उसकी जितनी भी निंदा की जाये वो कम होगी ,
पर जब टप्पल ( अलीगढ़ ) , भट्टा परसौल में,
उ० प्र० पुलिस द्वारा लाठी गोली चलायी जा रही थी ,
जिसमे कितने किसानो की हत्या की गयी ,
किसानों के घरों में घुस कर पुलिस के लोगों ने महिलाओं ,
लड़कियों पर अत्याचार किये , उके घरो में आग लगा दी गयी ,
घर का सारा सामन नष्ट कर दिया गया ,
उस समय ये सारे मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और नेता ,
कंहा थे , आज जो हाय तोबा मच रही है , क्या सिर्फ इसलिए क़ि ,
दिल्ली में जो हुआ , उनका सम्बन्ध धनी और संपन्न माने जाने वाले , तबके से है ,
या फिर पीड़ित और हाय तोबा मचाने वालो के आपसी रिश्ते हैं ,
अन्ना , शांतिभूषण , केजरीवाल या अन्य गाल बजने वालों को
किसानो की माँ, बहनों पर पुलिसिया ज़ुल्म नहीं दिखाई दिया था .
क्या ज़वाब है , इसका किसीके पास ,
क्या मानवाधिकार सिर्फ उनके लिए हैं जो पैसे वाले है ,
या फिर उनके लिए है जो अपनी बात को मीडिया तक पहुचाने का मूल मन्त्र का प्रबंधन कर सकने में माहिर है .
जब तक नज़रों क़ि यह असमानता बनी रहेगी ,
तब ताक चाहे बाबा रामदेव हों या फिर कोई और , इसी तरह दमन का शिकार होते रहेंगे .
इसलिए मानवाधिकार का ढोल बजाने वालो और नेताओ ,
सबसे पहले अपनी नजरे सुधारो और बडे तथा ताकतवर और गरीबों , किसानो पर होने वाले अत्याचारों ,
का भेद करना बंद करो तभी अत्याचार और दमन की चक्की से मुक्ति मिलना संभव है .
वरना कल दिल्ली में हुआ है वो कल और कंही भी हो सकता है .
negative...thinking.
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