तख़्त बदल दो , ताज बदल दो ,
बेईमानो का राज बदल दो ।
देखो जनता आती है ,
परिवर्तन की आँधी लाती है ।
जन-जन अब हाल बदल दो ,
मिलकर सत्ता की चाल बदल दो ।
जाने कब ये बना था नारा , लेकिन अब भी लगता प्यारा ।
सत्ता पाकर भी जनता को , नहीं किसी ने कभी दुलारा ।
जाने कितने तख़्त बने , जाने कितने इतिहास बुने ।
जाने कितने नेताओं को , अदल बदल कर हमने चुने ।
मगर आज तक जनता का , नही कोई कल्याण हुआ ।
जो भी सत्ता में जाकर बैठा , वो अपने में ही भार हुआ ।
जाने कितने बदले ताज , जाने कितने बदले राज ।
निरीह असहाय जनता का, बनता नहीं है कोई काज ।
भूँखी-नंगी जनता का , उन्होंने भी नहीं हाल सुना ।
बड़े अरमानो से हमने , जिनको अपना नेता चुना ।
बदल गयी सब मर्यादाएं , भूल गयी पिछली भाषाए ।
केवल सत्ता याद रही , और याद रही उसकी भाषाए ।
भूल सभी जन-संघर्षो को , नेताओं ने बस दुराचार किया ।
जनता की आकंक्षाओ से,खुल्लम-खुल्ला व्यभिचार किया ।
याद रहे नहीं वादे उनको , भूल गए सब नाते उनको ।
बीते थे कुछ एक माह ही , जब सत्ता में जाते उनको ।
सत्ता है कुछ ऐसी ठगनी , मति-भ्रम वो कर देती है ।
अच्छे अच्छो के मन में , लालच वो भर देती है ।
फिर भी हमको लगता प्यारा , नारा ये कितना है न्यारा ।
खाकर लाठी-डंडो को भी , जनता ने इसे सदा दुलारा ।
मन में आश जगाता है , कभी मृग-तृष्णा सा बहलाता है ।
आज नहीं तो कल निश्चित ही , बदलेगा हाल बताता है ।
सत्ता सुख का बँटवारा , आखिर जन-जन तक पहुंचेगा ।
आएगा एक दिन वो भी , जब सबका चेहरा चहेंकेगा ।
मत आश करो नेता,बाबाओं का , ये सब चाटुकार हैं सत्ता के ।
तुम स्वयं ही अपने नेता हो , और योग्य भी हो तुम सत्ता के ।
मत देखो तमाशाई बन कर , कल घर तेरा भी जल सकता है ।
हम जैसी बेबस जनता से ही , कोई जन आँधी बन सकता है ।
तो आवो फिर से जोर लगाओ , क्यों बैठे हो तुम भी आ जाओ ।
आओ धरने पर तुम भी आओ , अपना भी दुःख-दर्द सुनाओ ।
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