पैसिव स्मोकिंग ......बिना ख़ता के सजा .......पूरी पोस्ट यहाँ पढ़ें ...
31.5.11
ये तो लोकतंत्र है
ये तो लोकतंत्र है....
.......दुनियाभर में समय समय पर ऐसे कई प्रयोग हुए जिसने विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र भारत की राजनीति औऱ अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला....लेकिन जब बात मई के आखिरी सप्ताह से जून के पहले सप्ताह के बीच की हो रही है तो हाल ही में पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को नहीं नकारा जा सकता है। दोनों ही राज्यों में दबी – कुचली व उपेक्षित माने जाने वाली नारी ने एक बार फिर से अपनी शक्ति का एहसास करा दिया....औऱ अपनी विजयी पताका फहराते हुए राजनीति हल्कों में खलबली मचा दी।पश्चिम बंगाल में जहां 34 सालों से कायम वामपंथी सरकार को जनता ने नकार दिया...वहीं ऐसा ही कुछ तमिलनाडु में भी घटा औऱ करुणानिधी सरकार को भी जनता ने आइना दिखा दिया। पश्चिम बंगाल औऱ कमिलनाडु के विधानसभा चुनावों में जीतने वाली दोनों पार्टियों तृणमूल कांग्रेस औऱ अन्ना द्रमुक की कमान महिला के हाथ में थी.....औऱ जनता ने पुरूष की बजाए महिला नेतृत्व पर अपनी मुहर लगायी...जिसके बाद देश में दिल्ली में शीला दीक्षित औऱ उत्तर प्रदेश में मायावती के बाद चार महिला मुख्यमंत्री हो गयी हैं.....जो देश में कम से कम महिलाओं के लिहाज से एक सूकून देने वाली खबर है....औऱ इससे निश्चित ही महिलाओं में नयी ऊर्जा का संचार भी हुआ है।
.....20 साल पहले 21 मई 1991 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या भी भारतीय राजनीति के लिए किसी बडे झटके से कम नहीं थी....युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद हर कोई सकते में था.....औऱ कांग्रेस के लिए यह किसी भयंकर आघात की तरह था....खासतौर पर सोनिया गांधी के लिए.....लेकिन राजीव की हत्या के बाद देर से ही सही सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के हमलों को झेलने के बाद भी एक बार फिर से कांग्रेस को स्थयित्व प्रदान किया.....औऱ साबित कर दिया कि महिला की ताकत क्या होती है।
.....और यही काम पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने वामपंथी सरकार को परास्त करके दिखा दिया। जिसके बाद ममता ने पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया वहीं वह देश में 14वीं महिला मुख्यमंत्री भी बनीं.....वहीं दूसरी तरफ जयललिता ने दूसरी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
.....सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के जरिए जनता में अपनी पैठ बना लेने वाली ममता बनर्जी की सादगी औऱ मेहनत का ही नतीजा था कि जनता ने वाममोर्चा को नकारते हुए ममता की तृणमूल कांग्रेस पर अपना भरोसा जताया....औऱ भारी बहुमत से विजयी बनाया.....ममता ने भी वाममोर्चा सरकार को उखाड फेंकने के बाद 20 मई को शपथ लेने के तुरंत बाद सिंगूर के किसानों को 400 एकड जमीन वापस लौटाने की बात कही...जिसे वाममोर्चा सरकार ने अधिग्रहित कर लिया था.....साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए उसी टाटा समूह को पश्चिम बंगाल में निवेश करने के लिए आमंत्रित भी किया....जिसको जमीन आवंटित करने के खिलाफ ममता ने किसानों के साथ मिलकर विरोध का झंडा बुलंद किया था।
....वहीं दूसरी बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाली जयललिता ने भी भ्रष्टाचार के समुद्र में गोते लगा रही द्रमुक सरकार के खिलाफ जनता का विश्वास जीतने में सफल रही।
.....पश्चिम बंगाल औऱ कमिलनाडु विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद निश्चित तौर पर भारत ही नहीं दुनियाभऱ की उन राजनीतिक पार्टियों व राजनेता....जो सत्ता को सिर्फ ऐशो आराम का साधन समझते हैं....उनमें यह संदेश गया कि लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र के बडी कोई ताकत नहीं है....और समय आने पर जनता लोकतंत्र के माध्यम से रही उनको जवाब भी देने में सक्षम भी है।
....पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में जनता ने महिला नेतृत्व पर भरोसा दिखाकर राजनीति को अपनी बपौती समझने वाले राजनेताओं को करारा जवाब भी दिया है....ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने इसे साबित नहीं किया है.....1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस कीकमान संभालने वाली यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी हों.....लगातार दो बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी शीला दीक्षित हो या फिर उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर सत्ता संबालने वाली मायावती...ये सब बखूबी अपने काम को अंजाम दे रही हैं.....औऱ इसी कडी को आगे बढाया है पश्चिम बंगाल में ममता व तमिलनाडू में जयललिता ने।
.....जब बात लोकतंत्र के वैकल्पिक मॉडल की हो रही है तो....हिंदुस्तान की बाहर की बात न कर अंदर की ही बात करें तो ये वाक्ये ....भारत ही नहीं दुनिया की राजनीति के लिए एक बडा सबक है.....औऱ निश्चित तौर पर दबी – कुचली व अबला समझी जाने वाली महिला के लिए किसी संजीवनी के कम नहीं है.....बस जरूरत है इस भरोसे को कायम रखने की।
दीपक तिवारी
09971766033
deepaktiwari555@gmail.com
षोडशी को, वयोवृद्ध प्रेमी का प्रेम पत्र ।
षोडशी को, वयोवृद्ध प्रेमी का प्रेम पत्र ।
प्रिय प्रियतमा,
आज उम्र की, अवक्रमित सीढ़ियों पर भूमि गत होने को तरसते,
आराम के इस, एक पल में, मैं मेरे हृदय के भाव को छलकने से मैं रोक नहीं पा रहा हूँ..!!
प्रिये,
अब तो विधाता से रूबरू मिल कर, उसे एक सवाल पूछने की घड़ी पास आ गई है कि,
" हमारे नसीब में, मेरी ढलती उम्र की,अवक्रमित सीढ़ियों पर भूमि गत होने को तरसती, मेरी इस आखिरी पल में ही, हमारा मिलन उसने क्यों लिखा?"
=========
प्यारे दोस्तों,
आप को ये जान कर ताज्जुब होगा कि, इस षोडशी कन्या का नाम है,
हमारी सभी की लाडली,"????"
और वयोवृद्ध प्रेमी का नाम है "????"
हालाँकि, मुझे नहीं पता, `????` को कभी वृद्धावस्था आती भी होगी या नहीं?
पर हाँ, षोडशी कन्या `????` से, हमेशा सभी प्यार करते हैं, यह बात निर्विवाद है ।
आपका जवाब यहाँ है, मेरे ब्लॉग पर ।
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/05/blog-post_31.html
मार्कण्ड दवे । दिनांकः- ३१-०५-२०११.
आपका जवाब यहाँ है, मेरे ब्लॉग पर ।
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मार्कण्ड दवे । दिनांकः- ३१-०५-२०११.
