अफसोसजनक बात है कि लाखों दिलों में आदर के साथ बसने वाले स्वामी रामदेव ने अपने अनशन की बुनियाद झूठ के मंच पर रखी और नाम दे दिया ‘सत्याग्रह’। शीर्षासन पर बैठे लोगों से यूं तो ऐसी आशा नहीं की जाती, लेकिन फरेब बर्फ की तरह पिंघलता और उसके अंदर छिपाया गया सच अपने रूप में बाहर आ जाता है।महंगाई, भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता की भावनाओं को छले जाने का सिलसिला पुराना है। नेता यह काम अर्से से करते आ रहे हैं। बाबा ने कुछ नया भी नहीं किया। बेचारी जनता की नियति यही है। अति महत्वाकांक्षी होना बाबा पर भारी पड़ा। संभवतः बाबा खुद को भविष्य में प्रधानमंत्री के रूप में देख रहे थे। उन्होंने मांग शुरू कर दी कि जनता को प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार मिलना चाहिए। सवाल यह कि इससे लाभ किसको? जाहिर है बाबा के भक्त उन्हें ही कहते और बाबा कहते कि अब जनता कह रही है, तो मैं क्या करूं। बाबा की महत्वाकांक्षाओं से संत समाज भी उनसे नाराज रहा है।
'जाको प्रभु दारूण दुख देंही,
ताकी मति पहिले हर लैंही।' यह सच है कि बड़बोलेपन ओर अति महत्वाकांक्षाओं का अंजाम कभी अच्छा नहीं होता। बड़बोलेपन का झूठ इंसान का मजाक ही बनवाता है और लोगों को दूर करता है। बाबा के साथ ऐसा ही हो रहा है।
ताकी मति पहिले हर लैंही।' यह सच है कि बड़बोलेपन ओर अति महत्वाकांक्षाओं का अंजाम कभी अच्छा नहीं होता। बड़बोलेपन का झूठ इंसान का मजाक ही बनवाता है और लोगों को दूर करता है। बाबा के साथ ऐसा ही हो रहा है।
पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है,
ReplyDeleteफिर उसका विरोध होता है और फिर उसे
स्वीकार कर लिया जाता है ........
यासोनी जी महाराज को खुशफहमी में ही जीने दो, ऐसे लोग कोई बात समझना ही नहीं चाहते, ये अंध भक्त हैं, इनका कुछ नहीं हो सकता
ReplyDeleteBahut hee achchha vichar -post, aur teesra aksha-kathan bhi | Aap ki baat se bal mila ki hum bhi sahi kah rahe the |
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