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वो दूंड रही थी बेचेनी में ,
करुण क्रंदन के साथ,
वो चिड़िया ,
हाँ --------
वो चिड़िया ---
कल था उसका बसेरा जहाँ ,
आज ढेर था पड़ा बहाँ ,
सुबह सबेरे के उगते सूरज कि लालिमा ,
आसमान में किसी चित्रकार कि चित्रकारी का नमूना सी दिखाई देती थी जहाँ,
कोयल कि तान और
कौओ की कर्कश ध्वनि के साथ किसी के आने का सन्देश देती आवाज़ ,
अब सब लुप्त होती जा रही हें गिरती बिल्डिंग के साथ,
और वो प्यारा सा रंगीन पंखो बाला नीलकंठ !
जिसकी आवाज़ सुन बैचेन हो उटता था मन उसे देखने को ,
कभी-कभी दिखा करता था कबूतर का इक जोड़ा अक्सर
जो बरबस ही होंटों पर ले आता था मुस्कान
उनकी अठखेलियाँ --------------------
कभी कबूतरी को मनाता कबूतर
और कभी गर्व से सीना ताने कबूतरी पर हुकुम बजता सा प्रतीत होता था
आज
आज सब सूना हें
वीराना हें आज चारो तरफ,
बस दिखाई देते हें तो ,बेचेनी में अपना आशियाना दूंदते वो पंछी
अपने करुण क्रंदन के साथ
चले जायेंगे फिर कहीं हमेशा -हमेशा के लिए
दिन-दो-दिन इसी तरह बेचेनी में चक्कर लगाते ,
वापस कही दूर -----
और रह जाएँगी तो बस
दिल में मेरे ये यादे और हर वक्त नश्तर की तरह चुभती ये इमारते
और ये सीमेंट और कंक्रीट के जंगल
नहीं आयेंगे वापस वो
चले जायेंगे सदा -सदा के लिए कही दूर
बहुत दूर ------------------------------
संगीता मोदी "शमा"
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