पेंसिल....चांद और समय
पेंसिल....चांद औऱ समय.........इन तीनों की अगर बात करें तो समय के साथ धुंधले पड गये बचपन के वो दिन याद आते हैं......जब छत से चांद को देखते हुए मां से बडी मासूमियत से एक सवाल पूछता था....किमां दूर आसमां में दिन ढलने के साथ ही चमक बिखेरने वाला यह कौन है.....तो मां का जवाब होता था.....चंदा मामा....औऱ आज भी चांद के लिए यही अनुभूति होती है.....समय बीतता गया.....औऱ पता ही नहीं चला कि कब हाथों में पहले चॉक औऱ फिर पेंसिल ने इसकी जगह ले ली....समय बीतता गया....औऱ फिर पेंसिल से भी नाता टूटा....औऱ छठवीं कक्षा में पेंसिल की जगह ब़ॉल पैन ने ले ली.....लेकिन जिस तरह आज भी आसमान में चांद की चमक बरकरार है.....ठीक उसी तरह पहली बार पेंसिल से कागज पर लिखने की अनुभूति का एहसास होते ही जेहन में वो बात याद आ जाती है....साथ ही पेंसिल से जुडी वो कहानी याद आ जाती है....जो आज भी मुझे ऊर्जा प्रदान करती है.....
...........एक लड़का अपने पिता को कागज पर कुछ लिखते हुए देखकर पूछा -क्या आप मेरे लिए कहानी लिख रहे है ?
पिता ने कहा- कहानी तो लिख रहा हूँ पर उससे महत्वपूर्ण यह पेंसिल है जिससे मैं लिख रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ तुम भी बड़े होकर पेंसिल कि तरह ही बनोगे . '
लड़के ने कहा -'इसमें क्या बात है ये तो बाकी पेन्सिल जैसा ही तो है.'
पिता ने बोला -'ये तो तुम्हारे नजरिये पर निर्भर करता है ,तुम्हे पेंसिल में कुछ नजर नहीं आ रहा है पर मुझे इसके पांच खास गुण नजर आ रहे है जिसे अपना लो तो तुम महान बन जाओगे.'
पहला : आप महान कामों को अंजाम दे सकते है लेकिन पेंसिल की तरह यह न भूले कि आपके भी पीछे एक हाथ होता है जो आपको मार्गदर्शन देता और उस हाथ को हम ईश्वर कहते है.
दूसरा: शार्पनर पेंसिल को थोड़ी देर के लिए बहुत तकलीफ पहुचाता है पर इसके बाद वो नुकीली होकर और भी ज्यादा अच्छा लिखती है. इसलिए तुम्हे भी दुःख और तकलीफों को सहना सीखना चाहिए क्योकि वो तुम्हे अच्छा व्यक्तित्व प्रदान करती है .
तीसरा: पेंसिल इरेजर द्वारा गलतियों को मिटाने का मौका देती है यानी गलतिया हो तो उसको सुधारना भी जरुरी है यह हमें न्याय और सज्जनता के रास्ते पर चलने में मदद करती है .
चौथा: पेंसिल में उसकी लकड़ी से ज्यादा उसके अन्दर कि ग्रेफिट महत्वपूर्ण है,जिसके कारण उसका वजूद है. इसलिए तुम हमेशा धयान दो कि तुम्हारे अन्दर क्या भरा है?
पांचवां: पेंसिल हमेशा निशान छोड़ जाती है,तुम भी जीवन में जो कुछ करते हो वह निशान छोड़ जाती है इसलिए कोई भी काम चाहे वो कितना भी छोटा क्यों न हो बुद्धिमानी और एकाग्रता से करो.
.....जिस तरह पेसिंल.....जिसकी अहमियत इस कहानी को सुनने से पहले आपके जेहन में भी शायद बहुत ज्यादा या यूं कहें कुछ नहीं होगी.....उसी तरह चांद.....विज्ञान से नाता न रखने वालों के लिए बचपन में सिर्फ चंदा मामा....औऱ अब शायद रात के घने अंधेरे में एक रोशनी बिखेरने का माध्यम भले हो....लेकिन यही चांद वैज्ञानिकों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं था.....औऱ समय के साथ वैज्ञानिकों ने इसे भी पार पाने की कोशिश की....औऱ 20 जुलाई 1969 को अमेरिका को इसमें सफलता भी मिली....जब पहले अमेरिकी नील आर्म स्ट्रांग ने अपने साथी एडविन एल्ड्रिनन के साथ चांद पर पहला कदम रखा। 1969 से 1972 के बीच कुल 12 अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर उतरे और सकुशल वापस लौटे। 7 दिसंबर 1972 को अपोलो 17 मिशन के दो अंतरिक्ष यात्रियों का चंद्रमा पर अवतरण और विचरण अब तक की अंतिम समानव चंद्रयात्रा थी.....अपोलो 17 ही एकमात्र ऐसी चंद्रयात्रा थी, जिस में कोई भूवैज्ञानि (जियोलॉजिस्ट) चन्द्रमा पर उतरा था और वहां से सौ किलो से अधिक कंकड़ पत्थर और मिट्टी साथ ले आया था........उसके बाद से ही लगातार चांद के रहस्यों को सुलझाने के साथ ही कई देशों की चांद पर भी वर्चस्व जमाने की कोशिशें आज भी जारी है।
.....हम बात कर रहे थे....पेंसिल....चांद औऱ समय की.....पेंसिल औऱ चांद जिसके साथ बचपन में हमारा गहरा नाता था.....समय बीतने के साथ ही चांद पर पेंसिल की उपयोगिता भी नजर आयी....जब चांद पर गुरूत्वाकर्षण न होने के कारण पेंसिल को चंद्रमा पर लिखने के लिए उपयोग किये जाने पर भी विचार किया जाने लगा.....जिस पर औऱ भी शोध जारी हैं.....औऱ उम्मीद करते हैं कि समय के साथ ही हमारे बचपन के साथी पेंसिल और चांद का संबंध औऱ भी गहरा हो जाएगा.....क्योंकि वक्त के साथ ही नयी चीजें संभव हैं....लेकिन समय बीतने के साथ इस तरह से पेंसिल औऱ चांद का नाता जुडेगा....ऐसा शायद ही कभी सोचा था।
दीपक तिवारी
09971766033
deepaktiwari555@gmail.com
deepaktiwariji@blogspot.com
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'अपनी माटी' वेबपत्रिका का जून-2011 अंक
- 'कुरजां संदेश' पत्रिकाओं की भीड़ से अलग-रमेश उपाध्याय
- रमेश उपाध्याय जी की एक सटीक कविता
- छायाचित्र:-चित्तौड़ दुर्ग के कुछ ज़रूरी चित्र
- छायाचित्र:-शंकर घट्टा,चित्तौडगढ
- ''बडी कविता वह है जो संकट के समय लोगों के काम आए''-प्रो मैनेजर पांडेय
- परमाणु बिजली घर;कुछ भ्रांतियां
- दिलीप भाटिया की रचना-'एकला चालो रे'
- 'पंत' की कविता ,युगों तक सम्हाली जानेवाली धरोहर
- आलेख:-पत्रकारों ने यह साबित कर दिया हैं कि राजनीति से बढ़कर कुछ भी नही
- आलेख:-स्त्री विमर्श के नये आयाम
- बोधि पुस्तक पर्व के दूसरे सैट का लोकार्पण समारोह 18 जून को:-बुकिंग शुरू
- आलेख:- सभी कलाओं में तत्कालीन समय से संवाद करने की अद्भुत क्षमता होती है
- छायाचित्र:-ऐसा होता ही गोटिपुआ नृत्य
- छायाचित्र :-'चरण दास चोर', वो भी नगीन तनवीर के निर्देशन में
- एक जून,2011 को होने वाले सूर्य ग्रहण से नफ़ा-नुकसान
