तू बाल बच्चे दार है...हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा ,ये दिल मांगे मोर और वो जर्जर बूढा फौजी......r
बात 1999 की है .....कारगिल में भीषण युद्ध चल रहा था ......माताओं के लाल तिरंगे में लिपट के घर आ रहे थे .... फिल्मों में जब हीरो गोलाबारी के बीच में हिरोइन को बचाने के लिए आगे बढ़ता है तो सब कुछ बड़ा रोमांटिक लगता है .........पर वहां जब LMG का burst आता है तो अच्छे अच्छों की पैंट खराब हो जाती है .......ऐसा मैंने बहुत से फौजियों के मुह से सुना है ......दीवाली पे जब बच्चे चिटपिटिया ,सुतली बम्ब और अनार जलाते हैं तो मां बाप को चिंता हो जाती है ......अरे भाई सावधान रहना ...कहीं कुछ हो न जाए .......और वही मन बढ़ लौंडे ........ जा के फ़ौज में भरती हो जाते हैं ........और वहां असली बम्ब फोड़ने से भी नहीं डरते । तो वहां असली लड़ाई चल रही थी ...ऐसी..... कि बताते हैं कि जैसी आज तक कभी नहीं हुई इतिहास में .......दुश्मन ऊपर बैठा था और ये नीचे से ऊपर चढ़ रहे थे .......तापमान .... -15 डिग्री ...चारों तरफ बर्फ .....एक चोटी है .....4875 उसपे कब्ज़ा करना था ......13 JAK RIFELS के CO, col Y K JOSHI ने कमान सौंपी CAPT VIKRAM BATRA को ......तब तक CAPT BATRA कि जाँबाज़ी कि कहानियां पूरे देश में मशहूर हो चुकी थीं और उन्हें कारगिल का poster boy कहा जाने लगा था .....वो अभी अभी तीन चोटियाँ ,5140,4750 और 5100फतह करके लौटे थे और मशहूर टीवी एंकर बरखा दत्त ने उनका interview लिया था .....उसने पूछा अब क्या इरादा है तो BATRA ने कहा था .....ये दिल मांगे मोर .......BATRA ने युद्ध में इतनी बहादुरी दिखाई थी कि खुद chief of army staff general VP MALIK ने उन्हें फोन करके शाबाशी दी थी ......BATRA को युद्ध भूमि में ही promotion दे कर lieutenant से captain बना दिया गया था .....तब BATRA ने अपने CO से कहा था....... ये दिल मांगे मोर .........पूरी युद्ध भूमि में ये वाक्य ....ये दिल मांगे मोर एक नारा बन गया था ......
CAPT BATRA अपने 5 साथियों के साथ आगे बढ़ रहे थे .......भीषण गोला बारी चल रही थी .......16000 फुट कि ऊंचाई पर ...खड़ी चढ़ाई ......रात का समय ....गोलियों कि बौछार से बचने के लिए ये लोग एक चट्टान कि आड़ लिए हुए थे तभी lieutenant naveen के पास एक हथगोला फटा और उनकी एक टांग उड़ गयी .......उनकी चीख सुन कर सूबेदार रघुनाथ सिंह आगे बढे ...पर CAPT BATRA ने रोक दिया .....रघुनाथ बोले सर मुझे जाने दीजिये ......नहीं तो वो मर जायेगा ......CAPT BATRA ने जवाब दिया .......नहीं तू बाल बच्चे दार है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा ......फ़ौज में senior का हुक्म मानना ही पड़ता है .....चाहे कुछ भी हो जाए ......सो CAPT BATRA रेंगते हुए आगे बढे .....lieutenant नवीन के पास पहुचे ही थे कि उन्हें गोली लग गयी...सीने में ....... उन्हें किसी को goodbye कहने का भी मौका नहीं मिला .....
