17.6.11

कहाँ से लाऊं

कहाँ से लाऊं

तू चाँद का टुकड़ा और में अँधेरे की खुरचन
तुझे अँधेरे से बचा ले वो दीपक कहाँ से लाऊं

तू सुंदरवन का फूल ,मैं बीहड़ो का कंटक
तुझे दर्द से बचा ले वो दामन कहाँ से लाऊं

तू शीतल पुरवाई,मैं विध्वंसकारी आंधी
तुझे कष्ट से बचा ले वो घर आँगन कहाँ से लाऊं

तू शरद पूर्णिमा की चांदनी , मैं सूर्य का प्रचंड ताप
तुझे ताप से बचा ले वो चन्दन कहाँ से लाऊं

तू सुघढ़ नृत्यांगना मैं बंजारा नर्तक
हमें इक ताल पर नचा ले वो नर्तन कहाँ से लाऊं

तू पूजा की ज्योति, मैं  विद्रोह की चिंगारी
तेरी पवित्रता बचा ले, वो प्रेम पावन कहाँ से लाऊं

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