सज्जनों की दोस्ती सात क़दमों तक साथ चलने से
हो जाती है ............................ ?
क्या मेरे जैसे दुर्जन के लिए
अट्ठाईस कदम भी
काफी नहीं ?
पखेरू की तरह उड़े दिनों के साए में
एक अनिर्वचनीय उदासी साँसें ले रही है ।
ऊपर
लहरों की तरह
दौड़ता रहा जीवन
जिसे अपने चार हाथों से थामे
हम -तुम आसमान की तरफ
देखते रहे अनवरत ।
दायित्व का बोझ अब लगभग उतर चला है ।
अब हमें अपनी उँगलियों को
आपस में उलझाकर खेलना होगा
अन्यथा उदासियाँ
डरावनी हो सकती हैं ।
चलो आज ही से सीखना
शुरू करें यह खेल ।
रहस्यवादिता भी अपनी एक विशिष्ट शैली है ,खोजना और रसास्वादन करना, आनंद अनुभूति की पराकाष्ठा है , गंभीर ओजपूर्ण काव्य अच्छा लगा , धन्यवाद जी /
ReplyDeleteलहरों की तरह
ReplyDeleteदौड़ता रहा जीवन
जिसे अपने चार हाथों से थामे
हम -तुम आसमान की तरफ
देखते रहे अनवरत ।
दायित्व का बोझ अब लगभग उतर चला है ।
गहन अभिव्यक्ति
dhanywaad!uday veer singhji .
ReplyDeletedhanywaad!sangeeta swaroopji .
ReplyDeletebadhiya prastuti
ReplyDeleteयकीनन अब यह खेल सीखना होगा
ReplyDeletedhanywaad!anaji.
ReplyDeletedhanywaad ! vermaji .
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