कारगिल युद्ध कि दसवीं सालगिरह पर करगिल में एक कार्यक्रम में CAPT BATRA के जुड़वां हमशकल भाई VISHAL BATRA भी शामिल हुए ....वहां उन्हें सूबेदार मेजर रघुनाथ सिंह मिल गए......VISHAL BATRA बताते हैं कि रघुनाथ उन्हें देखते ही उनसे लिपट गए और फूट फूट कर रोने लगे ....उन्होंने बताया कि जीवन में आखिरी बार CAPT BATRA ने उनसे ही बात की थी .......तू बाल बच्चे दर है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा .......वो गए और फिर तिरंगे में ही लिपट कर वापस आये .......अपने गाँव पालमपुर में वो अक्सर कहा करते थे ........या तो तिरंगा लहरा के आऊंगा ....या तिरंगे में लिपट के आऊंगा .........पर आऊंगा ज़रूर .........भारत सरकार ने उन्हें अदम्य साहस और शौर्य के लिए राष्ट्र के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया .....
हमारे घोटालेबाज राज नेताओं अफसरों और सैनिक अधिकारियों ने आदर्श हाऊसिंग सोसाईटी की साज़िश रची तो उसे कारगिल के शहीदों की सहायतार्थ एक परियोजना के रूप में प्रस्तुत किया ......और बाद में जब बन्दर बाँट हुई तो हमारे तत्कालीन army chief दीपक कपूर ने भी अपना हिस्सा बाँट लिए ....हालांकि उनके पास पहले से ही ........उनकी आय के ज्ञात स्त्रोत से अधिक के अनेकों बंगले फ्लैट और प्लाट थे ............पर क्या करें .....बेचारा ....ये दिल ......मांगे मोर ........
हमारा रक्षा मंत्रालय कल के अपने इन जांबाज़ सिपाहियों के लिए ......retired soldiers के लिए..... पोली क्लिनिक चलता है ......ECHS की सुविधा देता है .......कहने को तो बड़ी अच्छी सुविधा है .....बूढा फौजी एक बार 10 या 15000 रु दे कर ECHS का कार्ड बनवा कर पूरे देश में कहीं पर भी किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज करा सकता है ......बस आपको अपने पोली क्लिनिक से refer करना पड़ता है .......पिछले दिनों अपने बूढ़े ....retired फौजी बाप के साथ जालंधर के पोली क्लिनिक जाने का अवसर मिला .......वहां गया तो होश उड़ गए .......इतनी भीड़ ....बाप रे बाप .....लगा मनो अमिताभ बचन की फिल्म लगी है ........सुबह 9 बजे लाइन में जो लगे तो ३ बजे जा कर किसी तरह referal form हाथ में आया .....इस बीच 8-9 अलग अलग counters और कमरों के आगे लम्बी लम्बी लाइनों में घंटों इंतज़ार करके धक्के खाते .........हालत पतली हो गयी ......मेरी ......८१ साल के उस बीमार जर्जर बूढ़े का हॉल क्या होगा ..आप सोच लें .......लाल फीता शाही इतनी ...कि हद नहीं ......मुझे ऐसा लगा मानो मैं refferal form नहीं जैतपुरा में nuclear powerplant की मंज़ूरी मांग रहा हूँ ...........
आदत से मजबूर जो ठहरा .....पहुँच गया .........OIC के पास ....उस बेचारे भले आदमी ने प्यार से बात तो की ...और वही रोना रो दिया ...संसाधनों की कमी का .....5-6 जिलों से फौजी आते है ...दूर दूर से ......भीड़ हो जाती है .......जगह की कमी है ...डॉक्टर नहीं हैं ......ऊपर से लाल फीता शाही .......sign करने के लिए अलग लाइन ...फिर उसपर मुहर लगाने के लिए दूसरा काउंटर ......फिर register में एंट्री .....फिर डॉक्टर की संस्तुति ......फिर medical specialist की opinion ..........और हर जगह झल्ला कर बोलते कर्मचारी ......सवाल जवाब ...बहाने .......हम क्या करें .......यूँ .....मानो उस बूढ़े फौजी पर अहसान कर कर रहे हैं सब लोग .........रक्षा मंत्रालय की खाल इतनी मोटी है ........उसे फर्क नहीं पड़ता ..........