- 15 जून को होने वाला पूर्ण चन्द्र ग्रहण और उसके प्रभाव
- गीत चतुर्वेदी का रचना पाठ भोपाल में होगा
- छायाचित्र :-जिर्णोद्धार के बाद रतन सिंह महल,चित्तौड़ दुर्ग
- आलेख:-विश्वविद्यालयो में विधिक पत्रकारिता कोर्स;हो तो करें
- राजेश भंडारी की एक मालवी कविता
- स्पिक मैके के कटक में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन के छायाचित्र
- अपने समय के सच को पहचानने की जिद है शैलेन्द्र चौहान की कविताएँ
- आर.ए.एस. परीक्षा सुधार:- भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु जितेन्द्र सोनी का जवाबी पत्र
- जाने-माने हारमोनियम वादक पद्मश्री महमूद धोलपुरी नहीं रहे
- '' जरूरी नहीं कि बेहतर कविताएं महानगरों में लिखी जाएं''-डा. नामवर
- ॐ कारेश्वर यात्रा के छायाचित्र
- होशंगाबाद के लिए मेरी दूसरी बार की यात्रा और कुछ छायाचित्र
- प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान-2011,कृष्णदत्त पालीवाल और प्रफुल्ल कोलख्यान को
- आलेख:-आधुनिक तकनीक ने दिए मीडिया को कई मुड़ाव
- 'मोहल्ला लाइव' जुलाई-2011 से मासिक पत्रिका निकालेगा
- ज्योतिष के क्षेत्र में एक बड़ा आयोजन भटिंडा में
- डॉ. अरुण शर्मा की चुनिन्दा कवितायेँ
- नाथद्वारा में हुए खगोल विज्ञान सम्मलेन की फोटो रपट
- समीक्षा :-रजनी गुप्त की पुस्तक पर कालु लाल कुलमी:'स्त्री विमर्श की एक जरुरी किताब'
- "लेखक का काम दिल बहलाना नहीं है"
- स्पिक मैके महोत्सव लाइव का शेड्यूल
- मालवा की एक सांस्कृतिक परम्परा :-'मालवी छल्ला '
- ''ऐसा साहित्य जो समाज से कटा हुआ हो, साहित्य हो ही नहीं सकता''-राजकुमार सचान 'होरी'
- जनवादी चित्रकार चित्तप्रसाद को याद करते हुए वरिष्ठ चित्रकार अशोक भौमिक
- शिवराम का मुख्य ध्येय आज के जड संस्कारों को बदलने का रहा
- जनता के नाट्यकर्मी का नहीं रहना खलेगा
- आयोजन निमंत्रण :-"काल से होड़ लेती कविता"
- कालुलाल कुलमी की पुष्कर यात्रा
- डॉ0 महेन्द्र प्रताप पाण्डेय की दो नई रचनाएं
- कविता संग्रह "उजाले का अँधेरा " का लोकार्पण
- लघु आलेख:-कला किसी की बपोती नहीं होती
- चित्तौड़ी आठम महोत्सव संपन्न
- प्रतिनधि कवियों की प्रतिनिधि कवितायेँ
- डॉ. सदाशिव श्रोत्रिय का निबंध:-'विघटन हमारी विरासत का'
- ''केदार की कविता कठिन जीवन-संघर्षों के बीच अदम्य जिजीविषा बनाये रखने वाले स्त्रोतों की खोज करती है'':-डा. पूनम सिंह
- ''राजस्थानी भाषा को मान्यता हेतु इसमें एकरूपता नहीं होना मूल रोड़ा'':-नन्द किशोर 'नेक'
- पुस्तक समीक्षा :-'केदार की कविता और केदार को अलग करके नहीं देखा जा सकता'
- लघु आलेख:- ये कहां आ गये आप!
- डॉ. सदाशिव के सध्य प्रकाशित निबंध संग्रह की समीक्षा:-'उपभोक्तावादी समाज का प्रभावी चित्र'
- रवींद्रनाथ ठाकुर की याद में एक ज़रूरी आयोजन
- कटक अधिवेशन आमंत्रण
- फोटो रपट:-दिव्या का परिंडा बांधो अभियान
- चित्ररेखा संजय जैन की एकांकी:-'किसी को तो आगे आना ही होगा'
- पुस्तक समीक्षा:- नन्दकिशोर आचार्य कृत 'चॉद आकाश गाता है'
आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा.
आदर सहित,
''अपनी माटी'' सम्पादन मंडल
डी-39,पानी की टंकी के पास,
कुम्भा नगर,चितौडगढ़ (राजस्थान)-312001
Cell:-09460711896,
जनसंख्या बढ़ोतरी, कहीं बहुत कम कहीं बहुत ज्यादा;खुशबू(इन्द्री)करनाल
हर सेकंड औसतन 2.6 बच्चे पैदा होते हैं, हर मिनट 158, हर दिन 2 लाख 28 हजार 155 लोग दुनिया में पैदा होते हैं। हर सेंकड दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है। कुल 6 अरब 96 करोड़ से ज्यादा लोग हैं। और हर टिक टिक के साथ बढ़ रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2100 में दुनिया की जनसंख्या दस अरब हो जाएगी। 1950 से अब तक दुनिया की जनसंख्या का बढ़ना आधा हो गया है। मतलब पहले हर महिला के औसतन पांच बच्चे होते थे, लेकिन अब यह संख्या आधी हो गई है। इसका मुख्य कारण परिवार नियोजन है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग के अध्यक्ष थोमास बुइटनर कहते हैं, 'जो जनसंख्या आज हम देख रहे हैं वह सुधार भरे कदम का परिणाम है। अगर 1950 के कदम नहीं बदले होते तो आज जनसंख्या के आंकड़े अलग होते।'
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2100 में दुनिया की जनसंख्या दस अरब हो जाएगी। 1950 से अब तक दुनिया की जनसंख्या का बढ़ना आधा हो गया है। मतलब पहले हर महिला के औसतन पांच बच्चे होते थे, लेकिन अब यह संख्या आधी हो गई है। इसका मुख्य कारण परिवार नियोजन है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग के अध्यक्ष थोमास बुइटनर कहते हैं, 'जो जनसंख्या आज हम देख रहे हैं वह सुधार भरे कदम का परिणाम है। अगर 1950 के कदम नहीं बदले होते तो आज जनसंख्या के आंकड़े अलग होते।'
हालांकि तस्वीर का सिर्फ एक यही अच्छा पहलू होता तो बहुत ही बढ़िया था, लेकिन ऐसा है नहीं। क्योंकि अमीर देशों में जनसंख्या घट रही है और गरीब देशों में लगातार बढ़ रही है। जनसंख्या के बढ़ने की गति अगर इसी तेजी से जारी रही तो इस सदी के आखिर में ही धरती पर 27 अरब लोग हो जाएंगे। अभी से चार गुना ज्यादा। लेकिन नाइजीरिया में थ्योरिटिकली दो अरब ज्यादा होंगे तो जर्मनी की जनसंख्या आधी हो जाएगी और चीन में 50 करोड़ लोग कम हो जाएंगे।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ एक और मामले पर नजर डालते हैं, 'ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिवार नियोजन की सुविधा मिल रही रही और मत्यु दर कम हो गई है। विकास के सभी काम, परिवार नियोजन की कोशिशें मां और बच्चों के मरने की दर कम करती है।'
