19.6.11

" ज्योतिर्मय डे " की हत्या पर आक्रोश क़ी जगह मुस्कान कैसे ====



मेरे पत्रकार बंधुओ , ज़रा इस फोटो  को गौर से देखिये , इस फोटो को देख कर ऐसा लगता है , जैसे  फोटो मे दिख रहे सम्भ्रांत लोग किसी अधकारी को  कोई खुशखबरी  देने गए हों , सभी के चेहरे  पर ख़ुशी झलक रही  है , और अधिकारी महोदय भी  जैसे  फोटो सेशन  दे रहे है , इस लिए उन्हों ने भी अपने चेहरे पर मुस्कान ओढ़ ली है , पर ऐसा है नहीं ,यह चित्र उस वक़्त का जय जब दक्षिण कन्नड़ जर्नलिस्ट्स  यूनियन के पधादिकारी व अन्य सदस्य , मुंबई के  मशहूर  पत्रकार " ज्योतिर्मय डे " की हत्या किये जाने के विरोध मे मंगलोर के अतिरिक्त  डी. सी . प्रभाकर शर्मा को शुक्रवार १७ जून  को ज्ञापन  देने गए थे .

ज्ञापन देने गए पत्रकारों के चेहरे  मे अपने साथी की हत्या से उपजने वाला आक्रोश  बिलकुल गायब था , बल्कि आक्रोश के स्थान पर अधिकारी  के लिए मुस्कान थी . 

है ना विलक्षण बात , अगर किसी का  अपन कोई मारा जाता है , तो  एक स्वाभाविक आक्रोश  जन्म लेता है न  कि मुस्कान ?
जब तक  ऐसी  फ़र्ज़ अदाई होती रहेगी , पत्रकारों को न्याय  पाने क़ी आशा करना मृगमरीचिका के अलावा और कुछ  नहीं है .ये मेरा विचार है , आप इस बारे मे कुछ  अलग सोच रख  सकते  हैं .
-- 

1 comment: