.......घटनाएं होती हैं...खबर बनती हैं .........ख़बरें छपती हैं.....ख़बरें पढ़ी जाती हैं....खबर देखी जाती हैं...ख़बरें अंततः बीत जाती हैं....अगली घटना होती है....फिर खबर बनती है....फिर खबर छपती है....फिर खबर पढ़ी जाती है....खबर देखी जाती है.....और खबर बिसरा दी जाती है....कहीं कुछ भी घट जाए....कितना भी लोमहर्षक...कितना भी दर्दनाक.....कितना भी शर्मनाक....कहीं कुछ गुबार नहीं उठता....कहीं कोई दावानल नहीं सुलगता...सब कुछ वैसे-का-वैसा चलता चलता रहता है.....आदमी ही खबर का हिस्सा है...और आदमी ही कलपता है....आदमी ही तड़पता है....आदमी ही रोता है... मगर "साला" ये आदमी है कि क्या है...रत्ती भर भी नहीं बदलता....किसी भी बात से विचलित नहीं होता....क्या आपको पता है कि क्यूँ....??
मैं आपको बताता हूँ कि क्यूँ....क्यूंकि आदमी यह समझता ही नहीं कि यह समूची धरती दरअसल एक परिवार है और इस परिवार के प्रत्येक सदस्य के प्रत्येक कर्म से कोई दूसरा सदस्य अत्यंत प्रभावित होता है....यह प्रभाव अच्छे कर्म से परिवार के सुगठित रहने के परिणाम में और....गलत कार्य से परिवार टूटने के परिणाम में दृष्टिगत होता है...सच तो यह है कि आदमी अगर रंच भर भी यह सोच पाए कि परिवार को स्वर्ग की भांति बनाए रखना श्रेयस्कर है या नरक....तो शायद बात बदल भी सकती है मगर शायद आदमी को यह सोच पाने का अवकाश ही कहाँ....और स्थितियां दिनो-दिन यातनादायक होती जा रही हैं...आदमी का जीना बेहद प्रतिकूल होता जा रहा है...मीडिया द्वारा सोचे और स्थापित किये जा रहे आदमी की कमाई पहले की अपेक्षा बढ़ जाने के कतिपय तथ्यों के बावजूद.... क्या आपको पता है कि क्यूँ....??
दरअसल आदमी जब भी रोटी के फेर से ऊपर उठ जाता है...तब-तब उसे तरह-तरह के अन्य सुखों की कल्पनाएँ घेरने लगती हैं...और मीडिया के तमाम रूपों द्वारा परोसे जा रहे तरह-तरह के व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने का स्वार्थ उसे तरह- तरह से विचलित करने लगता है....वह अपनी स्थितियों से विचलित होने लगता है....असंतुष्ट होने लगता है...और तरह-तरह की बेईमानियाँ-धूर्ततायें-कपट आदि करने लगता है....मगर तरह-तरह के भ्रष्टाचार आदमी को उतना विचलित इसलिए नहीं कर पाते क्यूंकि हर कोई येन-केन-प्रकारेण यह सब करता है...या करने को तैयार रहता है.. और ऐसा करने के हर कोई एक-दूसरे का सहयोगी बन जाता है...या बनने को तैयार रहता है... क्या आपको पता है कि क्यूँ....?? क्यूंकि आदमी ऐसा करके कभी सोच ही नहीं पाता कि आज उसके ऐसे किसी कर्म से कोई दूसरा इससे प्रभावित हो रहा है....और चूँकि सब ऐसा ही करने को तत्पर हैं...तो कल को कोई दूसरा जब यही करेगा तो उस स्वयं पर भी यही गुजरेगी....पता नहीं क्यूँ आदमी सारे धार्मिक कर्मकांड और इस प्रकार की वैचारिकता के बावजूद या तो कर्म के सिद्धांत को नहीं मानता....या फिर कर्म-सिद्धांत उस पर लागू नहीं होगा,ऐसा वह समझता है....अगर ऐसी दुर्बुद्धि या कुबुद्धि है आदमी में तो आप क्या कर सकते हैं...??.....मगर दोस्तों साधारण बेईमानी-भ्रष्टाचार-कपट-धूर्तता आदि में और आदमी द्वारा धरती पर किए जाने वाले एक जघ्यतम अपराध की कोई अन्य मिसाल नहीं मिलती जिसे मीडिया की भाषा में बलात्कार कहा जाता है....और समूची धरती पर यह भीषणतम अपराध केवल और केवल मानव ही करता है...जिसे वह खुद सभी प्राणियों में सबसे सभी मानता है.....!! क्या आपको पता है कि क्यूँ....?? क्यूंकि आदमी को अब तक यह पता ही नहीं है कि नारी के लिए उसकी देह का अर्थ क्या है....और सहवास या सम्भोग का मतलब क्या है....एक स्त्री की देह को उसकी सम्मति से पाना और उसपर जबरन कब्जा कर उसके किसी अंग में अपने-आप को जबरदस्ती थोप देने में क्या अंतर है....!! ....कि नारी जिस तरह अपनी देह को सजाती-संवारती-दुलारती है.....