12.3.11

आवाज का जादू

रविकुमार बाबुल
आवाज दे कर हमें यूं न बुलाओ..., आवाज दे कहां है... जैसे बजाये और सुने जाने वाले गाने की ये पंक्तियां पढ़ कर कुछ और फिल्मी गाने भी आपके स्मृति पटल पर उभर आये होंगे। जी... आवाज का जादू होता ही है कुछ ऐसा है, जो सदैव सर चढ़ कर बोलता है। हां... हर आवाज का अपना जादू होता है, जादू भी ऐसा, जिसे कभी कोई पकड़ ही नहीं पाये, अलबत्ता कभी-कभार किसी-किसी का जादू खुद ही अपने राज उगल देता है, और अपने जादू होने का खुलासा कर जादूगर को ही कटघरे में खड़ा करने से भी नहीं चूकता है? जी... तब ही तो यह जादू कहलाता है, जादू का यह सिलसिला सदियों से बजूद में है, और साइंसदानों की बातों पर एतबार करें तो महंगाई के इस दौर में ख्वाब-सी तैरती रोटी भले ही किसी के हलक में न पहुंच सके, लेकिन कायनात में तैर रही सदियों पुरानी आवाजों को पकड़ा जा सकता है और उसे जानने / समझने की कोशिश भी की जा सकती है, जी.....आवाज का यह एक पहलू है।
जी..., आवाज... तो मुल्क के आम लोगों के हकूक के लिये भी उठती है, और यह बद्किस्मती ही है कि उसी जादू के आसरे दो जून की रोटी की आवाज बुलंद करती अवाम् भूख के अलाव को आज तलक बुझा नहीं पायी है? जी... भला कहीं आवाज से भूख मिटती है? हां... इसी भूख और महंगाई के आसरे भ्रष्टाचार का अलाव तो यकीनन् जलाये रखा जा सकता है तथा सत्ता और रसूख की दबंगई कह लें या फिर गुण्डई के विरोध में उठने वाली हर आवाज को दबाया जा सकता है? जी... आवाज होती ही ऐसी है, प्रजा के सहारे सत्ता सुख भोगती सरकार राजा को ठिकाने लगाने के बाद जब राजकुमारी को घेरने में दिखती-सी दिखी, तब गठबंधन खोलने की आवाज सुनाई दी, पर यह आवाज दब गयी, कहा गया गिले-शिकवे दूर कर लिये गये हैं, जी... 63 सीटों पर सहमति / समझौते के बहाने मुल्क ने शायद राजकुमारी को अभयदान की आवाज भी सुनी हो?
खैर... आवाज दिल्ली से भी मुखर हुयी, बाबा को लेकर नहीं, बल्कि महिलाओं पर बढ़ चले अपराधों पर। ऐसे में सदैव आपके साथ रहने वाली दिल्ली की पुलिस न सिर्फ उठते सवालों छुपती/बचती रही बल्कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित महिलाओं की सुरक्षा मामले में पुलिस को बचाते हुये आम लोगों को ही सामाजिक दायित्व का पाठ पढ़ाते हुये लाचार सी भी दिखलाई दीं। पिछले साल लोकतंत्र के मंदिर के भीतर महिला आरक्षण बिल फाडऩे वाले सांसदों की जमात में शामिल कुछ कांग्रेसी सांसदों (भले ही इन्होनें महिला आरक्षण बिल नहीं फाड़ा था )ने महिलाओं पर बढ़े अत्याचार/जुल्म पर अपनी आवाज मुखर की, आवाज ऐसी कि कांग्रेसी सांसद होने के बावजूद दिल्ली की कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को ही कटघरे में खड़ा किया और यही नहीं कांग्रेसी गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को भी आड़े हाथों ले लिया। इस खेल में भी एक छात्रा की निर्मम हत्या के बाद सड़कों पर उतरे हजारों छात्र-छात्राओं की आवाज का जादू जो बोल चला था?
जी... जादू तब तक जादू रहता है जब तक उसका ट्रिक पकड़ा न जाये या पकड़ में न आये? मिस्टर क्लीन का जादू भी इसी दौर में आदर्श, कॉमन-वेल्थ और 2-जी स्पेक्ट्रम के बहाने अपनी आवाज खोता सा दिखा, और मिस्टर क्लीन की छवि के लिये मनमोहन सिंह तमाम भ्रष्टाचारों के आरोपों से घिरी अपनी सरकार को बचाये रखने की जिद् में ऐसे जुटे कि उनके मिस्टर क्लीन की छवि के दरकने की आवाज भी आहिस्ता-आहिस्ता मुल्क में सुनाई देने लगी।लेकिन हद तो तब हो गयी जब दागी सी.वी.सी. की नियुक्ति की जिम्मेदारी लेती मिस्टर क्लीन की आवाज भी सुनने में आयी, और बे-दाग पृथ्वीराज को महाराष्ट्र सी.एम. की कुर्सी सौंप, उनको ही एस-बैण्ड के घपले-घोटाले के बीच खड़ा करने की आवाज भी सुनायी दी, एक शख्स की दो आवाजें या कहें कई आवाजें। जी... उनकी अपनी यानी महाराष्ट्र के सी.एम. पृथ्वीराज चौहान की भी एक आवाज है, उसे ही सुनाने वह 10 मार्च को दोपहर में मुम्बई से दिल्ली पहुंचे, सुन-सुनाकर रात को ही मुम्बई रवाना भी हो जाते हैं। आवाज सी गति की इस यात्रा में 10 जनपथ ने पी.एम. के बयान से घिरे महाराष्ट्र के सी.एम. पृथ्वीराज चौहान की आवाज को सुना भी और समझा भी, परन्तु कहा किसी ने कुछ नहीं। मिस्टर क्लीन पी.एम., बे-दाग सी.एम. और 10 जनपथ की आवाज यह मुल्क आसानी से सुन भी लेता और समझ भी लेता है, सो अनकहा आपने भी समझ लिया होगा?
जी... आवाज के आसरे बहुत कुछ होता है, उत्तर प्रदेश में सपा के लाठी खाते कार्यकत्र्ताओं की आवाजें जब लोकतंत्र की पगडंडियां खोजने और न्याय की आवाज लगा मिमियाती दिखती हैं, रूतबे में दहाड़मार कर तब मायावती मुख्यमंत्री अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को सु-शासन का पाठ पढ़ा, दबाना भी चाहती है और कुचलना भी। हां... पटरी पर अपना आशियाना सजा-बैठे जाटों के कु-शासन का मुख्यमंत्री मायावती उत्तरप्रदेश में सरेआम समर्थन कर, उसका फैलाव दिल्ली तक चाहती हैं, जी... सुना कुछ आपने? हां, आप सही हैं, इस आवाज में आहट 2012 के विधान सभा चुनाव की है।इस बार एक आवाज दम तोड़ते-तोड़ते बच गयी....। विश्व में सबसे ज्यादा सुने जाने वाले बी.बी.सी. रेडियो की हिन्दी प्रसारण सेवा का 31 मार्च 2011 को आखिरी प्रसारण होना था, लेकिन कहा जा रहा है कि अभी यह आवाज सुनाई देती रहेगी तथा इसकी विश्वसनीयता और रूतबा भी पूर्ववत बरककार रहेगा। जी... आवाज के इस जादू को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है।

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