इन आंकड़ों के मुताबिक गरीब से गरीब देशों में भी प्रति महिला बच्चों की संख्या कम हो जाएगी। और इसलिए 2100 तक दुनिया में करीब दस अरब लोगों के धरती पर रहने का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने लगाया है।
असमान जनसंख्या बढ़ोतरी : यूएन ने अनुमान लगाया है कि अगर प्रति महिला औसतन एक दशमलव छह बच्चे पैदा होते हैं तो जनसंख्या 16 अरब तक पहुंच जाएगी। यह सबसे ज्यादा वाला अनुमान है और एकदम कम होने की स्थिति में दुनिया की जनसंख्या घट कर छह अरब ही रह जाएगी जो आज की संख्या से भी कम होगी। दो हजार आठ में भी संयुक्त राष्ट्र ने इसी तरह का अनुमान लगाया था जिसे उसे ठीक करना पड़ा था।
खुशबू(इन्द्री)करनाल
जर्मन जनसंख्या संस्था (वेल्ट बेफ्योल्करुंग प्रतिष्ठान) की प्रमुख रेनाटे बैहर बताती हैं, 'दो हजार पचास में बीस करोड़ जनसंख्या बढ़ने के सुधार को इसलिए करना पड़ा क्योंकि पैदा होने वाले बच्चों की संख्या जितना कम होने का अनुमान था वैसा आखिरी दो साल में हुआ नहीं। यह एक चेतावनी है। उम्मीद करते हैं कि नेता इस चेतावनी को सुनेंगे और इस पर कार्रवाई करेंगे।'
इसके लिए रेनाटे बैहर थाईलैंड और केन्या का उदाहरण देती हैं, 'आप अगर आज केन्या और थाईलैंड की ओर देखें तो पता चलेगा कि दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। केन्या में जनसंख्या चार गुना बढ़ी है जबकि थाईलैंड में सिर्फ दो गुना।'
इसका कारण सिर्फ एक ही है कि 1970 के दशक में थाईलैंड ने दो बच्चे प्रति परिवार की नीति अपनाई और इसे आगे बढ़ाया। अब तो केन्या भी इसे समझ गया है कि परिवार की खुशहाली कम बच्चे ही जरूरी हैं, लेकिन दुनिया के कई देश अभी भी नहीं समझे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ एक और मामले पर नजर डालते हैं, 'ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिवार नियोजन की सुविधा मिल रही रही और मत्यु दर कम हो गई है। विकास के सभी काम, परिवार नियोजन की कोशिशें मां और बच्चों के मरने की दर कम करती है।'
इन आंकड़ों के मुताबिक गरीब से गरीब देशों में भी प्रति महिला बच्चों की संख्या कम हो जाएगी। और इसलिए 2100 तक दुनिया में करीब दस अरब लोगों के धरती पर रहने का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने लगाया है।
असमान जनसंख्या बढ़ोतरी : यूएन ने अनुमान लगाया है कि अगर प्रति महिला औसतन एक दशमलव छह बच्चे पैदा होते हैं तो जनसंख्या 16 अरब तक पहुंच जाएगी। यह सबसे ज्यादा वाला अनुमान है और एकदम कम होने की स्थिति में दुनिया की जनसंख्या घट कर छह अरब ही रह जाएगी जो आज की संख्या से भी कम होगी। दो हजार आठ में भी संयुक्त राष्ट्र ने इसी तरह का अनुमान लगाया था जिसे उसे ठीक करना पड़ा था।
खुशबू(इन्द्री)करनाल
जर्मन जनसंख्या संस्था (वेल्ट बेफ्योल्करुंग प्रतिष्ठान) की प्रमुख रेनाटे बैहर बताती हैं, 'दो हजार पचास में बीस करोड़ जनसंख्या बढ़ने के सुधार को इसलिए करना पड़ा क्योंकि पैदा होने वाले बच्चों की संख्या जितना कम होने का अनुमान था वैसा आखिरी दो साल में हुआ नहीं। यह एक चेतावनी है। उम्मीद करते हैं कि नेता इस चेतावनी को सुनेंगे और इस पर कार्रवाई करेंगे।'
इसके लिए रेनाटे बैहर थाईलैंड और केन्या का उदाहरण देती हैं, 'आप अगर आज केन्या और थाईलैंड की ओर देखें तो पता चलेगा कि दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। केन्या में जनसंख्या चार गुना बढ़ी है जबकि थाईलैंड में सिर्फ दो गुना।'
इसका कारण सिर्फ एक ही है कि 1970 के दशक में थाईलैंड ने दो बच्चे प्रति परिवार की नीति अपनाई और इसे आगे बढ़ाया। अब तो केन्या भी इसे समझ गया है कि परिवार की खुशहाली कम बच्चे ही जरूरी हैं, लेकिन दुनिया के कई देश अभी भी नहीं समझे हैं।
उपरोक्त आलेख करनाल की ख़ुशी गोयल जी ने मुझे इ-मेल से भेजा .आलेख का विषय समसामयिक व् देश के नागरिकों की जानकारी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए इसे भड़ास पर प्रकशित करना मैंने अधिक महत्वपूर्ण समझा.आप सभी ख़ुशी को अपनी राय उनके इ-मेल पर भेज सकते हैं-media1602 @gmail .com
बड़ा पत्रकार बनना है...!?
मुचकुंदीलाल को आज पूरे शहर में विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों को कवर करने का निर्देश मिला है. मीटिंग ख़त्म होते ही रोजमर्रा की तरह मुचकुंदीलाल ऑफिस के पीछे पप्पू पानवाले की दुकान पर हिक१ भर धुंए के कुंए में डूब रहा है. फिर फील में जाएगा. उसके सिगरेट पीने के पीछे एक बड़ा रहस्य है. जिसे वह जनता है, मैं जनता हूँ और उसका चीफ ( चीफ रिपोर्टर ) और अब उसकी पत्नी जानती है. क्योंकि शादी के बाद उसने पत्नी को बताया था की वो सिगरेट पीता है.
आइये अब तफ़सील से आप भी उसके रहस्य से रू-ब-रू होइए. वैसे मुचकुंदीलाल नशेबाज़ नहीं है. मैं भी उसे नशेबाज़ नहीं मानता. यहाँ तक की उसकी पत्नी भी उसे नशेबाज़ नहीं मानती. हम दोनों ने साथ स्नातक किया. उसे पत्रकार बनने का शौक था. सो वह शहर के एक प्रतिष्ठित अखबार में जुगाड़ लगाकर एंट्री कर गया. जुगाड़ इसलिए कि आज तक कोई भी पत्रकार बिना जुगाड़ के उस संस्थान में प्रवेश नहीं कर सका है.
जब मुचकुंदीलाल की एंट्री हुई थी तो वह ट्रेनी रिपोर्टर था. कुछ साल बाद वह तरक्की पाकर रिपोर्टर की श्रेणी में आया. ट्रेनी से रिपोर्टर तक के दरम्यां वह कोई नशा नहीं करता था. जब वह रिपोर्टर की श्रेणी में आया तो उसके तन-मन में " बड़ा पत्रकार " बनने का "वाइरस" घुस गया. यह वाइरस उसके चीफ ने उसके मन पर छोड़ा था. जो मुचकुंदीलाल के आंतों तक फ़ैल गया. बड़ा पत्रकार बनने की पहली शर्त ये थी कि सिगरेट पीना चाहिए. उच्च कोटि का पत्रकार बनने के लिए चेन स्मोकिंग के साथ-साथ अव्वल दर्जे का शराबी, कबाबी, चरसी, भंगेड़ी, गंजेड़ी और जितने भी प्रतिबंधित नशे हैं, उसका अनुभव होना जरूरी है. वाही वह बड़ा पत्रकार बन सकता है.