उस देह की सुन्दरता को कोई अपने प्रेम और सम्मान से जीते,ऐसा वो चाहती है....और इस चाहना में एक निर्मलता है....किसी को सम्पूर्ण रूप से पाने की अभीप्सा है....और उसकी आँखों और आत्मा में इस बात की गहरी प्यास है कि उसे पाने वाला....उसे चाहने वाला उसे सम्पूर्णतया जान लेवे....पहचान लेवे....एक मित्रता चाहती है वह पुरुष से...जिससे वो ना केवल प्रेम कर सके बल्कि उसके साथ अपना अन्तरंग बाँट सके....अपने आपको बाँट सके....अंततः अपने-आप को उसे सौंप सके...!!....अगर पुरुष नाम का यह जीव किंचित-मात्र भी इस मर्म को-इस चाहना को-इस अभीप्सा को...इस अव्यक्त आवाज़ को सुन सके-समझ सके...तो इस धरती का तो कायाकल्प ही हो जाए....हमारे-आपके-सबके बच्चें एक दूसरे के प्रति सम्मान भाईचारे और प्रेम के संग एक नया जीवन आरम्भ कर सकें....!!
किन्तु ऐसा नहीं समझकर इसका ठीक विपरीत आचरण कर....यानी स्त्री के संग जबरदस्ती व्याभिचार कर आदमी कौन-सा सुख पाता है....यह हमको नहीं पता....!! क्या आप किसी ऐसी किसी स्थिति की कल्पना भी कर सकते हो कि सरेआम तड़पती हुई जबरदस्ती नग्न की गयी कोई बाला हाथापाई करते हुए मुहं दबाकर और हाथ-पैर बाँध कर छटपटाते हुए,जोर जबरदस्ती करते हुए किसी मर्द को क्या सुख प्रदान कर पाती होगी....??.....कल्पना भी सहम जायेगी आपकी-हमारी या तकरीबन हम सबकी....मगर दोस्तों ऐसा हमारे बीच हम सबके होते हुए भी होता है.......!! क्या आपको पता है कि क्यूँ....?? शायद इसका उत्तर किसी के भी पास नहीं है....और ऐसा व्यभिचार करने वालों के पास तो बिलकुल भी नहीं....मगर एक प्रश्न अक्सर मेरे मन में उठता रहता है कि जैसे खून का बदला खून....वैसे ही रेप का बदला.....अरे नहीं-नहीं-नहीं....ऐसा भीषणतम विचार हमारे मन में कभी नहीं आता ना...और आ भी नहीं सकता....क्यूंकि ऐसे तो पूरी दुनिया ही आततायी हो जायेगी.....है ना....??तो दोस्तों आगे से हम क्यूँ ना करें....कि जिसने भी ऐसा निंदनीय कृत्य किया हो....अक्सर उसके घर वाले परिवार उसे बचाने का प्रयास आखिरी दम तक किए जातें हैं....उनके पास हम सब अपनी-अपनी बेटियाँ ले जाकर उन्हें ऐसा कहें कि ये ले मेरी भी बेटी ले...ले....!!ये ले मेरी भी बेटी ले...ले....ये ले साले...ले अपनी बेटी के कपडे मैं उतारता हूँ....ले मेरी आँखों के सामने कर....जो तुझे करना है.....आ अपने घर के और मर्दों को भी बुला ले.. ....साले हम तुम्हारे लिए बेटियों की कमी नहीं होने देंगे.....उनकी माताओं-और बहनों को कहें कि आइये माताजी-बहिनजी....अपने भाई-पति-चाचा-ताऊ-दादा-भतीजे सबको बाहर लाओ....लो-लो-लो यहाँ खुली सड़क पर सरेआम हमारी बेटियों पर जबदस्ती करो....दोस्तों.....ऐसे दृश्य की कल्पना भले अभी आपको अजीब लगे मगर...जैसा कि हाल है और जैसा कि हमारे न्यायतंत्र की सीमा है....और जैसा कि ऐसा करने वालों का रसूख है.....हमें ऐसा ही करना होगा....किसी को ऐसे ही तोड़ा जा सकता क्यूंकि जब न्याय का भय ख़त्म हो जाता है....और ताकतवर लोगों की हैवानियत की तूती बोलने लगती है....तब शायद ये हथियार काम कर सकते होंओं ....और मुझे उम्मीद है कि इसीसे शायद कुछ हो तो हो....वरना मेरे देखे तमाम नयना साहनी....भंवरी बाई.....अरूशी.....सोनू- लिली-कल्पना-रुचिका....और अभी-अभी रांची के बीचो-बीच कुकर्म कर ह्त्या करके फेक दी गयी बारह वर्षीया रौशनी या फिर रांची में ही छज्जे से फ़ेंक कर मार डाली गयी अन्नाऔर ना जाने कितनी अनाम कन्याएं और स्त्रियों की न्याय को तरसती आँखे चिल्ला-चिल्ला कर अनंत काल तक हमसे यह पूछती रहेगी....कि बताओ मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ...??बताओ मेरा कसूर क्या था...और एक स्त्री द्वारा पूछे जाने वाले ऐसे तमाम सवालों का कोई जवाब हममे से किसी के पास नहीं होगा...... क्या आपको पता है कि क्यूँ....?? क्या आपको पता है कि क्यूँ....??
