मेरे पत्रकार बंधुओ , ज़रा इस फोटो को गौर से देखिये , इस फोटो को देख कर ऐसा लगता है , जैसे फोटो मे दिख रहे सम्भ्रांत लोग किसी अधकारी को कोई खुशखबरी देने गए हों , सभी के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही है , और अधिकारी महोदय भी जैसे फोटो सेशन दे रहे है , इस लिए उन्हों ने भी अपने चेहरे पर मुस्कान ओढ़ ली है , पर ऐसा है नहीं ,यह चित्र उस वक़्त का जय जब दक्षिण कन्नड़ जर्नलिस्ट्स यूनियन के पधादिकारी व अन्य सदस्य , मुंबई के मशहूर पत्रकार " ज्योतिर्मय डे " की हत्या किये जाने के विरोध मे मंगलोर के अतिरिक्त डी. सी . प्रभाकर शर्मा को शुक्रवार १७ जून को ज्ञापन देने गए थे .
ज्ञापन देने गए पत्रकारों के चेहरे मे अपने साथी की हत्या से उपजने वाला आक्रोश बिलकुल गायब था , बल्कि आक्रोश के स्थान पर अधिकारी के लिए मुस्कान थी .
है ना विलक्षण बात , अगर किसी का अपन कोई मारा जाता है , तो एक स्वाभाविक आक्रोश जन्म लेता है न कि मुस्कान ?
जब तक ऐसी फ़र्ज़ अदाई होती रहेगी , पत्रकारों को न्याय पाने क़ी आशा करना मृगमरीचिका के अलावा और कुछ नहीं है .ये मेरा विचार है , आप इस बारे मे कुछ अलग सोच रख सकते हैं .
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शर्मनाक
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