बड़ा पत्रकार बनने की शर्त सुनकर मुचकुंदीलाल को रातभर नींद नहीं आई. दूसरे दिन जब वह फील्ड में गया तो उसके दिमाग में बड़ा पत्रकार बनने का वाइरस उमड़ने लगा. फिर क्या था, मुचकुंदीलाल ने मोतीझील चौराहे पर शर्मा पान वाले की दुकान जाकर एक सिगरेट खरीदा. सुलगाने के बाद जैसे ही उसने मुंह में लगाया तो मनो उसे दमा का अटैक पड़ गया हो. पहला दिन तो किसी तरह गुज़र गया. धीरे-धीरे मुचकुंदीलाल सिगरेट के छल्ले उड़ने लगा. अब वह जब भी ऑफिस आता तो ऑफिस की सीढ़ियाँ चढ़ने से पहले पीछे जाकर पप्पू पानवाले की दुकान पर हिक भर सिगरेट का धुंआ अपने फेंफड़े में उतार लेता. रात में घर जाने से पहले मॉडल शॉप जाकर सबसे महंगी दारू तब तक पीता जब तक उसे नशा न चढ़ जाए. क्योंकि उसे बड़ा पत्रकार बनना था. वह सारा नशा ऑफिस टाइम में ही करता. जब घर में होता तो इलायची का एक दाना मुंह में नहीं डालता. उसकी नशेबाज़ी की पत्रकारिता सुबह १० बजे से रात १२ बजे तक चलती थी. जिस दिन उसका वीकली ऑफ़ होता था उसके पहली रात वो अगले दिन का कोटा भी पूरा कर लेता था. उसकी पत्नी भी उसे कुछ नहीं बोलती थी. आखिर कौन पत्नी नहीं चाहेगी कि उसका पति बड़ा पत्रकार न बने?
बारह साल हो गए मुचकुंदीलाल को बड़ा पत्रकार बनने की शर्तें पूरी करते. जिसका परिणाम यह हुआ कि उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, डाईबीटीज, अस्थमा जैसी तमाम घातक बीमारियों ने उसके शरीर पर कब्ज़ा कर लिया. फिर भी मुचकुंदी बड़ा पत्रकार बनने के शर्तों को पूरा करने में लगा है. जिसने ये वाइरस फेंका था वो चीफ साहब चार साल पहले अधिक दारु पीने से उनकी आंतो ने जवाब दे दिया और वे परलोक सिधार गए. मुचकुंदी की आधी पगार बड़ा पत्रकार बनने की शर्तों में खर्च हो रही है और आधी पगार घातक बीमारियों को कण्ट्रोल करने में. उसकी पत्नी प्राइवेट स्कूल से मिलने वाली पगार से घर चला रही.
...................मुचकुंदीलाल पप्पू पानवाले की दुकान पर फेंफड़ों में धुंआ भर रहा है...उसे विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर कार्यक्रम कवर करने जाना है.
अफ़सोस...!!! मेरा प्रिय मित्र न जाने कब बड़ा पत्रकार बनेगा...!?
१-- मन भर
प्रबल प्रताप सिंह
Political Dairy of Seoni Dist- Of M.P.
दिग्विजय के खुले विरोध और कमलनाथ के समर्थन के बीच बाबा रामदेव के कार्यक्रम में हरवंश का आना सियासी हल्कों में चर्चित
जिला भाजपा में इन दिनों गुटबाजी का खुला खेल दिखायी दे रहा है।नन्दकिशोर सोनकेशरिया के फैसले को प्रदेश के महामन्त्री चौहान ने गलत निर्णय करार देते हुये ना केवल निरस्त कर दिया वरन उनकी बहाली महामन्त्री के पर कर दी गई। अनुसूचित जाति की महिला पार्षद की पार्टी सदस्यता को जिला भाजपा ने ही बहाल कर दिया। योग गुरू बाबा रामदेव का कार्यक्रम राजनैतिक हल्कों में काफी चर्चित रहा। प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री ओर इंका के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह से बाबा रामदेव के खुले विरोध के चलते उनके मन्त्रीमंड़ल के सबसे ताकतवर मन्त्री रहे हरवंश सिंह का इस आयोजन में शामिल होना राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा आश्चर्यजनक माना जा रहा हैं। अब यह तो हरवंश सिंह ही जानते होंगें कि वे बाबा के आयोजन में क्यों गये थे और क्या वे किसी को कोई राजनैतिक संकेत देना चाहते थेर्षोर्षो संसद में एक भी शब्द ना बोलने वाले तथा सबसे ज्यादा गैर हाजिर रहने वाले चन्द सांसदों में जिले के दोनों सांसद शामिल है। इन सांसदों ने अपनी संसदीय भूमिका से अपने मतदाताओं को निराश ही किया हैं। पूर्व विधायक नरेश दिवाकर के आग्रह पर कन्या महाविद्यालय में जोकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और सन्त विनोबा की प्रतिमाओं पर माला पहनायी। भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ देश भर में अलख जगाने निकले बाबा रामदेव ने जिन शहीदों की मूर्तियों पर माला पहनायी वह मूर्तियां किस विभाग ने किस मद से बनवायीं थी इसका खुलासा राज्य सरकार विधानसभा में भी नहीं कर पायी थी।
खुल कर दिखने लगी भाजपा में भी गुटबाजी-जिला भाजपा में इन दिनों गुटबाजी का खुला खेल दिखायी दे रहा है।पहले जिला भाजप के महामन्त्री पद से नन्दकिशोर सोनकेशरिया की छुट्टी हुयी फिर टेगौर वार्ड की पार्षद श्रीमती लीला डागोरिया को पार्टी सदस्यता से निलम्बित कर दिया गया। इस निर्णय पर जमकर अखबारबाजी हुयी। नन्दकिशोर सोनकेशरिया के फैसले को प्रदेश के महामन्त्री चौहान ने गलत निर्णय करार देते हुये ना केवल निरस्त कर दिया वरन उनकी बहाली महामन्त्री के पर कर दी गई। अनुसूचित जाति की महिला पार्षद की पार्टी सदस्यता को जिला भाजपा ने ही बहाल कर दिया। इसमें यह बताया गया कि उनके स्पष्टीकरणसे सन्तुष्ट होकर बहाली की गई हैं। इसमें यह सवाल उठ खड़ा होता है कि निलम्बन के पूर्व कारण बताओ नोटिस क्यों नहीं जारी किया गया? भाजपायी हल्कों में यह माना जा रहा हैं कि ये सब गुटबाजी के कारण किया जा रहा हैं। गुटबाजी का राजरोग भाजपा में भी अब खुल कर दिखायी देने लगा हैं।
दिग्गी के विरोध के बाद भी हरवंश का बाबा रामदेव के शिविर में आना चर्चित-योग गुरू बाबा रामदेव का कार्यक्रम राजनैतिक हल्कों में काफी चर्चित रहा। बीते दिनों हुये इस कार्यक्रम में जहा। भाजपा के सभी प्रमुख नेता जिला अध्यक्ष सुजीत जैन, विधायकद्वय नीता पटेरिया एवं कमल मर्सकोले, पूर्व मन्त्री डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन, पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी,पूर्व विधायक नरेश दिवाकर आदि शामिल थे तो दूसरी ओर जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह और जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चन्देल शामिल थे। प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री ओर इंका के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह से बाबा रामदेव के खुले विरोध के चलते उनके मन्त्रीमंड़ल के सबसे ताकतवर मन्त्री रहे हरवंश सिंह का इस आयोजन में शामिल होना राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा आश्चर्यजनक माना जा रहा हैं। हालांकि केन्द्रीय मन्त्री कमलनाथ भी बाबा के कार्यक्रम में छिन्दवाड़ा में शामिल हुये थे और उन्होंने खुले आम बाबा के अभियान का समर्थन भी किया था। लेकिन सिवनी मेंहरवंश सिंह के शामिल होने को लेकर तरह तरह की चर्चायें हैं। कुछ लोगों का मानना हैं कि हरवंश सिंह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष बनना चाह रहें थे। लेकिन इन दोनों ही पदों पर दिग्गी राजा ने ऐसी रणनीति बनायी कि हरवंश सिंह का कुछ बन पाना तो दूर जो आज उनके पास हैं उसके भी जाने की तलवार उनके सिर पर लटकी हुयी हैं। