12.6.11
मरती संवेदना.................
क्लॉस में काफी हँसी खुशी का वातावरण था। सभी बच्चे काफी गम्भीरता के साथ सर का लेक्चर समझने का प्रयास कर रहे थे। परन्तु पता नहीं, ये किसका दोष था- अध्यापक का, छात्र-छात्राओं, सेलेबस का या पढ़ने के लिए प्रयोग की जा रही विधियों का, कि न तो पढ़ाने वाले को ये समझ आ रहा था कि वो क्या पढ़ा रहा है और न ही पढ़ने वालों को ही पता लग रहा था कि वे क्या पढ़ रहे हैं।
लेकिन फिर भी क्लॉस में हँसी खुशी का माहौल था। ये शायद उम्र का दोष भी हो सकता है कि इस उम्र में अध्यापक पढ़ाने के लिए रसहीन हो जाते हैं और छात्र..............। छात्रों के पढ़ने के मूड से तो सभी वाकिफ हैं। असल में ये क्लॉस थी बी0 टेक0 सेकण्ड सैम की। और मैं इस कक्षा की निर्जीव बैंच हूँ।
इस क्लॉस में मैं सभी कुछ ध्यानपूर्वक देखती हूँ या आप मुझे चश्मदीद गवाह भी कह सकते हैं। इस कक्षा में घटने वाली हर घटना की साक्षी। वैसे सच कहूँ तो मुझे ये क्लॉस बहुत पसंद है। क्योंकि इस क्लॉस के सभी बच्चे हृदयस्पर्शी हैं। ये एक-दूसरे की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। एकता की भावना का बेहतरीन उदाहरण इस क्लॉस मंे आपको मिल जायेगा।
हालाँकि पाँचों अँगुलियाँ एक समान नहीं होती। कुछ छोटी-छोटी बातें तो होती ही रहती हैं पर फिर भी मुझे इस क्लॉस पर पूरा भरोसा है।
मेरे ऊपर तीन लड़के बैठे हुए थे- राहुल, सुधांशु और संदीप। तीनों ही पढ़ने में बहुत अच्छे हैं। संदीप इस शहर का नहीं है। वह लखनऊ निवासी है। लखनऊ से सम्बन्धित होने के कारण ही उसकी बोली इतनी मीठी है कि मेरा मन बस उसे ही सुनते रहने को करता है। ‘हम कह रहे हैं ना, आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।’, ‘ये सर तो क्या पढ़ा जाते हैं, हम तो कुछ समझ ही नहीं पाते है।’ उसकी ऐसी-ऐसी बातें मेरे भी मन में मिठास घोल देती हैं। पतला-दुबला सा संदीप यहाँ अपने बचपन के दोस्त के साथ कमरा किराय पर लेकर रहता है।
वह अक्सर बीमार रहता है। परन्तु अर्न्तमुखी होने के कारण किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करता। आज भी वह कुछ अस्वस्थ ही लग रहा था।
सर का लेक्चर आगे चल रहा था परन्तु पहली बैंच से आखरी बैंच तक के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई का विषय भिन्न-भिन्न था। निशा अपना असाइन्मेंट पूरा कर रही थी क्योंकि यदि आज जमा नहीं हुआ तो नम्बर नहीं मिलेंगें। आकाश किसी दूसरे विषय की पढ़ाई में तल्लीन था, उसे सर के लेक्चर मंे मजा नहीं आ रहा था। सुनीता के ट्यूशन क्लॉस में टेस्ट था इसलिए उसे ट्यूशन का काम करना बहुत जरूरी था। पूजा अक्सर फोन पर व्यस्त रहती है और आज भी क्लॉस में वो वही कर रही थी। बहुत हिम्मत वाली लड़की है पूजा। उसे किसी से डर नहीं लगता। अजय एस एम एस का बहुत शौकीन है। इसलिए वो एस एम एस ही कर रहा था। कोई क्लॉस मंे ऐसा भी था जो सो रहा था। रीना को भी बहुत तेज नींद आ रही थी। पूरी क्लॉस इसी प्रकार की पढ़ाई में गम्भीरता से व्यस्त थी। (आजकल के कॉलेजों में अक्सर ऐसी ही पढ़ाई होती है।)
पर फिर भी क्लॉस में पढ़ाई चल रही थी। संदीप को भी अब तो शायद नींद आने ही लगी। वह धीरे-धीरे अपना सिर मुझ पर रखने लगा और अन्ततः मुझ पर लेट ही गया। लेकिन ये तो...........अचानक.......................
