मित्रों,गोस्वामी तुलसीदास ने अपने विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ रामचरितमानस में वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि जहँ-तहँ जामि तृण भूमि समुझि पड़हिं नहिं पंथ;जिमि पाखंडवाद ते लुप्त होहिं सद्पंथ.यानि वर्षा ऋतु में पगडंडियों पर इतनी घनी घास उग आती है कि राही को पता ही नहीं चलता कि वास्तव में रास्ता है किधर से.कुछ इसी तरह जब राष्ट्र और समाज में पाखंडवाद का बोलबाला हो जाता है तब लोग सन्मार्ग को भूलने लगते हैं.दुर्भाग्यवश वर्तमान भारत के राजनैतिक,सामाजिक और धार्मिक जीवन में भी बहुत-कुछ ऐसा ही हो रहा है.
मित्रों,आध्यात्मिक दृष्टि से दुनिया में हमेशा से तीन तरह के लोग रहे हैं.एक वे जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं,दूसरे वे जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखते और तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जो अन्धविश्वासी हैं.इसी तीसरी श्रेणी की मौजूदगी का लाभ उठाते हैं बगुला भगत की तरह पाखंडपूर्ण जीवन जीनेवाले लोग.भारतीय इतिहास के पन्नों को अगर हम पलटें तो पहली बार अथर्ववेद में मंत्र-तंत्र,जादू-टोने और चमत्कार का जिक्र आता है.हालाँकि सिन्धु-घाटी सभ्यता के शहर मोहनजोदड़ो से एक पुजारीनुमा व्यक्ति की मूर्ति प्राप्त हुई है लेकिन वह जनसमुदाय को प्रभावित करने के लिए जादू-टोने और चमत्कार का प्रयोग करता था या नहीं;का कोई साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है और जब तक सिन्धु-घाटी सभ्यता की लिपि पढ़ नहीं ली जाती तब तक ऐसा हो पाने की कोई सम्भावना भी नहीं है.उत्तरवैदिक काल में चार पुरुषार्थों का सिद्धांत आया.अर्थ,काम,धर्म और मोक्ष में मोक्ष की महत्ता सबसे ज्यादा मानी गयी.इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को स्वयं प्रयत्न करना पड़ता था.लेकिन बाद में जब बौद्ध धर्मं में पाखंड का प्रभुत्व बढ़ा और तंत्रयान और वज्रयान का प्रभाव बढ़ा तब बोधिसत्व (बौद्ध मुनि) धन लेकर दूसरे लोगों के दुखों-पापों को अपने ऊपर लेने और अपने तपोबल से मोक्ष दिलवाने का दावा करने लगे.बुद्ध की जातक कथा से प्रेरित होकर ब्राह्मणों ने विभिन्न हिन्दू देवी-देवताओं का अवतार करवाना शुरू कर दिया.पहले राम,फिर कृष्ण जैसे महामानवों को विष्णु का अवतार बना दिया गया.ऐसा भारत में हमेशा से होता आया है कि किसी असाधारण मनुष्य के मरने के बाद लोग उसे अवतार मानकर उसकी पूजा करने लगते हैं.बुद्ध और कबीर जैसे अनीश्वरवादी और निर्गुण भी कुछ चतुर लोगों के इस प्रकार के षड्यंत्रों के शिकार हो चुके हैं.कुछ ऐसे भी लोग हुए जो अपने जीवनकाल में ही खुद के अवतारी होने का दावा करने लगे.श्रीमदभागवतपुराण जो कथित रूप से विष्णु के कृष्णावतार की कथा है;में भी एक ऐसे हीमिथ्याचारी राजा का उल्लेख है जिसने काठ की दो अतिरिक्त भुजाएँ लगवा ली थीं और खुद के विष्णु का वास्तविक अवतार होने का दावा करता था.