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि कान्तिलाल भूरिया प्रदेश अध्यक्ष और अजय सिंह नेता प्रतिपक्ष बन चुके हैं जो कि दिग्गी खेमे के ही माने जा रहें हें। दिग्गी खेमे के ही प्रियव्रत सिंह युवक कांग्रेस के अध्यक्ष पद काचुनाव जीत चुके हैं। राजनैतिक हल्कों में चर्चा हैं कि ऐसी परिस्थिति में ठाकुर हरवंश सिंह की विधानसभा उपाध्यक्ष पद से बिदायी निश्चित मानी जा रही हैं। हरवंश समर्थकों का मानना हैं कि दिग्गी राजा की सोची समझी रणनीति के कारण ही हरवंश सिंह से लालबत्ती छिनने की नौबत आ गई हैं। लेकिन दूसरी तरफ कुछ लोगों का यह भी मानना हैं कि कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाले बाबा रामदेव के आयोजन में हरवंश सिंह इसलिये शामिल हुये कि कहीं उनकी गैरहाजरी में बाबा सिवनी में उनके खिलाफ ही कुछ ना बोल दे। हरवंश सिंह की यह आशंका सही भी साबित हुयी। उनके जाने के बाद पत्रकार वार्ता में एक पत्रकार ने यह सवाल कर ही दिया कि बैतूल में शिवााज सिंह चौान जिन पर डम्पर कांड़ का आरोप हैं,छिदवाड़ा में कमलनाथ जिस सरकार को भ्रष्ट कह रहें हैं और सिवनी में हरवंश सिंह जिन पर भ्रष्टाचार केकई आरोप हैं इन्हें सामने रखकर आप कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कैसे लड़ाई लडेंगेंर्षोर्षो बाबा इस प्रश्न से असहज हो उठे थे। हालांकि उन्होंने यह जवाब देकर मामले को टाल दिया कि मैं उन्हें जन प्रतिनिधि के रूप में तो जानता हूं लेकिन किसी को काई प्रमाणपत्र नहीं दे रहा हूं। लेकिन इसके पूर्व में बाबा ने यह भी कहा था कि जब हरवंश सिंह वन मन्त्री थे मैं उन्हें तब से जानता हूं और उनके यहां रुका भी हूंं। अब यह तो हरवंश सिंह ही जानते होंगें कि वे बाबा के आयोजन में क्यों गये थे और क्या वे किसी को कोई राजनैतिक संकेत देना चाहते थेर्षोर्षो
नरेश के आग्रह पर बाबा द्वारा शहीदों को माला पहनना हुआ चर्चित -संसद में एक भी शब्द ना बोलने वाले तथा सबसे ज्यादा गैर हाजिर रहने वाले चन्द सांसदों में जिले के दोनों सांसद शामिल है। इंका सांसद बसोरीसिंह मरकाम जहां एक भी शब्द संसद में ना बोलने वाले में शामिल है तो वहीं भाजपा सांसद के.डी.देशमुख सबसे ज्यादा गैर हाजिर रहने वाले सांसदों में शामिल हैं। जिले के दोनों सांसदों के इस व्यवहार से तो संसद में ऐसा सन्देश गया होगा कि इनके क्षेत्र देश के ऐसे विकसित क्षेत्र हैं जहां कोई समस्या नहीं हैं। जबकि प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े हुये इन क्षेत्रों में कई ऐसी ज्वलन्त समस्यायें हैं जिनके लिये संसद में लड़ना जरूरी हैं। चाहे वह छिन्दवाड़ा से नैनपुर छोटी रेल लाइन को बकड़ी रेल लाइन में बदलने की हो हो या रामटेक गोटेगांव नई रेल लाइन की हो या उत्तर दक्षिण गलियारे के तहत बनने वाली फोर लेन सड़क ीक की अनुमति की हो। लेकिन इन सांसदों ने अपनी संसदीय भूमिका से अपने मतदाताओं को निराश ही किया हैं।
सांसद मरकाम,देशमुख की संसदीय भूमिका से निराशा -पूर्व विधायक नरेश दिवाकर के आग्रह पर अपने एक दिवसीय प्रवास में बाबा रामदेव ने शासकीय सुधारालय के एक हिस्से में लग रहे कन्या महाविद्यालय में जोकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और सन्त विनोबा की प्रतिमाओं पर माला पहनायी। भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ देश भर में अलख जगाने निकले बाबा रामदेव ने जिन शहीदों की मूर्तियों पर माला पहनायी वह मूर्तियां किस विभाग ने किस मद से बनवायीं थी इसका खुलासा राज्य सरकार विधानसभा में भी नहीं कर पायी थी। कन्या महाविद्यालय के सुधार कार्य के दौरान इन मूर्तियों को बनवाया गया था जिसमें भारी भ्रष्टाचार होने की खबरें सुर्खियों में रहीं थी। उस दौरान यह भी कहा गया था कि ऐसे पैसे से शहीदों की मूर्तियां बनवा कर उनका अपमान किया गया हैं। जांच की मांग होने के बाद भी आज तक प्रदेश सरकार ने ना तो जांच की और ना ही दोषियों को दंड़ित ही किया। नरेश दिवाकर के कार्यकाल में गुरु गोलवलकर, नेताजी और सन्त विनोबा की ये मूर्तियां बनवायी गईं थी जिनका अनावरण संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में किया था। अपनी भारत स्वाभिमान यात्रा पर निकले बाबा रामदेव का पूर्व विधायक नरेश दिवाकर के आग्रह पर वहां जाना और माल्यार्पण करना जन चर्चाओं में आ गया हैं। पहले से ही यह चर्चा थी कि प्रथम पंक्ति में बैठ कर योग करने, माला पहनाने, मंच पर बाबा से आशीZवाद लेने और मंच पर आसीन होने के लिये ग्यारह हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक का पैकेज था। ऐसे मंच से और ऐसे कार्यक्रमों में बाबा के जाने से उनके अभियान को सिवनी में तो निश्चित रूप से ठेस ही पहुंची हैं।
राहुल गाँधी प्रकरण और आरटीआई का सच-ब्रज की दुनिया
मित्रों,वर्ष २००५ में जब अनलिमिटेड प्रोब्लेम्स एलायंस ने सूचना का अधिकार लागू किया था तब सोनिया गाँधी एंड फेमिली फूली नहीं समा रही थी.उनकी तरफ से बार-बार आत्मप्रशंसा से भरी घोषणाएं की जा रही थीं कि हमने जनता को वो चीज दे दी है जो आजादी के बाद से उसे नहीं मिली थी.उन्होंने मन-ही-मन कल्पना कर ली कि अब भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा क्योंकि उनका और देश की जनता का बहुत बड़ा सपना सच हो गया है.सत्य अगर इतना ही सरल होने लगे तो देश में राम-राज्य नहीं कायम हो जाए?इस कानून के आने के ६ साल बाद भी वास्तविकता तो यह है कि किसी भी राज्य में यह कानून लागू हुआ ही नहीं है;जो कुछ भी हुआ है सब सिर्फ कागज पर हुआ है.
