8.6.11

‘‘स्पीक अप पेरेंट्स’’


‘‘स्पीक अप पेरेंट्स’’

एक 15 वर्षीय बच्चे ने जब स्पीक एशिया की तारीफों के कसीदें पढ़ने आरम्भ किये तो बहुत आश्चर्य हुआ। वह न केवल स्पीक एशिया के फरॉड होने की अफवाओं का सिरे से खण्डन कर रहा था अपितु इसके लाभ के लुभावने प्रलोभन भी दे रहा था। स्पीक एशिया फरॉड है अथवा नहीं, इससे परे इसकी दुष्प्रभावी, लालची हवाएँ अधिक खतरनाक हैं। यह युवाओं में अधिक धनार्जन का लोभ भर उन्हें पथभ्रष्ट कर रही है। माया की मीठी चाश्नी इतनी गूढ़ है कि आस-पास की सभी वस्तुओं को स्वयं में समा उनका भक्षण कर रही है। पैसा कमाने का यह शॉर्ट कट युवाओं को उनके करियर व पढ़ाई से तो विमुख कर ही रहा है, साथ ही इस अनापेक्षित धन से युवा विलासी भी होता जा रहा है। इस उपलब्ध धन ने उन्हें पार्टीज, बांड के शौक और मौजमस्ती के जीवन की ओर प्रेरित करना आरम्भ कर दिया है। अब वे माता-पिता को उल्टा जवाब देने में संकुचाते नहीं और आत्मनिर्भरता के अतिआत्मविश्वास के कारण अपने निर्णय स्वयं लेने के लिए ढ़ीठ भी हो रहे हैं। समस्या वास्तव में गम्भीर है। जीवन के प्रति गम्भीरता समाप्त हो रही है। मूल्यों का हृास हो रहा है। कम्पनी धोखेबाज है या नहीं से अधिक चुनौतीपूर्ण कम्पनी द्वारा समाज विशेषतः युवाओं को असुरक्षित, दिशाहीन व अंधकारमय भविष्य की गर्त में धकेला जाना है। अभिभावकों की सचेतता अति आवश्यक है। सम्भालिए बच्चों को।

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