अरे...............ये क्या? ये तो अचानक बराबर में बैठेे सुधांशु पर गिर गया। क्या हुआ संदीप? तुम ठीक तो हो?
सर..........................संदीप बेहोश हो गया।
(पूरी क्लॉस में हड़कंप मच गया। आखिर अचानक संदीप को क्या हुआ? मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। बस चारों ओर छात्र-छात्राओं की भीड़ दिखाई दे रही थी जो केवल संदीप को देखती हुई ‘क्या हुआ? क्या हुआ?’ का राग अलाप रही थी।) तभी सर आ गये........................
क्या हुआ? कौन है ये लड़का? इसी क्लॉस का ही है क्या? कैसे बेहोश हो गया?
(सर की बातें सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा था। क्लॉस में रोज पढ़ाने वाले अध्यापक को अपनी कक्षा के विद्यार्थियों के विषय में इतनी भी जानकारी नहीं थी कि वे उनकी इतनी भी पहचान कर सकें कि छात्र उनकी ही कक्षा का है अथवा किसी और कक्षा का।)
दूर खड़े होकर सर ने प्रश्नों की बौछार तो खूब की परन्तु उसको (संदीप को) भली-भाँति लेटाने के लिए एक कदम न बढ़ा सके।
मैं समझ नहीं पा रही थी कि ये इस कक्षा के जिम्मेदार अध्यापक है या कोई तमाशबीन?
यह अध्यापक की ही जिम्मेदारी होती है कि यदि किसी विद्यार्थी को किसी प्रकार की कोई भी परेशानी हो तो उसे ‘प्राथमिक चिकित्सा’ उपलब्ध करायी जाये।
पर ये तो एक मूक दर्शक की भाँति खड़े हो गये थे।)
सर, डारेक्टर सर को फोन कर दीजिए। संदीप को हॉस्पिटल ले जाना चाहिए। सुधांशु ने कहा।
ठीक कहते हो तुम, यही करना चाहिएं अभी करता हूँ। पर पहले देखना जरा इसकी जेब में कोई फोन है क्या? वो क्या है ना मेरे फोन में बैलेंस नहीं है और कॉल रेट भी मँहगी है।
(छी! कितनी ओछी बात कर रहे थे वे सर। शर्म आती है ये सोचकर भी कि आज के हमारे अध्यापक कितने गैर जिम्मेदार हैं।)
हाँ सर, फोन तो है। ये लीजिए। राहुल ने संदीप का फोन सर को दे दिया। (नम्बर मिलाने के बाद.......................)
हाँ सर मैं बोल रहा हूँ। जी हाँ, जी हाँ। हाँ सर, सब ठीक है। आपकी कृपा है। और घर में सब ठीक है ना, भाभी जी, बच्चे? क्या कर रहें हैं आजकल। ओहो, बहुत बड़े हो गये हैं। हाँ जी। वो आज आपकी बहुत याद आ रही थी तो सोचा बात ही कर लूँ। जी सब आपकी महरबानी है। जी सर, एक छोटी सी दिक्कत है। नहीं-नहीं ज्यादा घबराने वाली बात नहीं है। वो क्लॉस में एक लड़का बेहोश पड़ा है। हाँ, पता नहीं क्या हुआ। आप तो जानते ही हैं इन लड़कों को। किया होगा कुछ नशा वगैराह। हाँ-हाँ आप ज्यादा परेशान ना होएँ, मैं देख लेता हूँ। आप आराम से आ जाइये। ओके साहब नमस्कार।
(मैं यह सोच रही थी कि क्या भाभी जी व बच्चे उस बेहोश पड़े इंसान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गये हैं। मरते हुए व्यक्ति के लिए इनके (सर के) मन में कोई संवेदना नहीं है। और जिस विद्यार्थी की पहचान तक वे नहीं कर पा रहे थे, उस पर नशा करने का आरोप लगा रहे हैं। गुरू जिसे माता-पिता से पहले पूजा जाता है, आज ऐसे शिक्षकों ने उसे कितनी निम्नतम श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।
तभी एक अन्य सर प्रवेश करते हैं।)
क्या बात है सर जी, आज क्लॉस नहीं छोड़नी है क्या ? अजी बहुत तेज भूख लगी है। अब चलिए भी। और ये क्या इन छात्रों के बीच ऐेसे क्यों घिरे खड़े है? क्या हुआ?
