20.4.11

यार तेरे हो के रह गए,तू औरों की हो के रह गयी.........

साथ छूटा सा लगता है, रिश्ता टूटा सा लगता है,
न जाने क्यूँ मुझे तू बदला-बदला सा लगता है |

सहलाए थे तूने जख्म जो मेरी जिन्दगी में आकर ,
हर वो जख्म मुझे अब हरा-हरा सा लगता है |

अक्टूम्बर में दिल के बाग़ मैं खिलाये थे फूल तूने,
नवम्बर की बारिश में भी हर फूल सूखा-सूखा सा लगता है |

अपने यार समझ के जिन से मिलाया था तुझ को,
तू भी और हर वो यार भी झूठा-झूठा सा लगता है |

यार भी रूठा,महाफिल भी रूठी और दिलदार भी रूठा,
न जाने क्यूँ, "ओह!गौड़" अब तो ये शहर भी सारा रूठा-रूठा सा लगता है |



कुलदीप गौड़

No comments:

Post a Comment