चाहे अन्ना हजारे हों की बाबा रामदेव ,मैंने अब तक किसी को भ्रष्टाचार पर कोई मौलिक बात करते नहीं सुनी ।
अनशन इत्यादि के जो तरीके प्रचारित किये जा रहे हैं , वे अगर ऐसे ही लोकप्रिय होते गए , जो कि अशिक्षाग्रस्त प्रजातंत्र में सहज संभव है , तो वह दिन दूर नहीं कि घोर अराजकता में हमारा देश डूबे । भ्रष्टाचार पर बाहरी रोक कोई स्थायी कारगर उपाय नहीं हो सकता । हर ऐसा उपाय अंततः लूट को बढ़ावा ही देता है । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भ्रष्ट क्यों होता है या क्यों होना चाहता है । इसे जाने बगैर और इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण के उपाय ढूंढे बगैर उपचार संभव नहीं है । श्रोता और पाठक भी गहरी समझ विकसित नहीं करना चाहते और सतही शोरगुल का ही हिस्सा बने रह जाना चाहते हैं । यह अनुचित है ।
आदरणीय डा. साहिब,
ReplyDeleteजो इनके पास है नहीं वो कहाँ से देंगे, पर हम आपसे तो अपेक्षा करते हैं, कुछ मोलिक चिंतन की .
Ashokji, dhanyawaad!
ReplyDeletevastutah manusya samaaj mein sthan ewam sammaan chahataa hai . yadi paise se wah mile to wah paisa chahataa hai aur yadi paise ko tyagane se wah mile to wah paise ko tyag deta hai . parantu manusya swabhawa se hee anukaranasheel hai Pawitra Geeta mein Srikrishna kahate hain, 'yadyadacarati shreshthastattadevetaro janah;
sa yatpramanam kurute lokastadanuwartate .- shrestha log jaisa karate hain aur sabhee unakee nakal karate hain .adhyaay-3.21.
yahan to jin logon ke smarak banaye ja rahe hain unamen kitane to dhoort awasarwadi ewam mahan Hindu sanskriti ke khullam khulla virodhee rahe hain . jo Hindu hokar mahan Vaidik darshan ki upeksha karate hon we auron ke dharm ka kya aadar karenge , han, awasarwaadee maanadand alag honge .
jan prashikshan kee jabardasht awashyakata hai . maine isee uddeshy se 'Governance and Kingship in the Views of Kalidasa and William Shakespeare' kee rachana ewam prakashan kiya hai . aaj itna hee .
आप ने सही मुद्दा उठाया है, वाकई आम आदमी के खून में बेईमानी व्याप्त हो चुकी है, और वह अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के आंदोलनों से समाप्त नहीं हो सकती, हकीकत तो ये है इन आंदोलनों में बढ चढ कर हिस्सा लेने वाले निजी अधिसंख्य तौर पर बेईमान हैं
ReplyDeletedhanyawad!Giridharji,sthiti to aisee hai ki bhrashton ka samaj mein samadar tak hai . samajh aur sadhana ko lagatar vikasit karne ki awashyakta hai .par yah maun baithane ya tatasth rahne ka samay naheen hai .
ReplyDeleteयह विषय कुरेदने के लिए धन्यवाद् ,भ्रष्टाचार पर मौलिक चिंतन पर विचार शुरू करते हुए कहना चाहता हूँ ,कि "मौलिक चिंतन" के माएने क्या ? सामान्य चिंतन और मौलिक चिंतन में फर्क ये होता है कि ,सामान्य चिंतन पर संदर्भित विषय के बारे में पहले से अर्जित सूचनाओं कि छाया होती है |
ReplyDeleteमौलिक चिंतन में विचारक संदर्भित विषय के पूर्व -ग्रहों से मुक्त रह कर विचार विचार-प्रक्रिया में प्रवेश करता है |
भर्ष्टाचार पर मौलिक चिंतन करने कि प्रक्रिया ,"आचार" पर विचार
से शुरू होगी ,क्योकि असल चीज तो आचार ही है ,भष्ट और सद तो उसके विशेषण हैं | आज-कल जिस सन्दर्भ के भ्रष्टाचार पर बहस हो रही है,उसी सन्दर्भ तक इस बहस को सीमित रखना ठीक रहेगा,इसलिए असीम दार्शनिक गहराइयों में उतरना ठीक नहीं रहेगा |
मानवीय स्वभाव के क्षितिज पर इस संसार के मनुष्य ,दो भागों में बंटे हुए हैं,,१.जो पृकृति-प्रदत्त अपने हिस्से से संतुष्ट रहते हैं और २.जिनको प्रकृति-प्रदत्त अपने हिस्से से कत्तई संतुष्ट नहीं रहते | हम सब जानते हैं कि ,प्रकृति के संसाधन असीम नहीं हैं | अब असंतुष्ट लोग अपने
हिस्से से अधिक लेना चाहेंगे तो वे किसी का हिस्सा ही छिनेंगे | इस छीना-झपटी से जो अराजकता पैदा होगी उसे ही नियंत्रित करने के लिए राज्य या राजा कि उत्पत्ति हुई थी ,ऐसा पितामह भीष्म ने महाभारत के शांति-पर्व में सर-शैया पर लेते हुए ,पांडवों को राज-धर्म बताते हुए कहा था |
यह भी सही है कि आज के भ्रष्टाचार -विरोधी आन्दोलन-कारिओं कि जमात विशुद्ध संतुष्ट लोगों कि जमात नहीं है | इसे, हमें.महा-असंतुष्टों के विरुद्ध कम असंतुष्टों के आन्दोलन के रूप में देखना चाहिए |
क्योंकि दोनों तरफ शुद्धता नहीं है इस लिए एक विशुद्ध शुद्धता -वादी दृष्टि से देखने से सिर्फ व्यर्थ के विवाद पैदा होंगे और इन व्यर्थ के विवादों से सिर्फ भ्रष्ट लोगो को ही फ़ायदा होगा | इसलिए मेरा मानना है
कि ,भष्ट व्यवस्था के लाभान्वित यथा-श्थिति-वादी जब इस विषय पर बात
करेंगे तो अलग तरह से और परिवर्तन-कामी अलग तरह से |
अब आज इतना ही ........
पवन श्रीवास्तव .