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मैं आपको बताता हूँ कि क्यूँ....क्यूंकि आदमी यह समझता ही नहीं कि यह समूची धरती दरअसल एक परिवार है और इस परिवार के प्रत्येक सदस्य के प्रत्येक कर्म से कोई दूसरा सदस्य अत्यंत प्रभावित होता है....यह प्रभाव अच्छे कर्म से परिवार के सुगठित रहने के परिणाम में और....गलत कार्य से परिवार टूटने के परिणाम में दृष्टिगत होता है...सच तो यह है कि आदमी अगर रंच भर भी यह सोच पाए कि परिवार को स्वर्ग की भांति बनाए रखना श्रेयस्कर है या नरक....तो शायद बात बदल भी सकती है मगर शायद आदमी को यह सोच पाने का अवकाश ही कहाँ....और स्थितियां दिनो-दिन यातनादायक होती जा रही हैं...आदमी का जीना बेहद प्रतिकूल होता जा रहा है...मीडिया द्वारा सोचे और स्थापित किये जा रहे आदमी की कमाई पहले की अपेक्षा बढ़ जाने के कतिपय तथ्यों के बावजूद.... क्या आपको पता है कि क्यूँ....??
दरअसल आदमी जब भी रोटी के फेर से ऊपर उठ जाता है...तब-तब उसे तरह-तरह के अन्य सुखों की कल्पनाएँ घेरने लगती हैं...और मीडिया के तमाम रूपों द्वारा परोसे जा रहे तरह-तरह के व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने का स्वार्थ उसे तरह- तरह से विचलित करने लगता है....वह अपनी स्थितियों से विचलित होने लगता है....असंतुष्ट होने लगता है...और तरह-तरह की बेईमानियाँ-धूर्ततायें-कपट आदि करने लगता है....मगर तरह-तरह के भ्रष्टाचार आदमी को उतना विचलित इसलिए नहीं कर पाते क्यूंकि हर कोई येन-केन-प्रकारेण यह सब करता है...या करने को तैयार रहता है.. और ऐसा करने के हर कोई एक-दूसरे का सहयोगी बन जाता है...या बनने को तैयार रहता है... क्या आपको पता है कि क्यूँ....?? क्यूंकि आदमी ऐसा करके कभी सोच ही नहीं पाता कि आज उसके ऐसे किसी कर्म से कोई दूसरा इससे प्रभावित हो रहा है....और चूँकि सब ऐसा ही करने को तत्पर हैं...तो कल को कोई दूसरा जब यही करेगा तो उस स्वयं पर भी यही गुजरेगी....पता नहीं क्यूँ आदमी सारे धार्मिक कर्मकांड और इस प्रकार की वैचारिकता के बावजूद या तो कर्म के सिद्धांत को नहीं मानता....या फिर कर्म-सिद्धांत उस पर लागू नहीं होगा,ऐसा वह समझता है....अगर ऐसी दुर्बुद्धि या कुबुद्धि है आदमी में तो आप क्या कर सकते हैं...??.....मगर दोस्तों साधारण बेईमानी-भ्रष्टाचार-कपट-धूर्तता आदि में और आदमी द्वारा धरती पर किए जाने वाले एक जघ्यतम अपराध की कोई अन्य मिसाल नहीं मिलती जिसे मीडिया की भाषा में बलात्कार कहा जाता है....और समूची धरती पर यह भीषणतम अपराध केवल और केवल मानव ही करता है...जिसे वह खुद सभी प्राणियों में सबसे सभी मानता है.....!! क्या आपको पता है कि क्यूँ....?? क्यूंकि आदमी को अब तक यह पता ही नहीं है कि नारी के लिए उसकी देह का अर्थ क्या है....और सहवास या सम्भोग का मतलब क्या है....एक स्त्री की देह को उसकी सम्मति से पाना और उसपर जबरन कब्जा कर उसके किसी अंग में अपने-आप को जबरदस्ती थोप देने में क्या अंतर है....!! ....कि नारी जिस तरह अपनी देह को सजाती-संवारती-दुलारती है.....उस देह की सुन्दरता को कोई अपने प्रेम और सम्मान से जीते,ऐसा वो चाहती है....और इस चाहना में एक निर्मलता है....किसी को सम्पूर्ण रूप से पाने की अभीप्सा है....और उसकी आँखों और आत्मा में इस बात की गहरी प्यास है कि उसे पाने वाला....उसे चाहने वाला उसे सम्पूर्णतया जान लेवे....पहचान लेवे....एक मित्रता चाहती है वह पुरुष से...जिससे वो ना केवल प्रेम कर सके बल्कि उसके साथ अपना अन्तरंग बाँट सके....अपने आपको बाँट सके....अंततः अपने-आप को उसे सौंप सके...!!....अगर पुरुष नाम का यह जीव किंचित-मात्र भी इस मर्म को-इस चाहना को-इस अभीप्सा को...इस अव्यक्त आवाज़ को सुन सके-समझ सके...तो इस धरती का तो कायाकल्प ही हो जाए....हमारे-आपके-सबके बच्चें एक दूसरे के प्रति सम्मान भाईचारे और प्रेम के संग एक नया जीवन आरम्भ कर सकें....!!