मित्रों,कोई भी कानून अच्छा या बुरा नहीं होता;अच्छे और बुरे होते हैं उन्हें लागू करनेवाले लोग.अब सूचना का अधिकार कानून को ही लीजिए;इस कानून का बेड़ा उन्हीं लोक सूचना पदाधिकारियों ने गर्क किया है जिन पर इसे लागू करने की महती जिम्मेदारी थी.कहीं-कहीं राज्य सरकारों ने भी राज्य सूचना आयोग में पदों को रिक्त रखकर इस दिशा में अपना महान योगदान दिया है.बिहार की हालत से एक आरटीआई कार्यकर्ता होने के नाते मैं अच्छी तरह से वाकिफ हूँ.यहाँ के लोक सूचना पदाधिकारी सूचना देने से ज्यादा सहूलियत जुर्माना भरने में महसूस करते हैं.अधिकारी घूस में कमाई गयी पतली कमाई को पतली गली से जुर्माना के रूप में सरकारी खजाने में जमा कर दे रहे हैं लेकिन सूचना नहीं देते.साथ ही बिहार सरकार ने पिछले दिनों कई महीनों तक राज्य सूचना आयोग में सभी महत्वपूर्ण पदों महीनों तक रिक्त रखा.
मित्रों,विकास दर के मामले में चीन से टक्कर लेनेवाले राज्य गुजरात में आरटीआई कार्यकर्ताओं को सरेआम गोलियों से भून दिया जाता है.वहां अभी भी एक आरटीआई कार्यकर्ता सरकारी अधिकारियों द्वारा झूठे मुकदमों में फँसाए जाने से परेशान होकर कई हफ़्तों से अनशन पर बैठा है.उत्तर प्रदेश में भी इस कानून की हालत लगातार चिंताजनक बनी हुई है.अभी कुछ ही दिनों पहले यूपीए के युवराज राहुल गाँधी ने वहां के स्वास्थ्य विभाग से कुछ सूचनाएं मांगी थीं.उन्हें सूचना देने के बदले विभाग ने उल्टे खर्च के नाम पर लाखों रूपये मांग दिए.ऐसा हमारे साथ भी बिहार में हो चुका है.२०-२५ लोगों के नामों की सूची मांगने पर मुझसे खर्च के नाम पर लाखों रूपये मांग दिए गए.कई बार तो बिहार में लोक सूचना पदाधिकारी आवेदन-पत्र ग्रहण करने से ही मना कर दे रहे हैं और पत्र वापस आ जा रहा है.
मित्रों,जब राहुल गाँधी जैसी शख्सियत को यह अधिकार प्राप्त नहीं हो पाया तो फिर प्रदेश में किसे प्राप्त होगा?केंद्र सरकार की स्थिति इस मामले में संतोषजनक जरुर है लेकिन राज्यों में तो आज तक जनता को यह अधिकार मिला ही नहीं.सूचना मांगो तो खर्च के नाम पर लम्बी-चौड़ी राशि की मांग कर दी जाती है.जहाँ केंद्र सरकार से सम्बद्ध मामलों में अपील करने पर कोई शुल्क नहीं लगता,राज्य सरकारों ने अपील के लिए मोटी फ़ीस निर्धारित कर दी है.स्पष्ट है कि राज्य सरकारें नहीं चाहतीं कि कोई व्यक्ति सूचना से संतुष्ट नहीं होने पर अपील करे.बिहार में यह राशि ५० रूपया है.उस पर बिहार सरकार ने इस कानून में प्रश्नों की संख्या भी अपनी ओर से निर्धारित कर दी है.आप बिहार में एक आवेदन पर सिर्फ और सिर्फ एक ही प्रश्न पूछ सकते हैं.
मित्रों,वर्तमान केंद्र सरकार जिसने भारतीय जनता को यह महत्वपूर्ण अधिकार दिया है;राहुल-प्रकरण से अच्छी तरह से समझ गयी होगी कि यह कानून पूरी तरह से फेल हो चुका है.भ्रष्टाचार के सीने पर चलाया गया यह ब्रह्मास्त्र अपने लक्ष्य से पूरी तरह चूक चुका है.केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इस कानून की अविलम्ब समीक्षा करे और पता लगाए कि इसमें कहाँ-कहाँ कमी रह गयी है और तदनुसार सुधार के लिए अपेक्षित कदम उठाए.दोषी अधिकारियों को केवल आर्थिक दंड देने से काम नहीं चलनेवाला;उन्हें निलंबित और बर्खास्त करने की भी इस कानून में व्यवस्था की जानी चाहिए.अच्छा हो कि राज्य सरकारों से इस विधेयक में संशोधन करने का अधिकार ही छीन लिया जाए.अगर केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो फिर इसे वापस ही ले ले जिससे जनता इस अधिकार के भुलावे में आकर अपने धन,श्रम और समय का अपव्यय करने से बच सके.30.5.11
दुधिया घास के करिश्मे miracles of euphorbia hirta
दुधिया घास के करिश्मे miracles of euphorbia hirta
अभी कुछ दिन पहले , मैं एक ८० वर्षिया महिला से मिला जो मेरी कालोनी में ही रहती हैं . वो पहले बहुत बीमार थीं. मैंने पूछा तो बोली , मैं बिलकुल ठीक हूं. मैंने कहा कैसे, तो उन्होंने , कहा दुधिया घास से. मैंने पूछा कि वो कैसी होती है , कहाँ मिलती है , तो हम जिस पार्क में खरे थे, वहीँ उन्होंने खर पतवार की तरह उगी हुई घास दिखा दी.
अब मैंने पूछा कैसे लेनी है, तो उन्होंने कहा उनकी कमर में दिक्कत थी , सीधे खरी नहीं हो पाती थीं. उन्होंने केवल इसे पीस कर दो बार लगाया.
मैंने उनसे इसके बारे में और जानकारी चाही तो उन्होंने इसका वैज्ञानिक नाम पता कर के दे दिया. फिर तो मैं और कम्प्यूटर जिंदाबाद .
इसके बारे में और क्या कहूँ, सिर्फ इसका कम्प्यूटर नाम लिख देता हूं शेष आप करें. और क्या क्या फायदे हैं.
इसका नाम : हिंदी : दूधिया घास , वैज्ञानिक नाम : euphorbia hirta
एक साईट यह ढूंड पाया हूं, पर इन्टरनेट पर तो हजारों साईट हैं.
यदि किसी का कोई प्रश्न हो तो निसंकोच फोन पर भी पूंछ सकते हैं . क्योंकि श्री गीता जी के अध्याय १२ श्लोक ४ के अनुसार कुछ भला करने का निमित्त बन जाएँ , ऐसा मौका छोरना नहीं चैहिये .
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः॥१२- ४॥
सभी प्राणीयों के हितकर, वे भी मुझे ही प्राप्त करते हैं।
पर यह ध्यान रखना परेगा कि ये दवाएं तो निमित्त मात्र हैं, ठीक करने वाला तो इश्वर ही है.
धन्यवाद , अशोक गुप्ता , दिल्ली , फोन : 98 10 89 07 43
ashok.gupta4@gmail.com
just a few days back , i have come across an old lady of about 80 years in my locality. she told her miraculous experiences with this commonly available herb. she told me how to recognise this , and i found that this is growing all over the parks in my place.
you can go through this link and if you need to know anything , you are most welcome.
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ठीक करने वाले का चित्र :
क्या यह डाक्टर लगता है !