मित्रों,त्यागमूर्ति शिर्डी के साई बाबा का यह कथित अवतारी अपने पीछे १.५ लाख करोड़ रूपये की अकूत संपत्ति छोड़ गया है.क्या ऐसा व्यक्ति शिर्डी के साई बाबा का अवतार हो सकता है?आप यह भी सोंच सकते हैं कि अगर वह संन्यासी था भी तो किस तरह का संन्यासी था?संन्यास का तात्पर्य ही पूर्ण विरक्ति होता है लेकिन यह व्यक्ति तो माया के प्रति एक सामान्य गृहस्थ से भी ज्यादा अनुरक्त था.लोगों पर अपना विश्वास ज़माने के लिए इसने अपनी मृत्यु के वर्ष की भविष्यवाणी कर रखी थी;20२२ ईस्वी.साथ ही उसने यह भी घोषणा कर रखी थी कि उसकी मृत्यु के ८ साल बाद यानि २०३० ईस्वी में वह फिर से धरती पर आएगा;प्रेम साई के रूप में.लेकिन उसकी ये दोनों भविष्यवाणियाँ उसकी मौत के साथ ही झूठी साबित हो चुकी हैं.
मित्रों,हालाँकि उसने गरीबों की भलाई के लिए अस्पताल और स्कूल भी खोले और इन कार्यों के लिए उसकी प्रशंसा भी की जानी चाहिए.लेकिन भारत में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है और उनमें से किसी ने आज तक स्वयं के अवतार होने का दावा भी नहीं किया है.कुछ लोग भारतीय परंपरा का हवाला देकर कह सकते हैं कि हमारे यहाँ मरे हुए व्यक्तियों की निंदा करना उचित नहीं माना जाता.अगर ऐसा मानना सही है तो फिर रावण और कंस जैसे पापियों के प्रसंगों को शास्त्रों से पूरी तरह हटा क्यों नहीं दिया जाता?किसी पापी का जो कर्म उसके जीवित रहते निंदनीय रहता है वह उसकी मृत्यु होते ही स्तुत्य कैसे हो जा सकता है?तो आईये मित्रों हम सब मिलकर ईश्वर से यह प्रार्थना करें कि वह सत्य साई और उसके जैसे सभी पाखंडियों की आत्माओं को शांति प्रदान नहीं करे और रौरव नरक में अनंत काल तक निवास दे.
रावण और कंस ने "बहुत कुछ गलत किया" था जिसे पाप कहेते है. यह व्यक्ति जोकि साईं बाबा का अवतार कहेलाता था ने "कुछ भी पाप नहीं" किया है या था. यदि वो कोई कृत्य करते है या थे जिस से उनके अपने भक्त प्रसन हो तो गलत भी क्या है. परन्तु आपका यह कहेना की उनकी आत्मा को शांति न मिले न केवल निन्दनिये है बल्कि "अभिव्यक्ति की दुष्टता है"
ReplyDeleteआपकी कुछ बात में सत्य है जो आपने अथर्वेद के बारे में कहीं परन्तु "बोध" धर्म को अभी ही (इन १०० -२०० साल में ) ही हिन्दू धर्म से अलग मना गया है वो भी इसाइओ और अंग्रेजो की संकीर्ण सोच की वजह से. अन्यथा कम्बोडिया जैसे "बोध धर्म " देश में आज भी विष्णु जी को और बोध को उसी रूप में पूजा जाता है की भगवन बोध विष्णु जी के ९ वे अवतार है. थाईलैंड में भी विष्णु जी और गणेश जी को वैसे ही पूजा जाता है. तो हिन्दू ब्रह्मण का प्रतिकिर्यावादी बताना गलत है. हिन्दू धर्म के बारे में आपकी सोच बहुत विस्तृत नहीं है. बड़ी ही नम्रता से निवेदन है की ज्ञान का स्तर बढ़ाये और अगली पोस्ट लिखे.
Tyagi
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भगवान सब की आत्मा को शान्ति दे।
ReplyDeleteमैं शिर्डी साई बाबा की अनन्य भग्त हूँ, मुझे इससे मतलब नहीं कि कौन आस्तिक है या नास्तिक, पर मैं इतना जरूर जानती हूँ कि शिर्डी साई बाबा ने खुद को कभी भगवान नहीं कहाँ, मैं सत्य साई बाबा को भगवान तो नहीं मानती, पर इस बात का पुरजोर विरोध करती हूँ कि सत्य साई बाबा की आत्मा को शांति ना मिले। क्योकि शिर्डी साई बाबा ने हमें यह शिक्षा दी हैं कि हमे कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए, और नाही किसी की बुराई ही करनी चाहिए, बस हमे यह देखना चाहिए कि हा किसी के साथ गलत ना करे, दूसरा जैसा करेगा उसे वैसा फल जरूर मिलेगा......
ReplyDeleteधन्यवद.....
ऊँ साई नाथ