18.4.11

स्त्री को ही तलाक का अधिकार

* जनसत्ता ,दैनिक समाचार पत्र ,में "छिनाल" प्रकरण थमे , तो मैं किसी को "बिलार" कह दूं | कुछ दिन उस पर भी गहमा -गहमी चले | ##



*नारी प्रताड़ना के इतने अधिक आरोपों के आलोक में शायद शीघ्र ही पुरुषों को एक "कटुवा" संप्रदाय का गठन करना पड़े | वह भी मुसलमानों की तरह खतना नहीं , अपितु   सम्पूर्ण नसबंदी | न रहे बाँस न बजे बाँसरी | महिलाओं को किसी प्रकार का कष्ट न हो , न मर्दों पर किसी आरोप की जगह रह जाय   | ज़ाहिर है , ऐसे बहादुरी और हिम्मत का प्रगतिशील तबकों द्वारा ही संभव है , जो नर -नारी समता के आन्दोलन में अग्रणी हैं | नर का नारी बन जाने से ज्यादा क्रन्तिकारी काम और क्या होगा ? ##


* फिल्म जगत में कास्टिंग काउच के आरोपों की भरमार है | मेरी सलाह यह है कि पुराने ज़माने की तरह फिर से नारी पात्रों का काम करने के लिए पुरुष कलाकारों को लगाया जाय | पहले मजबूरी थी कि औरतें फिल्मों में आती नहीं थीं | अब वे आती तो खूब हैं पर ढेर सारी स्त्रियोचित परेशानियाँ भी साथ लाती हैं | उसमे से एक अश्लीलता को भी गिन लें | और कोई समस्या न भी हो तो भी यह एक कलात्मक प्रयोग होगा | जब अवतार ,या विचित्र जानवरों ,भूतों के रूप में म्मानुश्य को फिल्माया जा सकता है और animation  फ़िल्में परदे पर खूब चल सकती हैं , तो पुरुष को नारी बनाने में क्या परेशानी है ? अब तो मेकअप  का तकनीक भी बहुत आगे बढ़ गया है और हीरोईनों के नखरों पर पैसे बचा कर फिल्मों को सस्ता भी किया जा सकता है | ##


* एक उम्दा प्रगतिशील नारी विचार है कि [काम] प्रणय -प्रस्ताव का अधिकार केवल नारी को होना चाहिए | इसके पीछे भावना यह है कि तब औरत पुरुष की कामाग्नि  का शिकार नहीं होने पायेगी | इरादा बहुत नेक है ,लेकिन इसमें कुछ पेंच हैं | एक तो यही कि जिस पुरुष से स्त्री प्रणय -प्रस्ताव करे उसमे यदि कामेच्छा  न जगी तो ? अतः विचार आगे बढ़ना चाहिए कि - बलात्कार का अधिकार भी केवल स्त्री को होना चाहिए | लेकिन फिर इसमें पेंच है | यदि स्त्री विवाहिता हुयी तो ? यदि उस पुरुष का हाल एन डी तिवारी वाला होने लगे तो ? फिर कौन पुरुष स्त्री के चाहने पर भी उसे हाथ लगाएगा ? इसलिए इसमें धारा जुड़नी चाहिए कि स्वच्छंद यौन सम्बन्ध  का पूर्ण अधिकार हर विवाहित -अविवाहित  स्त्री को होना चाहिए और उस सम्बन्ध के लिए प्रयुक्त किसी भी विवाहित -अविवाहित पुरुष की इसकी  कोई ज़िम्मेदारी न होगी , न कानून द्वारा उसे दोषी माना जायगा | तब तो स्त्री -मुक्ति की कुछ बात बनेगी | अन्यथा पुरुष इतना भय भीत हुवा रहेगा कि वह स्त्रियों के सामने थर -थर काँपता रह जायगा | फिर वह 'काम' क्या करेगा ? स्त्री उपयोग किसका करेगी ?        

              इसके अतिरिक्त मैं एक गंभीर धारा कानून में जोड़ना चाहूँगा कि - तलाक का अधिकार केवल स्त्री को होना चाहिए [इस्लाम के पलट] | पुरुष चाहें तो [मुस्लिम ख्वातीन  की तरह]अपने लिए "खुला" का अधिकार मांग सकते हैं |

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