क्यों ? ? ?
अगर भ्रस्ताचार केवल कुछ हजारों लोगों में होता तो वे इस दबाव के आगे झुक सकते थे.
पर भ्रष्टाचार तो इस देश की रग रग में समाया हुआ है.
शायद आप भूल गए होंगे, मुझे याद है , ४० साल पहेले भी , लड़की वाला पूछता था , लड़का क्या करता है , वे शान से बताते थे तनखा २०० रूपए और ऊपर की आमदनी भी है , और लरकी वाला निश्चिन्त हो कर रिश्ता कर देता था.
यानि भ्रष्टाचार को सामाजिक मान्यता मेरे होश सँभालने से पहेले की मिली हुई है.
करोरों सरकारी लोगों को , चपरासी से प्रधानमंत्री तक , कैसे बद्लूओगे .
यदि कोई इस खुशफहमी में रहना चाहें तो रहें , कौन रोक सकता है .
ये तो ब्लड कैंसर की तरह देश की नसों में घुसा हुआ है .
हर व्यक्ति जरा इमानदारी से अपने गिरेबान में झांक कर अपने से पूछे .
मेरी शुभकामनायें आंदोलन के साथ हैं.
अशोक गुप्ता
देल्ही
मुझे आपके विचार सटीक लगेश् आप सही कह रहे हैं, भ्रष्टाचार हमारे खून में व्याप्त है, हम तो सुधरना नहीं चाहते और सरकार को ही गाली देते रहते हैं, जब हमारी सामाजिक इकाई व्यक्ति ही भ्रष्ट है तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हमारे नेता ईमानदार हो जाएंगे
ReplyDeleteपूर्ण सहमत.
ReplyDeleteहम,दूसरों को उपदेश देते हैं
सरकारों को कोसते हैं
और,
खुद भ्रष्ट होने का
कोई न कोई
बहाना/तरीका ढूंढ ही लेते हैं.