किन्तु ऐसा नहीं समझकर इसका ठीक विपरीत आचरण कर....यानी स्त्री के संग जबरदस्ती व्याभिचार कर आदमी कौन-सा सुख पाता है....यह हमको नहीं पता....!! क्या आप किसी ऐसी किसी स्थिति की कल्पना भी कर सकते हो कि सरेआम तड़पती हुई जबरदस्ती नग्न की गयी कोई बाला हाथापाई करते हुए मुहं दबाकर और हाथ-पैर बाँध कर छटपटाते हुए,जोर जबरदस्ती करते हुए किसी मर्द को क्या सुख प्रदान कर पाती होगी....??.....कल्पना भी सहम जायेगी आपकी-हमारी या तकरीबन हम सबकी....मगर दोस्तों ऐसा हमारे बीच हम सबके होते हुए भी होता है.......!! क्या आपको पता है कि क्यूँ....?? शायद इसका उत्तर किसी के भी पास नहीं है....और ऐसा व्यभिचार करने वालों के पास तो बिलकुल भी नहीं....मगर एक प्रश्न अक्सर मेरे मन में उठता रहता है कि जैसे खून का बदला खून....वैसे ही रेप का बदला.....अरे नहीं-नहीं-नहीं....ऐसा भीषणतम विचार हमारे मन में कभी नहीं आता ना...और आ भी नहीं सकता....क्यूंकि ऐसे तो पूरी दुनिया ही आततायी हो जायेगी.....है ना....??तो दोस्तों आगे से हम क्यूँ ना करें....कि जिसने भी ऐसा निंदनीय कृत्य किया हो....अक्सर उसके घर वाले परिवार उसे बचाने का प्रयास आखिरी दम तक किए जातें हैं....उनके पास हम सब अपनी-अपनी बेटियाँ ले जाकर उन्हें ऐसा कहें कि ये ले मेरी भी बेटी ले...ले....!!ये ले मेरी भी बेटी ले...ले....ये ले साले...ले अपनी बेटी के कपडे मैं उतारता हूँ....ले मेरी आँखों के सामने कर....जो तुझे करना है.....आ अपने घर के और मर्दों को भी बुला ले.. ....साले हम तुम्हारे लिए बेटियों की कमी नहीं होने देंगे.....उनकी माताओं-और बहनों को कहें कि आइये माताजी-बहिनजी....अपने भाई-पति-चाचा-ताऊ-दादा-भतीजे सबको बाहर लाओ....लो-लो-लो यहाँ खुली सड़क पर सरेआम हमारी बेटियों पर जबदस्ती करो....दोस्तों.....ऐसे दृश्य की कल्पना भले अभी आपको अजीब लगे मगर...जैसा कि हाल है और जैसा कि हमारे न्यायतंत्र की सीमा है....और जैसा कि ऐसा करने वालों का रसूख है.....हमें ऐसा ही करना होगा....किसी को ऐसे ही तोड़ा जा सकता क्यूंकि जब न्याय का भय ख़त्म हो जाता है....और ताकतवर लोगों की हैवानियत की तूती बोलने लगती है....तब शायद ये हथियार काम कर सकते होंओं ....और मुझे उम्मीद है कि इसीसे शायद कुछ हो तो हो....वरना मेरे देखे तमाम नयना साहनी....भंवरी बाई.....अरूशी.....सोनू-
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राजीव जी, आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर
ReplyDeleteदुष्यंत कुमार की याद आ गई -
इस शहर में वो कोई बारात हो या वारदात
अब किसी भी बात पर खुलती नहीँ हैं खिड़कियां
rastogi.jagranjunction.com
होली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...
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