भ पर कुछ लिखू..अब मैं कोई पत्रकार तो हूँ नहीं एक आम हिन्दुस्तानी हूँ जो की थोड़ी बहुत समसामयिक विषयों पर समझ रखता है..तो कुछ अख़बारों की कतरन इकठ्ठा की..इन्टरनेट पर गया और कुछ पत्रिकाओं में कुछ जाने मने लोगों के लेख पढ़े..आज के कुछ युवा पत्रकारों के ब्लॉग पर गया...कुछ वरिष्ठ लोगो की सम्पादकीय कृतिया पढ़ी..जहाँ तक मैं एक अदना सा हिन्दुस्तानी (जिसकी कीमत आज के लोकतंत्र में भेड़ बकरी से ज्यादा नहीं है) सोच पा रहा हूँ पत्रकारिता निष्पछ निर्भीक और पूर्वाग्रह के बिना होनी चाहिए..मगर आज कल के मुख्य खबरिया चैनल और अख़बार को देखें तो लगता है की जैसे दो मुख्य राजनितिक धाराओं की तरह दो पत्रकारिता की धाराएँ हो गयी है...
और ये पत्रकार कुछ कांग्रेस के भोपू का काम कर रहें है और कुछ भारतीय जनता पार्टी वाले गठबंधन के भोपूं का...उसमें भी एक गठबंधन(कांग्रेस) पैसे से ज्यादा सुदृढ़ दिखता है तो लगभग ८५% पत्रकार व चैनल उसके पिछलग्गू हो गएँ है. मैं यहाँ अपने किसी राजनैतिक विचारधारा को सही नहीं ठहरने आया हूँ..में केवल कुछ उदाहरण देना चाहता हूँ और आप सभी लोगो से और विशेषकर इस बिकी हुए मीडिया के बिके हुए दलाल पत्रकारों से मेरे ५ प्रश्न है शायद इन लोकतंत्र के गद्दारों या इनके किसी समर्थक के पास इसका कोई जबाब हो..

१ कुछ दिन पहले एक नाम का भोपूं बज रहा था हसन अ
ली..उसके ४ बड़े कांग्रेसी मंत्रियों से सम्बन्ध की बात सामने आई थी..
उसपर लगभग २ लाख २५ हजार करोड़ का जुर्माना है भारत सरकार का..पहला तो ये की क्या ये देशद्रोही पत्रकार हसन अली के बारे में नहीं जानते थे पहले..जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भोपू बजाना शुरू किया,क्यूकी उसके बाद कोई रास्ता नहीं था कुछ तो दिखाना होगा नहीं तो इनकी T R P का क्या होगा...
अब जब उसे जमानत मिल गयी क्यूकी इस देश की गद्दार सरकार कोई सबूत नहीं पेश करना चाहती थी तो कहाँ है ये मीडिया..क्यों नहीं किसी पत्रकार ने आवाज उठाई ..क्यों नहीं किसी चैनल ने अपना भोपूं बजाया..क्यूकी शायद २ लाख २५ हजार करोड़ में से १००-२०० करोड़ की हड्डियाँ उनके मुह में भी हसन अली ने डाल दी होंगी.. ये भोंक सकते है बाबा रामदेव पर क्यूकी उनके पास इनके मुह में डालने के लिए हड्डियाँ नहीं है..जब तक रामदेव का योग बिका उसको बेचा अब रामदेव को गाली दे कर ही कमा लें.. कुछ नहीं तो सरकारी योजनाओ के प्रचार का ठेका तो मिल ही जाएगा..

२ बड़े प्रतिष्ठित नाम थे.. प्रभु चावला, वीर सिंघवी और बरखा दत्त(इन मोहतरमा कारगिल में off CAMERA चरित्र चित्रण कुछ लोग पहले जानतें रहें हो)..मगर बाकि के दो लोग भी दलाल निकले..अब ये तो होगा नहीं की खबर नहीं होगी इनके चैनल को.. एक आम हिन्दुस्तानी कैसे मान ले की इस मीडिया के तालाब में बरखा दत्त ,प्रभु चावला जैसी सड़ी मछलियाँ और नहीं होंगे..कुछ माह पहले तक ये भी दूध के धुले थे.. ये किसी गांव के पत्रकार की कहानी नहीं है जिसपर कोई भी आरोप लगा देता है PAID न्यूज़ का...... ये मीडिया के आदर्श थे..हाँ ये तथाकथित पत्रकारिता के दलाल आदर्श कुछ ही सालों में करोडपति कैसे हो गए इसका जबाब शायद नीरा राडिया के टेप में मिल जाए..
कहाँ पत्रकारिता को धर्म मानने वाले आदर्श पत्रकार की परिकल्पना कहाँ ये व्यवसाय बना कर दलाली करने वाले और पाच सितारा संस्कृति के झंडेडार दलाल..

