26.3.11

रोचक नारों से मतदाताओं को लुभाने में जुटे उम्मीदवार

शंकर जालान

कोलकाता । राज्य में अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को अपने पक्ष में वोट देने के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे की खिंचाई कर रही है। व्यंग्य करते नारे और छोटी कविताओं के माध्यम से उम्मीदवार विरोधी दलों की नीतियों को जनविरोघी बताने में जुटे हैं। कोई पार्टी मां, माटी, मानुष और परिवर्तन के अलावा बदल दो जैसे नारे के सहारे मतदाताओं को रिझाने में जुटी है। तो कई दल के उम्मीदवार सुशासन, विकास, स्थिरता के सहारे मतदाताओं के पास जा रहे हैं। हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा के घटक दलों के अलावा तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, भाजपा समेत कई क्षेत्रीय पार्टियां भाग्य अजमा रही हैं और अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला माकपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच देखा जा रहा है। इस दिशा में माकपा और तृणमूल कांग्रेस की तरफ में दीवार लेखन, होर्डिंग, पोस्टर और बैनरों पर रोचक और मतदाताओं को सोचने पर मजबूर करने वाले कई तरह के स्लोगन लिखे गए हैं, लेकिन कांग्रेस और भाजपा स्लोगन के मामले में काफी पीछे हैं।तृणमूल कांग्रेस वाले जहां, माकपा ने बंद किया कारखाना, नौकरी का नहीं ठिकाना। साम्यवाद से समाजवाद, हर कॉमरेड आबाद। इंकलाब का सूखा तालाब, यह कैसा इंकलाब। माकपा की करतूत, दुखी हैं मुटिया-मजदूर के माध्यम से माकपा पर निशाना साध रहे हैं। इसके अलावा सिंगुर में 400 एकड़ जमीन वापस करो।सबार पेटे भात चाई, सबार जन्ने काज चाई। मां-माटी-मानुषेर स्वार्थे तृणमूल के वोट दिन। जमी व शिल्पे स्वार्थे ममता के जयी करून। शिल्प व कृषि समन्वय चाई। (सबके लिए भोजन व काम चाहिए, जमीन व लोगों की भलाई के लिए तृणमूल को वोट दे, जमीन की रक्षा व उद्योग के लिए ममता को विजयी बनाए, समान रूप से चाहिए उद्योग और खेती )। जैसे स्लोगनों का इस्तेमाल भी कर रही है। वहीं माकपा वाले कांग्रेस-तृणमूल का जोट, नहीं जुटा पाएगा वोट। नहीं मूल कांग्रेस, नहीं तृणमूल कांग्रेस। वाम गठबंधन, सबका अभिनंदन। ममता उद्योग चाहती है, बंगाल नहीं गुजरात में। माकपा चाहती विकास और तृणमूल राज्य का सत्यानाश। माकपा की पुकार, रहे न कोई बेरोजगार। जैसे स्लोगन का सहारा ले रहे हैं।कांग्रेस ने अपने पुराने स्लोगन में मालूमी फेरबदल किया। पिछले लोकसभा और कोलकाता नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस का स्लोगन था- आम आदमी का हाथ, कांग्रेस के साथ इस बार कांग्रेस का स्लोगन है आम आदमी के बढ़ते कदम, हर कदम पर भारत बुलंद।संचार माध्यम से प्रचार : इस बार विधानसभा चुनाव में भाग्य अजमा रहे विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार संचार माध्यम यानी सरकारी टेलीविजन व रेडियो स्टेशन का इस्तेमाल हो सकता है। उम्मीदवार इसका अधिक फायदा न उठा सके इस बाबत चुनाव आयोग की ओर से विशेष दिशानिर्देश जारी कएि गए हैं। सूत्रों के मुताबिक राज्य में यह सुविधा दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियो के स्टेशन पर उपवब्ध रहेगी, जहां सभी पार्टियों को समान रूप से प्रचार के लिए 45 मिनट का समय दिया जाएगा। इस बाबत उन्हें एक से पांच मिनट की अवधि वाले टाइम वाउचर दिए जाएंगे। किसी भी राजनीतिक दल को एक सत्र में पंद्रह मिनट से अधिक का समय नहीं दिया जाएगा। चुनाव आयोग प्रसार भारती से विचार-विमर्श कर प्रसारण की तिथि व समय तय करेगा। सभी पार्टियों को प्रसारण संबंधी दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा। उन्हें प्रसारण के लिए रिकार्डेड कैसेट अग्रिम तौर पर जमा करानी होगी। पार्टी अपने खर्च पर स्टूडियो में भी रिकार्डिंग करा सकती है, हालांकि यह प्रसार भारती व दूरदर्शन की ओर से निर्धारित मानकों के अनुरूप होना चाहिए। रिप्रेजेंटेशन आफ पीपुल एक्ट - 1951 के प्रावधानों के तहत नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि से मतदान की तिथि से दो दिन पहले तक सरकारी टेलीविजन व रेडियो के माध्यम से प्रचार किया जा सकता है।प्रचार का नायाब तरीका : चुनाव आचार संहिता से बचने के लिए प्रत्याशियों ने प्रचार का नायाब तरीका निकाला है। वे कला-संस्कृति व पर्यावरण को माध्यम बनाकर लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। रासबिहारी विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी शोभन चटर्जी का कहना है आचार संहिता की वजह से दीवार लेखन, होर्डिंग्स-बैनर हर स्थान पर नहीं लगाए जा सकते, इसलिए संस्कृति को ध्यान में रखकर विभिन्न स्थानों पर चित्रांकन की रणनीति अपनाई जाएगी। भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र के माकपा प्रत्याशी नारायण जैन ने कहा कि वे पर्यावरण सुरक्षा के साथ-साथ जागरुकता अभियान चलाकर लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। दीवारों पर एक वृक्ष दस पुत्र समान जैसे नारे लिखकर उसके नीचे अपना नाम लिखकर प्रचार कर रहे हैं।

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