कई दिनों से एक बात मन में घूम रही थी... आज सोंच कर आया था घर से कि लिख कर ही जाऊंगा चाहे रात के १० बजे तक क्यों न रुकना पड़े... सेक्स एक ऐसा शब्द जिसे अगर हम जुबान पे ले आयें तो शायद हमसे ज्यादा संस्कारहीन व्यक्ति कोई न हो... पर क्या किसी ने कभी सोंचा है कि ये प्राकृतिक और शारीरिक दोनों ही रूप में उतना ही आवश्यक है जितना हमारे शरीर को हवा, पानी और खाना... पर फिर भी हम सेक्स पर बात करने से घबराते है... या शायद यूँ कहूँ तो घबराते नहीं है परन्तु शर्माते है... या अज्ञानता की वजह से हिचकिचाते है और दोस्तों के साथ उल-जलूल वार्तालाप करते है...
दोस्तों के साथ अगर हमारी इस विषय पर बात होती भी है तो अश्लीलता के सिवाय और कुछ नहीं... ऐसे भद्दे शब्द और इशारों का इस्तेमाल होता है जो इसे अशोभनीय और गन्दा बना देता है... मेरे ख़याल से सेक्स दुनिया खाना, पानी और हवा के बाद सबसे जरूरी चीज (जल्दबाजी में कोई और अच्छा शब्द नहीं मिल रहा) है... क्या इसके बिना कोई भी इस दुनिया के विकास (मतलब उत्तपत्ति) की कल्पना कर सकता है... लोग सोंच रहे होंगे आज इसे कौन सा सेक्स का भूत सवार हो गया... खैर आप लोग जो भी सोंचे... कुछ तो यह भी सोंच रहे होंगे कि मैं गया काम से.... पर दोस्तों अभी अभी तो मैं वापस काम पे आया हूँ...
आज हम सिर्फ पैसे कमाने की भूख मैं भागे जा रहे है... कोई ये नहीं सोंचता कि आखिर हमें जरूरत ही कितनी है... करियर चाहिए, पैसा चाहिए, बड़ा घर बड़ी गाडी चाहिए... पर इन सबके बीच किसी ने सोंचा हम अपनी आत्मा, मष्तिष्क और शरीर को क्या दे रहे है... क़ानून ने शादी कि उम्र लड़कियों के लिए १८ और लड़कों के लिए २१ निर्धारित की है... कमोबेश दुनिया के हर देश में यही उम्र सीमा निर्धारित है... क्या किसी ने सोंचा कि ये क्यों नहीं निर्धारित किया गया कि जब तक करियर नहीं होगा, पैसे नहीं होंगे शादी नहीं होगी.... ये हमने खुद निर्धारित कर लिया... फलस्वरूप आज शादी की औसत उम्र लड़कों की ३०-३२ और लड़कियों की २५-२८ हो गयी है... मैं विज्ञान नहीं जानता... चाहे जीव-विज्ञान हो या प्राकृतिक विज्ञान... मैं तो सिर्फ सीधी सी बात जानता हूँ... जिस चीज की जरूरत हो और वो पूरी न की जाये तो समस्याएं उत्तपन होती है... आज जन्मते ही बच्चों में कई सारी बीमारियाँ पैदा होती चली जाती है... बच्चों की बात तो बाद में आती है कई सारी समस्याएं तो माँ को पहले ही होने लगती है... ये सब सिर्फ समय पर जरूरत न पूरी कर पाने के कारण होता है...
घर जाने की जल्दबाजी में मैं शायद अपने विचारों के साथ न्याय नहीं कर पा रहा हूँ... कुछ ऐसे भी शब्द हो सकते है जो आपको ठेष पहुंचा दे या फिर उनकी जगह आपको कोई और शब्द उपयुक्त लगे... अगली बार अपने विचारों और आपकी सोंच को न्याय देने की कोशिश करूँगा और कुछ उपयुक्त शब्दों के साथ इसे परिभाषित करने भी कोशिश करूँगा... तब तक के लिए आप सबों को मेरी तरफ से शुभरात्री....
अभिषेक प्रसाद
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