रविकुमार बाबुल
विकीलीक्स के इस खुलासे के बाद कि यूपीए प्रथम के दौर में मिस्टर क्लीन के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की सरकार न सिर्फ बची रहे बल्कि निर्वाध चलती भी रहे, इसके लिए सांसदों की मण्डी में कुछ मोल भाव किये गये और कुछ माल यानी सांसद खरीद कर सरकार को बचा भी लिया गया। जी... प्रधानमंत्री कह लें या मिस्टर क्लीन जो चाहें के इस हुनर के विकीलीक्स पर सार्वजनिक खुलासे के बाद, अभी तक मंत्रियों और नीतियों को निशाने पर ले रहा विपक्ष, सीधे तौर पर मिस्टरक्लीन को निशाने पर ले चला है, उनसे इस्तीफे की मांग करके, गैंहू के साथ घुन जैसी खुद-ब-खुद समूची सरकार ही निशाने पर आ चली है? 14 वीं लोकसभा में नोट के बदले वोट का जो दौर चला उसने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में वोट से चुनकर आने के हुंकार के बीच एक सरकार को तो बचा लिया, जी... आम अवाम के वोट से चुनकर आयी सरकार का वजूद जो अंतत: वोटों पर नहीं नोटों पर जो आ टिक खड़ा हुआ था, और आज वही प्रधानमंत्री या सरकार के मुखिया मिस्टर क्लीन का तमंगा लटकाए फिर रहे है, यह मामला यूपीए प्रथम के दौर का है इसलिये वह यूपीए टू के दौर में शर्मसार होने को तैयार नहीं है। जी... वोट और नोट का यह खेल न सिर्फ सांसद या विधायक बनाता है, बल्कि वह सरकार भी बचाता है, इसका खुलासा विकीलीक्स ने कर दिया है।
शायद तभी दक्षिण (जहां इस बार अघोषित दारु ही नहीं मंगल-सूत्र और लैपटॉप भी बांटे जायेंगे) ही नहीं देश में कहीं भी मेयर / पार्षद के चुनाव हो या फिर विधायक या सांसद चुने जाने हो, लोकतांत्रिक मजलिस में लिफाफे में नोट भर कर देने का शगुन पूर्व से ही प्रचलन में है, और इस तरह जब लोकतंत्र की बयार कस्बे से लेकर संसद के भीतर तक बह चलती है तब इस पर नकेल कौन कसेगा, कानून बनाने वाले या कानून मानने वाले? ऐसे में अवाम किसको गलत ठहराये यह यक्ष प्रश्न है?
लेकिन विकीलीक्स के जिस दावे ने सरकार की हवा निकाल दी है, उससे न सिर्फ मिस्टर क्लीन के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही है, बल्कि कांग्रेस के हनुमान प्रणव मुखर्जी भी संजीवनी खोज कर विपक्षी दलों के तरकश से लगातार आ रहे तीरों से घायल हो चली सरकार को बचाने की कोशिश में जुट लिये हैं। मिस्टर क्लीन की संसद के भीतर दी गयी सफाई ने कांग्रेस को राहत पहुंचाने के बजाये उसकी मुसीबतें और बढ़ा दीं हैं, वहीं प्रणव दा... ने कहा यह मामला 14 वीं लोकसभा का है अत: 15 वीं लोकसभा में इस पर चर्चा नहीं करनी चाहिये, जी... प्रणव दा... सरकार बचाने के लिये आप ठीक फरमाते है। आपको याद होगा, जब 14 वीं लोकसभा में इससे संबंधित रिपोर्ट एक कमेटी ने तैयार की थी तब उसका संज्ञान क्यों नहीं लिया गया था? सो किये गये लोकतांत्रिक नुक्सान को लेकर 15 वीं लोकसभा में सवाल उठाये ही जा सकते हैं? प्रणव जी यह मामला अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों को मिली या दी गयी कूटनीतिक छूट का भी नहीं है, पर जनाब सवाल यह है कि इस छूट के आसरे ही सही एक ऐसा लोकतांत्रिक सच तो सामने आया जिसे बिछाकर सरकार उस पर चलना भी चाहती थी, और लोकतंत्र का परचम भी फहराये रखना चाहती थी। जी... अब अगर विपक्ष को लगता है कि सरकार पर सवाल उठाये जा सकते है, या इस बहाने उसे घेरा जा सकता है तो उसे संसद के भीतर चर्चा की मांग करने के बजाये अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिये, शायद तभी तो प्रणव दा ने विकीलीक्स के आरोपों की सच्चाई से बचने के लिये, विपक्ष को अदालत की शरण लेने की सलाह तक दे डाली।
जी... शायद तभी सरकार मनमोहनसिंह के नेतृत्व में भ्रष्टाचार को लेकर निर्लज्ज अवस्था में भी चलते रहना चाहती है कि महंगाई के इस दौर में अगर नैतिकता के शामियाने में सुस्ताने की जुर्रत इस्तीफा देकर जुटा ली गयी तो अगली बार खरीद फरोख्त के लिये मण्डी या मेला जुट पाये भी या नहीं इसे कहां कौन जानता है। सो जनाब इत्मिनान से सरकार चल रही है, सरकार गिराने पर कोई उतारु भी हुआ तो बाजार भी खुला है और विकीलीक्स के लिये 15 वीं लोकसभा पर खबर बनाने का रास्ता भी? हमारे लोकतांत्रिक मजलिस में नयी-नयी चलन में आई यह रवायत भले ही सवाल खड़ी करे पर आप लिफाफे में नोट लेेने का शुभ शगुन छोडिय़ेगा नहीं।
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