बाबा रामदेव जी जो योगाचार्य नहीं केवल योगासानाचार्य हैं, वे केवल आसन और प्राणायाम तक ही रह गए, काश कि वे अगले चरण प्रत्याहार को भी पा लेते तो चित्त की वृत्तियों को थोडा बहुत तो नियंत्रित कर पाते और इस तरह स्त्रियों के वस्त्र में न भागते , शायद बाबा गीता को नहीं मानते कि आत्मा अजर अमर है, वरना अपनी हत्या कि बात न उछालते. खैर , अब बाबा जी को पता लग गया होगा कि बहुत कठिन है डगर पनघट की, काजल की कोठरी में घुसने की माया का भी फल चख लिया, वेसे बाबा ने अपने सारे योग की मर्यादा मिटटी में मिला दी, "योगश्चित्त्वृत्तिनिरोध" अब जब उन जेसे yogasanacharya ही रोने पीटने लगेंगे, स्र्तियों के भीच छुप कर भागेंगे तो योग की तो मिटटी पलीत होगी ही.. कहाँ तो जान निछावर करते , कहाँ इस नश्वर काया को बचने लग गए.. आखिर वे वहां जान देने को ही तो अनशन कर रहे थे. khair, शंकराचार्य ने कहा था सब माया है..
"बाबा योगाचार्य नहीं योगसनाचार्य हैं ",सहमत हूँ | जहाँ तक रामलीला मैदान की लीला पर आपकी टिपण्णी का सन्दर्भ है ,वह योग ,योगी और कर्मयोग के बारे में आपके एकांगी और अधूरे विचार का परिचायक है | लक्ष्य-प्राप्ति के लिए एक सामान्य आदमी के प्रयास और एक कर्म -योगी के प्रयास में व्यावहारिक भेद होगा ही होगा | भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध प्रत्यक्ष लड़ाई लड़ने का साहस करने वाले किसी योगी. भले ही वह योगसनाचार्य ही क्यों न हो ,असमय मर जाने से उसका जीवित रहना ज्यादा जरूरी है ,इस बात को ,समझने की जरूरत है | एक बार तो कृष्ण को भी रणभूमि छोड़ कर भागना पड़ा था और एक बार अर्जुन को भी ब्रिहंलल्ला के वेश में एक वर्ष तक रहना पड़ा था ...पूरे सन्दर्भ को एक बार फिर से देखें | कहीं ऐसा न हो कि आपके इस शुद्धता-वादी दृष्टिकोण का लाभ भ्रष्टाचारियों और काले-धन-धारकों को मिल जाये | सोचिए ! देश आपका भी है ......
ReplyDeleterochak!par yah jaagrook hone ka samay hai .
ReplyDeleteऔरतों के पिटने पर रोना और इससे पहले हजारों सत्याग्रहियों को पिटता देख दो घंटे तक औरतों के कपडे में दुबक कर बैठना और भाग जाना भी शर्मनाक है
ReplyDeletebahuroopiay ji,
ReplyDeletesawal yahan yog ki vyakhya ka nahin hai, koi vyakti rajneetik roop se kisi astha ka labh uthana chahe ye ghalat hai, anna ko main samrthan deta hoon, parntu poore drishy me babaji me wh samata nahi dikhi jo ek karm yogi me bhi honi chahiye, ek chhoti si samsya me hi ro diye, zara tulna keejiye marxvadiyon se ladne wale un logon se jinhone ek ladakoo cader se pit pit kr bhi sangharsh karna nahi chhoda, mamata banerji ek udahran hain.. baba ne to samna hi nahi kiya aur chupchap palayan kr gaye...,rahi bat bhrashta char ki aur asamay ladne ki to bahut udahran ahi asamay marne walon ke,, bhagat singh se lekr laxmi bai tk, we bhi krishna ka udahran de kar bahg jate , kya kr leta koi... rahi bat kale dhan ki, to jahan ashiksha hai, jab tak hum chunav chihn per vot dalenege bajay nam padne ke tb tak to bhool jayen bhrashtachar mitne kyonki anpadh janta ka arth hai surakshit bhrastachar