इस पोस्ट पर लगी अखबार की कतरन,उसकी हेडिंग और उसमे दिखाई देती धुंधली तस्वीर...यक़ीनन इंसानियत के मुंह पर करारा तमाचा है...मानवीय संवेदनाओं,इंसानियत और न जाने कितने शब्द होंगे जो हमारे इन्सान होने का सबूत देते है,लेकिन तीन कालम की खबर,उसकी हेडिंग और दिखाई पड़ती तस्वीर उन तमाम शब्दों की परिभाषा को बदल कर रख देती है...अगर हम इन्सान होते तो या फिर हमारे भीतर की इंसानियत जिन्दा होती तो यक़ीनन ये खबर नहीं होती...मेरे जिले{बिलासपुर}के पेंड्रा नगर में २० अप्रैल की देर रात स्वामीनाथ नाम का ७६ साल का बुजुर्ग जीवन संघर्ष की यात्रा में दम तोड़ देता है...पेंड्रा के बाजारपारा में महेत्तर मोहल्ले में रहने वाला स्वामीनाथ पेशे से मिस्त्री था....न जाने कितने लोगो के घरो की ईंट परत-दर-परत जोड़ कर आशियाने खड़े किये होंगे लेकिन जिन्दगी ने जीवन भर सिर्फ उतना ही दिया जिससे उसका पेट खाली न रहे...स्वामीनाथ ने गुरूवार को आखरी सांसे क्या ली ऐसा लगा मानो पेंड्रा इलाके में इंसानियत की मौत हो गई हो....स्वामीनाथ की मौत की खबर उसके दोनों बेटो को लगी तो वो पेंड्रा पहुँच गए.... टूटी झोपडी में स्वामीनाथ की लाश कोने में अंतिम क्रिया-कर्म की राह तकती रही,बेटो ने जोड़ा-जन्गोड़ा तो भी कुछ कम पड़ रहा था....बेटे वहां की नगर पंचायत गए और कुछ लोगो से बाप के क्रिया-कर्म के लिए मदद स्वरुप लकड़ी दिला देने की गुहार करने लगे....कई लोगो से कहा लेकिन सब इंसान की शक्ल में जिन्दा मुर्दे की तरह बर्ताव करते रहे....इधर झोपडी में लाश पड़ी थी दुसरे मौसम की बेवफाई का सबूत तेज हवाओ और काली घटाओ से मिल रहा था....बेटो ने सोचा दिन ढलने से और मौसम बिगड़ने से पहले बाप की चिता को आग दे दी जाये,क्योंकि जिनके पास लकड़ी के लिए पैसे नही थे वो दुसरे दिन तक बाप की लाश सुरक्षित रखने बरफ की सिल्ली कहाँ से लाते,सो लोगो से लकड़ी मिलने की उम्मीद छोड़ दोनों घर लौट आये....आस-पास में इंसान रहते है ये सोचकर बेटो ने बाप की अर्थी को कंधा देने आवाज लगे...घर-घर जाकर मदद की भीख मांगी गई लेकिन किसी का कलेजा नही पसीजा...इसी बीच पड़ोस में रहने वाला एक शख्स मानवता जिन्दा होने की मिसाल देने आगे आया....अब भी अर्थी को एक कंधे की जरुरत थी लेकिन बेटो के पास वक्त नही था....बेटो ने पडोसी उस शख्स के साथ अर्थी को अंतिम सफ़र के लिए काँधे पर उठा लिया....स्वामीनाथ की अंतिम यात्रा तीन कंधो पर शमशान की ओर बढती रही...जो देखते वो देखते-देखते आगे बढ़ जाते...किसी को शायद पल भर के लिए भी नही लगा की तीन कंधो पर गरीबी के कफ़न से ढंकी अर्थी एक इंसान की ही है....
स्वामीनाथ का अंतिम संस्कार तो हो गया लेकिन इंसान की शक्ल में वहां रहने वाले आखिर ये क्यों भूल रहे है की बारी सबकी आनी है...कल स्वामीनाथ की बारी थी,कल किसी और की होगी....कुछ लोगो से मैंने अखबार में खबर पढने के बाद फ़ोन लगाकर बातचीत भी की...किसी ने कहा छुआ-छूत के चलते लोग दूर से तमाशा देखते रहे.....किसी ने कहा स्वामीनाथ हरिजन था और महेत्तर मोह्ल्ले में रहता था इस कारण लोगो ने कन्नी काट ली...हद तो तब हो गई जब एक ग्रामीण नेताजी से दूरभाष पर बात हुई....उन्होंने कहा ग्राम-सुराज में पास के गाँव गया था वरना मै जरुर कुछ ना कुछ मदद करता...मैंने पूछा आज दूसरा दिन है आपने उसके बेटो से मुलाक़ात की...जवाब आया अब वहां जाने का कोई मतलब नही है भाई साहेब...मुझे लगा बेकार में मोबाइल के पैसे खर्च कर मुर्दों से बात कर रहा हूँ....फोन काटकर मै सोचता रहा आखिर हम किस समाज में रहते है....वो समाज जो इंसान को मरने के बाद भी इंसान नही मानता...? क्या वो समाज जो मौत पर भी अमीरी गरीबी का कफ़न चढ़ाता है..? ऊँच-नीच,अमीर-गरीब सामाजिक व्यवस्था है...होनी भी चाहिए लेकिन क्या किसी की मौत के बाद मांगी जा रही मदद भी सामाजिक बन्धनों के दायरे में आती है...? अगर हाँ तो मै मानता हूँ की हम सबको तैयार रहना चाहिए हर दिन इंसानियत की अर्थी देखने के लिए...जिसे पेंड्रा के लोगो ने पिछले दिनों काफी करीब से देखा है.....
अब इस पर क्या कहें | मानवीय सवेंदानाओं की मौत का स्यापा करना बचा है | सो करें | समाज तो जिस दिशा में बढ़ रहा है, बढ़ रहा है |
ReplyDeletebharat ko ab ek or savarkar chahiye. jinhone daliton ko mandiron ka pujaari tak banwaya. samaj me esi ghatnaye manavta ke naam par kalank hain.
ReplyDeleteयह शर्मनाक स्थिति है | इस और हमें गंभीरता से सोचना होगा |
ReplyDeletedrmanojrastogi.blogspot.com
ye swaminath ka janaza nahi ja raha hai ye janaza hai insaniyat aur manavta ka.
ReplyDeletevikshit bharat ka ek ye bhi badnuma naksha hai.
kabar behtar hai.
shukriya