मैं सोचने लगा ........क्या यूँ ही जान दे दी VIKRAM BATRA ने ...........दो घड़ी सुस्ता लेता .......कोई बहाना बना देता .........रघुनाथ सिंह को ही जाने देता .......तू बाल बच्चे दार है ....हट जा पीछे .......मैं जाऊंगा .......भला ये भी कोई बात हुई ........अरे बाल बच्चे न सही ...मां बाप तो थे ही पीछे .......एक प्रेमिका भी थी ......उस से वादा कर के आया था .......दो महीने बाद आऊंगा .........शादी करने ........आज 12 साल हो गए ......वो लड़की आज भी बैठी है .......उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसकी शहादत के कोई मायने नहीं हैं .......उसे तो war widow का दर्ज़ा भी नहीं मिलेगा .........
मेरा बूढ़ा बाप आज भी बड़े गर्व से 65 और 71 की लड़ाई के किस्से सुनाता है .......बड़े गर्व से ...........वो कहानियां सुनाते आँखों में चमक आ जाती है .......तब पोली क्लिनिक के वो धक्के याद नहीं रहते .......बूढ़ा योद्धा अब भी हार मानने को तैयार नहीं है .........
CAPT BATRA अपने 5 साथियों के साथ आगे बढ़ रहे थे .......भीषण गोला बारी चल रही थी .......16000 फुट कि ऊंचाई पर ...खड़ी चढ़ाई ......रात का समय ....गोलियों कि बौछार से बचने के लिए ये लोग एक चट्टान कि आड़ लिए हुए थे तभी lieutenant naveen के पास एक हथगोला फटा और उनकी एक टांग उड़ गयी .......उनकी चीख सुन कर सूबेदार रघुनाथ सिंह आगे बढे ...पर CAPT BATRA ने रोक दिया .....रघुनाथ बोले सर मुझे जाने दीजिये ......नहीं तो वो मर जायेगा ......CAPT BATRA ने जवाब दिया .......नहीं तू बाल बच्चे दार है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा ......फ़ौज में senior का हुक्म मानना ही पड़ता है .....चाहे कुछ भी हो जाए ......सो CAPT BATRA रेंगते हुए आगे बढे .....lieutenant नवीन के पास पहुचे ही थे कि उन्हें गोली लग गयी...सीने में ....... उन्हें किसी को goodbye कहने का भी मौका नहीं मिला .....
कारगिल युद्ध कि दसवीं सालगिरह पर करगिल में एक कार्यक्रम में CAPT BATRA के जुड़वां हमशकल भाई VISHAL BATRA भी शामिल हुए ....वहां उन्हें सूबेदार मेजर रघुनाथ सिंह मिल गए......VISHAL BATRA बताते हैं कि रघुनाथ उन्हें देखते ही उनसे लिपट गए और फूट फूट कर रोने लगे ....उन्होंने बताया कि जीवन में आखिरी बार CAPT BATRA ने उनसे ही बात की थी .......तू बाल बच्चे दर है ....हट जा पीछे ....मैं जाऊंगा .......वो गए और फिर तिरंगे में ही लिपट कर वापस आये .......अपने गाँव पालमपुर में वो अक्सर कहा करते थे ........या तो तिरंगा लहरा के आऊंगा ....या तिरंगे में लिपट के आऊंगा .........पर आऊंगा ज़रूर .........भारत सरकार ने उन्हें अदम्य साहस और शौर्य के लिए राष्ट्र के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया .....
हमारे घोटालेबाज राज नेताओं अफसरों और सैनिक अधिकारियों ने आदर्श हाऊसिंग सोसाईटी की साज़िश रची तो उसे कारगिल के शहीदों की सहायतार्थ एक परियोजना के रूप में प्रस्तुत किया ......और बाद में जब बन्दर बाँट हुई तो हमारे तत्कालीन army chief दीपक कपूर ने भी अपना हिस्सा बाँट लिए ....हालांकि उनके पास पहले से ही ........उनकी आय के ज्ञात स्त्रोत से अधिक के अनेकों बंगले फ्लैट और प्लाट थे ............पर क्या करें .....बेचारा ....ये दिल ......मांगे मोर ........
