2.6.11

भ्रष्टाचार पर मौलिक चिंतन की आवश्यकता

चाहे अन्ना हजारे हों की बाबा रामदेव ,मैंने अब तक किसी को भ्रष्टाचार पर कोई मौलिक बात करते नहीं सुनी ।
अनशन इत्यादि के जो तरीके प्रचारित किये जा रहे हैं , वे अगर ऐसे ही लोकप्रिय होते गए , जो कि अशिक्षाग्रस्त प्रजातंत्र में सहज संभव है , तो वह दिन दूर नहीं कि घोर अराजकता में हमारा देश डूबे । भ्रष्टाचार पर बाहरी रोक कोई स्थायी कारगर उपाय नहीं हो सकता । हर ऐसा उपाय अंततः लूट को बढ़ावा ही देता है । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भ्रष्ट क्यों होता है या क्यों होना चाहता है । इसे जाने बगैर और इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण के उपाय ढूंढे बगैर उपचार संभव नहीं है । श्रोता और पाठक भी गहरी समझ विकसित नहीं करना चाहते और सतही शोरगुल का ही हिस्सा बने रह जाना चाहते हैं । यह अनुचित है ।

5 comments:

  1. आदरणीय डा. साहिब,

    जो इनके पास है नहीं वो कहाँ से देंगे, पर हम आपसे तो अपेक्षा करते हैं, कुछ मोलिक चिंतन की .

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  2. Ashokji, dhanyawaad!
    vastutah manusya samaaj mein sthan ewam sammaan chahataa hai . yadi paise se wah mile to wah paisa chahataa hai aur yadi paise ko tyagane se wah mile to wah paise ko tyag deta hai . parantu manusya swabhawa se hee anukaranasheel hai Pawitra Geeta mein Srikrishna kahate hain, 'yadyadacarati shreshthastattadevetaro janah;
    sa yatpramanam kurute lokastadanuwartate .- shrestha log jaisa karate hain aur sabhee unakee nakal karate hain .adhyaay-3.21.

    yahan to jin logon ke smarak banaye ja rahe hain unamen kitane to dhoort awasarwadi ewam mahan Hindu sanskriti ke khullam khulla virodhee rahe hain . jo Hindu hokar mahan Vaidik darshan ki upeksha karate hon we auron ke dharm ka kya aadar karenge , han, awasarwaadee maanadand alag honge .

    jan prashikshan kee jabardasht awashyakata hai . maine isee uddeshy se 'Governance and Kingship in the Views of Kalidasa and William Shakespeare' kee rachana ewam prakashan kiya hai . aaj itna hee .

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  3. आप ने सही मुद्दा उठाया है, वाकई आम आदमी के खून में बेईमानी व्याप्त हो चुकी है, और वह अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के आंदोलनों से समाप्त नहीं हो सकती, हकीकत तो ये है इन आंदोलनों में बढ चढ कर हिस्सा लेने वाले निजी अधिसंख्य तौर पर बेईमान हैं

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  4. dhanyawad!Giridharji,sthiti to aisee hai ki bhrashton ka samaj mein samadar tak hai . samajh aur sadhana ko lagatar vikasit karne ki awashyakta hai .par yah maun baithane ya tatasth rahne ka samay naheen hai .

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  5. यह विषय कुरेदने के लिए धन्यवाद् ,भ्रष्टाचार पर मौलिक चिंतन पर विचार शुरू करते हुए कहना चाहता हूँ ,कि "मौलिक चिंतन" के माएने क्या ? सामान्य चिंतन और मौलिक चिंतन में फर्क ये होता है कि ,सामान्य चिंतन पर संदर्भित विषय के बारे में पहले से अर्जित सूचनाओं कि छाया होती है |
    मौलिक चिंतन में विचारक संदर्भित विषय के पूर्व -ग्रहों से मुक्त रह कर विचार विचार-प्रक्रिया में प्रवेश करता है |
    भर्ष्टाचार पर मौलिक चिंतन करने कि प्रक्रिया ,"आचार" पर विचार
    से शुरू होगी ,क्योकि असल चीज तो आचार ही है ,भष्ट और सद तो उसके विशेषण हैं | आज-कल जिस सन्दर्भ के भ्रष्टाचार पर बहस हो रही है,उसी सन्दर्भ तक इस बहस को सीमित रखना ठीक रहेगा,इसलिए असीम दार्शनिक गहराइयों में उतरना ठीक नहीं रहेगा |
    मानवीय स्वभाव के क्षितिज पर इस संसार के मनुष्य ,दो भागों में बंटे हुए हैं,,१.जो पृकृति-प्रदत्त अपने हिस्से से संतुष्ट रहते हैं और २.जिनको प्रकृति-प्रदत्त अपने हिस्से से कत्तई संतुष्ट नहीं रहते | हम सब जानते हैं कि ,प्रकृति के संसाधन असीम नहीं हैं | अब असंतुष्ट लोग अपने
    हिस्से से अधिक लेना चाहेंगे तो वे किसी का हिस्सा ही छिनेंगे | इस छीना-झपटी से जो अराजकता पैदा होगी उसे ही नियंत्रित करने के लिए राज्य या राजा कि उत्पत्ति हुई थी ,ऐसा पितामह भीष्म ने महाभारत के शांति-पर्व में सर-शैया पर लेते हुए ,पांडवों को राज-धर्म बताते हुए कहा था |
    यह भी सही है कि आज के भ्रष्टाचार -विरोधी आन्दोलन-कारिओं कि जमात विशुद्ध संतुष्ट लोगों कि जमात नहीं है | इसे, हमें.महा-असंतुष्टों के विरुद्ध कम असंतुष्टों के आन्दोलन के रूप में देखना चाहिए |
    क्योंकि दोनों तरफ शुद्धता नहीं है इस लिए एक विशुद्ध शुद्धता -वादी दृष्टि से देखने से सिर्फ व्यर्थ के विवाद पैदा होंगे और इन व्यर्थ के विवादों से सिर्फ भ्रष्ट लोगो को ही फ़ायदा होगा | इसलिए मेरा मानना है
    कि ,भष्ट व्यवस्था के लाभान्वित यथा-श्थिति-वादी जब इस विषय पर बात
    करेंगे तो अलग तरह से और परिवर्तन-कामी अलग तरह से |
    अब आज इतना ही ........
    पवन श्रीवास्तव .

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