कुछ नहीं जनाब, ये लड़का बेहोश हो गया है। अरे भई कुछ करो आप लोग (छात्रों को कहते हुए)। इसके रिश्तेदारों को बुलाओ।
(और ये कहते हुए वे दोनों क्लॉस से बाहर चले गये।)
निशाः अरे चल सुनिता, अच्छा मौका है जल्दी से असाइन्मेंट पूरा कर लेते हैं। थैंक्यू संदीप। बस थोड़ी देर और बेहोश रहना। जल्दी चल सुनीता, तुझे भी तो अपना काम पूरा करना है।
पूजाः (फोन पर) हाय मोहित। कैसे हो? नहीं क्लास नहीं हो रही है। वो संदीप बेहोश हो गया। मैंने सोचा जब तक वो बेहोश है तब तक तुमसे ही बात कर लूँ। कहाँ हो अभी..........................
आकाश, अजय से-
यार मैं तो घर जा रहा हूँ। वैसे भी कोई पढ़ाई नहीं हो रही है और मुझे तो अब बहुत तेज नींद आ रही है।
(हे भगवान! मेरा इस क्लॉस के लिए जो भ्रम था वो टूट गया। क्या वाकई ये वो ही क्लॉस है? जो मैंने अब तक देखा था वो हस्ते-गाते खुशी के पल थे। पर आज जब मुसीबत में कोई है तो एक-एक व्यक्ति की पहचान हो रही है।
शायद वो सब मेरी गलतफहमी थी। और यही सच है। आज का इंसान वाकई इतना पत्थर दिल इतना स्वार्थी हो गया है कि मजबूर-लाचारों के आँसूओं से अपनी प्यास बुझाने लगा है। लोगों के दिलों से प्रेम, दया, सौहार्द के भाव समाप्त हो गये हैं। एक दूसरे से मिलने पर किया गया व्यवहार मात्र दिखावा है। लोग दो-दो चेहरे लेकर जीने लगे हैं। निजीत्व की भावना ने परोपकार जैसे शब्दों को अर्थहीन कर दिया।
आज ये सब देखकर मुझे ऐसा लग रहा है मानो मैं किसी सुनहरा सपना टूटने के कारण अचानक जग गई हँूं। वो सपना जिसमें मैं अपने आस-पास अच्छे लोेगों को देख रही थी, जिसमें मैंने खुशियाँ देखी, जिसमें मैंने लोगों के बीच उमड़ते प्रेम को देखा, जिसमें मैंने एक-दूसरे के लिए प्राण न्यौछावर करते देखा। पर जब सपना टूटा तो वास्तविकता जानकर बहुत दुख हुआ। कुछ भी वैसा नहीं रहा अब हमारे समाज में। यहाँ सिर्फ लोग अपना स्वार्थ साधने पर आमादा है। लोग सिर्फ अपने लिए जीने लगे हैं। दूसरों का दुख-दर्द उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। दूसरों के जलते झोपड़े पर अपनी रोटी सेंकना का हुनर आज के इंसान ने बखूबी सीख लिया है।
पर इस प्रकार का जीवन हमें किस दिशा में ले जा रहा है? क्या ये विनाश की ओर बढ़ते कदम नहीं हैं? क्या मरती संवेदनशीलता व मरती इंसानियत मरते समाज की पहली सीढ़ी नहीं है? क्या ऐसी भावनाएँ हमें इंसान कहने का हक प्रदान करती हैं?
सोचना होगा!!!!!!!!!!)
संदीप आधे घण्टे बेहोश पड़ा रहा। इस आधे घण्टे में सभी ने अपने-अपने जरूरी काम समाप्त कर लिए। पर किसी ने भी संदीप की सुध न ली...........
सच मे संवेदनहीन हो गया है इंसान
ReplyDeletethis is the reality of our society .feeling less persons are dominating our society and they think that they are on right path .very good post .thanks
ReplyDeletetnx a lot vandna ma'am n shikha ma'am. shikha ma'am dis is not only a imagination but also a real story. i jst gav it wrds only. but ol dat was really vry shamful. specially "teacher's part".
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