३ जहाँ तक मुझे याद आ रहा है माननीय सोनिया मायनो गाँधी जी १० साल से होंगी सक्रिय राजनीती में..UPA एवं कांग्रेस के सर्वोच्च पद पर हैं..मुझे बताएं इनकी कोई जिम्मेदारी निर्धारित है इस सरकार या कांग्रेस पार्टी या देश की तरफ..मैं नाम नहीं गिनवाऊंगा बच्चा बच्चा अब जानता है घोटालों की लिस्ट को ..
क्या कभी इन पत्रकारिता के नामर्दों नें पिछले १० साल में एक बार भी सोनिया मायनो गाँधी जी या पत्रकारों के युवराज राहुल गाँधी को किसी भी प्रकार किसी भी घोटाले या घटना के लिए जिम्मेदार माना है... ये तो तलवे चाटने में लगे रहते है..
और सुनिए, युवराज, महाराज, महारानी नए नए विशेषण दिए जातें है..अरे दलाल पत्रकारों ये युवराज,महाराज,महारानी तो राजशाही में होती थी लोकतंत्र में क्यों तलवे चाट चाट कर अपनी जीभ को बिदेशी स्वाद दे रहे हो..अगर यही करना है तो किसी कोठे की दलाली कर लो कम से कम पत्रकारिता को बदनाम मत करो..

गोधरा के बाद के दंगे और हिन्दू विरोध इन दलालों का सबसे अच्छा तरीका है नोटों की गड्डियों की हड्डिया बटोरने का: जब देखो तब गोधरा गोधरा गोधरा के दंगे.. जब चुनाव होंगे गोधरा टेप चालू ...मैं गोधरा के समर्थन या विरोध में कुछ नहीं बोल रहा हूँ ये न्यायलय तय करेगा मगर मुझे बताएं लाखों कश्मीरी हिन्दुओं को,जो अपने हे देश में बेघर भटक रहें है, इन गद्दारों ने कभी कवरेज दी है...इस बिकी हुए मीडिया के जयचंदी पत्रकारों ने कभी उनका हाल जानने को सोचा है... नहीं नहीं भाई हिन्दुस्थान में हिन्दू कई करोड़ है कश्मीर में जो वोट बैंक है इन दलालों के बाप का वो तो अफजल और कसब को दामाद बना के रखने से ही बचा हुआ है तो मरने दो कश्मीरी पंडितो को....हिन्दुस्थान का सामान्य हिन्दू तो कुत्ते की तरह मरने के लिए पैदा होता है..

५ अब अंतिम प्रश्न इन दलों नए कभी बताया है आप को स्वामी विवेकानंद के बारे में..राणा प्रताप और सुभाष के बारे में हमारे महर्षि कणाद का बारे में या कभी दी है कवरेज आर्यभट्ट को..इनके आदर्श है सलमान शाहरुख़ और आमिर..कुत्ते की तरह पीछे पीछे लगे रहते है की एक बार कुछ बोले(चाहें गाली ही क्यों न दें) और हम दिन भर उसका टेप चला चला कर चला चला कर TRP की दौड़ में प्रथम आयें .....और कुछ नहीं मिला तो सीधा प्रसारण देखने को मिलता है दो माडलों की लड़ाई का..इससे कौन सा लोकतंत्र का हित हो रहा है मुझे बताएं??

चलिए अब आज की मीडिया के ५ मुख्य समाचारों के साथ आप को छोड़ जाता हूँ..
१ सलमान खान का हुआ ब्रेक अप (अब सलमान क्या करेंगे...अब कटरीना कैसे जियेंगी....इत्यादी, इत्यादि)
२ शिला की जवानी को मुन्नी की बदनामी ने पछाड़ा (अब कैसे करेगी शिला इसका सामना.....)
३ राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी एक साथ सड़क पर टहलते हुए देखे गए( शायद युवराज के शादी की बात हो रही है)
४ राहुल बाबा ने चुनाव प्रचार के दौरान की जोगिंग (ताजी तस्वीरे सिर्फ हमारे चैनल पर)
५ क्या ऐश गर्भवती है,उनका पेट देखकर लगता है की है जी हाँ ये है आज की ब्रेकिंग न्यूज़..

और निचे घूम रही छोटी पट्टी में कुछ समाचार जो शायद कमजोर नजर वाले पढ़ भी न पायें ..

१ आज हिंदी दिवस मनाया गया..
२ कश्मीर में आतंकियों से लड़ते हुए ३ जवान और १ मेजर शहीद
३ संसद में महिला बिल पर चर्चा जारी
४ GDP में बढ़ोतरी की संभवाना
५ भारत ने पृथ्वी मिसाईल का सफल टेस्ट किया..
६ विदर्भ के किसान ने की आत्महत्या


जय हिंद जय भारत
http://ashutoshnathtiwari.blogspot.com/

3 comments:

  1. बडी मेहनत से अच्छी रिपोर्ट बनाई है

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  2. आपने बहुत मेहनत करी इन चालक गधों के विषय में लिखने को, पर अच्छा लेख लिखा है धन्यवाद, लिखते रहें | टिप्पणी के रूप में अपना इसी विषय पर लिखा एक लेख पढ़ें चालक गधे http://www.tensionpoint.blogspot.com

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  3. यह देश ही दलालों का हो चुका है, भाई फिर मीडिया को कोसने से क्या फायदा। आज ईमानदारी की पत्रकारिता से कोई फायदा नहीं रह गया, क्योकि जब जाँच करने वाला ही भ्रस्टाचार के मामले में इनका बाप हो तो किसी कार्यवाही की उम्मीद ही लगाना बेकार है। सच कहू तो मीडिया केवल बेराजगारो को रोजगार बनाने का जरिया बन चुका है। दो वक़्त की रोटी के लिए बेरोजगारों के लिए यह मजबूरी बन चुकी है। शायद यह पंक्तिया आपको पत्रकारों की मजबूरियाँ कर दे।
    " चोरी न करे, फरेब न करे तो क्या करे। रात को चूल्हे पर क्या उसूल पकायेगे॥

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