हमारा रक्षा मंत्रालय कल के अपने इन जांबाज़ सिपाहियों के लिए ......retired soldiers के लिए..... पोली क्लिनिक चलता है ......ECHS की सुविधा देता है .......कहने को तो बड़ी अच्छी सुविधा है .....बूढा फौजी एक बार 10 या 15000 रु दे कर ECHS का कार्ड बनवा कर पूरे देश में कहीं पर भी किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज करा सकता है ......बस आपको अपने पोली क्लिनिक से refer करना पड़ता है .......पिछले दिनों अपने बूढ़े ....retired फौजी बाप के साथ जालंधर के पोली क्लिनिक जाने का अवसर मिला .......वहां गया तो होश उड़ गए .......इतनी भीड़ ....बाप रे बाप .....लगा मनो अमिताभ बचन की फिल्म लगी है ........सुबह 9 बजे लाइन में जो लगे तो ३ बजे जा कर किसी तरह referal form हाथ में आया .....इस बीच 8-9 अलग अलग counters और कमरों के आगे लम्बी लम्बी लाइनों में घंटों इंतज़ार करके धक्के खाते .........हालत पतली हो गयी ......मेरी ......८१ साल के उस बीमार जर्जर बूढ़े का हॉल क्या होगा ..आप सोच लें .......लाल फीता शाही इतनी ...कि हद नहीं ......मुझे ऐसा लगा मानो मैं refferal form नहीं जैतपुरा में nuclear powerplant की मंज़ूरी मांग रहा हूँ ...........
आदत से मजबूर जो ठहरा .....पहुँच गया .........OIC के पास ....उस बेचारे भले आदमी ने प्यार से बात तो की ...और वही रोना रो दिया ...संसाधनों की कमी का .....5-6 जिलों से फौजी आते है ...दूर दूर से ......भीड़ हो जाती है .......जगह की कमी है ...डॉक्टर नहीं हैं ......ऊपर से लाल फीता शाही .......sign करने के लिए अलग लाइन ...फिर उसपर मुहर लगाने के लिए दूसरा काउंटर ......फिर register में एंट्री .....फिर डॉक्टर की संस्तुति ......फिर medical specialist की opinion ..........और हर जगह झल्ला कर बोलते कर्मचारी ......सवाल जवाब ...बहाने .......हम क्या करें .......यूँ .....मानो उस बूढ़े फौजी पर अहसान कर कर रहे हैं सब लोग .........रक्षा मंत्रालय की खाल इतनी मोटी है ........उसे फर्क नहीं पड़ता ..........
मैं सोचने लगा ........क्या यूँ ही जान दे दी VIKRAM BATRA ने ...........दो घड़ी सुस्ता लेता .......कोई बहाना बना देता .........रघुनाथ सिंह को ही जाने देता .......तू बाल बच्चे दार है ....हट जा पीछे .......मैं जाऊंगा .......भला ये भी कोई बात हुई ........अरे बाल बच्चे न सही ...मां बाप तो थे ही पीछे .......एक प्रेमिका भी थी ......उस से वादा कर के आया था .......दो महीने बाद आऊंगा .........शादी करने ........आज 12 साल हो गए ......वो लड़की आज भी बैठी है .......उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसकी शहादत के कोई मायने नहीं हैं .......उसे तो war widow का दर्ज़ा भी नहीं मिलेगा .........
मेरा बूढ़ा बाप आज भी बड़े गर्व से 65 और 71 की लड़ाई के किस्से सुनाता है .......बड़े गर्व से ...........वो कहानियां सुनाते आँखों में चमक आ जाती है .......तब पोली क्लिनिक के वो धक्के याद नहीं रहते .......बूढ़ा योद्धा अब भी हार मानने को तैयार नहीं है .........