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भारत और स्वदेशी , कितना संभव
देसी विदेशी , एक मनोरंजक चर्चा.
चर्चा शुरू हुई : इस विषय से :
ॐ सनातन परमोधर्म ॐ जो लोग भारतीय राष्ट्रवाद का दंभ भरते हैं और पाखंड रचते हैं, वे भी आज वृहत्तर भारत और अखंड भारत की हितचिंता से कोई सरोकार नहीं रखते और विदेशियों का साथ देते आसानी से देखे जा सकते हैं।
फिर होते होते यहाँ तक पहुंची .
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आदरणीय डा साहिब,
आपके देश प्रेम के सामने मैं नतमस्तक हूं.
मेरा निवेदन इतना मात्र था , कि जीविका के लिए मैं जरूर विदेश व्यापार कर रहा हूं, पर यथासंभव अपने देश का लाभ ही ऊपर रखने का प्रयास रहता है, अपना माल अधिक से अधिक मूल्य पर बेचना व उनकी चीजें कम कीमत पर लाने का प्रयास ही रहता है , और मैं यह व्यापार करके यथासंभव देश के मुनाफे को गलत लोगों के हाथों से बचाने का प्रयास ही करता हूं.
पर सरकारी लोग व नेता हमारे जैसे लाख प्रयासों को अपने एक सोदे से ही बराबर कर देते हैं.
इसके लिए हमें सब लोगों को जागरूक करना परेगा .
जब तक आप जैसे बुद्धिजीवी आगे नहीं आयेंगे , इस देश को बचाना कठिन है .
आपका
अशोक गुप्ता,
दिल्ली
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2011/5/30 Dr shyam gupt <drshyamgupta44@gmail.com>
स्वयं का विदेश से व्यापार करना या विदेशी वस्तुयें जो आपके पास उपलब्ध नहीं हैं उनका प्रयोग करना ( यद्यपि यथासम्भव विदेशी वस्तुओं के प्रयोग से बचना चाहिये) एक अलग बात है..... विदेशी कम्पनी जो अपने यहां आकर धन्धा कर रही है वह तो आपके देश के धन का शोषण करती ही है और कुछ हिस्सा आपको देती है अत: निश्चित ही आप भी भागीदार हुए....निश्चय ही आपने सही कहा...यद्यपि एलोपथिक दवायें सब देश में ही बनती हैं...एलोपथिक ग्यान का उपयोग होता है...परन्तु वास्तव में ही यह आदर्श स्थिति नहीं है......हमें निश्चय ही आयुर्वेदिक तन्त्र का विकास करना चाहिये जिससे अरबों-अरबों की मुद्रा की बचत होगी.....परन्तु यह आज़ादी से पहले की व तुरन्त बाद बात है जब हमारे पास अधिक विकल्प नहीं थी और हम तीब्र विकास के राही थे.....आज स्थित अलग है हम विदेशी वस्तुयें...धन...सन्स्क्रिति...विचार...कम्पनियों को बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं..
आदरणीय डॉक्टर साहिब ,
यदि मेरी कम्पनी विदेश व्यापार करती है , तो इसमें गलत क्या है , हमारी सेनाएं बिना विदेशी हथियारों के बेकार हैं. आपकी कार में विदेशी पट्रोल डलता है . यह जी मेल विदेशियों के द्वारा चलाया जा रहा है .
यदि आप डाक्टर हैं तो विदेशी दवाइयों से ही इलाज कर रहे होंगें.
मेरा फोन नं . ९८१०८ ९०७४३ है, यदि आप देना चाहे तो अपना नंबर लिखिए, तो चर्चा करके शायद में कुछ जान पाऊं , जो मुझे अभी तक ज्ञात नहीं है .
भवदीय
अशोक गुप्ता
दिल्ली
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2011/5/29 Dr shyam gupt <drshyamgupta44@gmail.com>
आपके पते व पद वर्णन से नहीं लगता कि आप स्वतण्त्र व्यापारी हैं अपितु बहुराष्ट्रीय कं में सेवा-योजित होने का भाव लगता है।2011/5/29 arun gupta <richmond.intel@gmail.com>आदरणीय डॉक्टर साहिब,मैं पिछले ३० वर्षों से विदेशों के साथ व्यापर कर रहा हूं. विदेश व्यापार करना कोई देश को लुटाना नहीं है. सत्य नारायण की कथा में भी विदेश व्यापर का जिक्र है.आपसे बात करके खुशी होगी .अशोक गुप्तादिल्ली2011/5/26 Dr shyam gupt <drshyamgupta44@gmail.com>-----आप स्वयं एक बहुराष्ट्रीय क. में कार्य रत होकर विदेशी कम्पनी को देश की सम्पदा समेटने में सहयोग दे रहे हैं.....2011/5/25 arun gupta <richmond.intel@gmail.com>आदरणीय डा साहिबमैं समझा नहीं मेरी किस बात पर आपने यह कोममेंट्स किया है.धन्यवादअशोक गुप्ता , दिल्ली2011/5/24 Dr shyam gupt <drshyamgupta44@gmail.com>Then why the hell you are working for a videshee firm...to help them to extrect money from your country by helping these corrupt people, to make them more corrupt.2011/5/23 arun gupta <richmond.intel@gmail.com>
आदरणीय जमाल भाई ,
क्या इस विषय में आप अपने विचार लिखेंगे / भेजेंगेशुक्रियाअशोक गुप्ताdanger to hindus from muslims or from within themselves ?हिंदू को खतरा मुसल्मानूं से या हिंदुओं से
हिंदुओं को खतरा मुसलमानों से या अपने अंदर की मूर्खता से !
यह नीचे लिखा लेख हिंदुओं को मुसलमानों की बढ़ती आबादी से खतरे के बारे में है.मगर मेरा यहाँ कहना है कि मुसलमानों में कितने आतंकवादी होंगें.वे कितना नुक्सान कर पाएंगे .मगर, ये जो नेता और I A S की फ़ौज हिंदुओं व देश का नुक्सान कर रही है , वह तो मुसलमानों के नुक्सान के आगे नगण्य है.आप क्या कहते हैं.दूसरा सबसे बार नुक्सान उस जनता से है जो नाम से , पैदाइश से , तो हिंदू है , पर न तो वो हिंदू हैं . न मुसलमान , वे केवल हिंदुइ़त के नाम पर कलंक हैं.न तो वो हिंदू के हैं , न देश के.वे अपनी खुद की हवस के लिए , हिंदुओं को , अपने देश को , अपने जमीर को ( जो है ही नहीं ) बेचे हुए हैं.ये कलमाड़ी , राजा , करूणानिधि , उसी प्रकार के जैचंद व हिंदू हैं.इसका इलाज यह है कि यदि कुछ बुद्धिजीवी हिंदू संत या नेता बचे हों तो वे हिंदुओं को वास्तविक हिंदू बनाने का अभियान युद्ध स्तर पर छेरें .और इन हिंदुओं से मुसलमानों को डरने की जरूरत न होगी. क्योंकि उन हिंदुओं का विश्वास अपने असली धर्म , में , भगवान में, श्री गीता जी में होगा .जो कहती है कि अन्याय, अत्याचार नहीं सहेंगे , मगर हर जीव में भगवान को देखेंगे. (गीता अध्याय ५ श्लोक १८ :विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥५- १८॥
ज्ञानमंद व्यक्ति एक विद्या विनय संपन्न ब्राह्मण को, गाय को, हाथी को, कुत्ते को
और एक नीच व्यक्ति को, इन सभी को समान दृष्टि से देखता है।आप क्या कहते हैं, मैं कितना गलत हूं !