20.6.11

ज्योतिष के खिलाफ/ शवासन

  •  ज्योतिष के खिलाफ मेरे पास एक दमदार तर्क है | किसी भी व्यक्ति का जन्म समय ठीक अंकित नहीं हो सकता | सर से लेकर पाँव तक निकलते-निकलते ग्रह -नक्षत्र बदल जाते होंगे  | कौन सा समय उसके जन्म की घड़ी माना  जाता होगा  ? 
  • अरविन्द केजरीवाल [ने मानो बड़ी कृपा की जो ] आई ए एस छोड़कर सभ्य नागरिक सक्रियता में आये | लेकिन इसी नाते तो उन्हें शासन - प्रशासन का कोई अनुभव नहीं हो पाया , जो कि उनके उल -जलूल कामों और माँगों से स्पष्ट है | पहले आर टी आई,और अब लोकपाल के भीतर प्रधान मंत्री |
  • बाबाओं और गुरुओं की सूचना के लिए बताना है कि योग का एक महत्वपूर्ण  आसन है  जिसे , ऐसा लगता है कि वे जानते ही नहीं और इसीलिये केवल शारीरिक कसरत [physical exercise] कराकर नाम व धन कमाते एवं अपने कर्तव्य से मुक्त हो जाना चाहते हैं | जब कि यह अभी भी ओशो ध्यान शिविरों में कराया जाता है | वह है शवासन -शरीर को मृतप्राय छोड़ देना | मेरा सुझाव है कि यही आसन अब उनके लिए समुचित है | अब वे यही करें , और अन्य कुछ न करें | तो हम उनसे मुक्ति पायें |

6 comments:

  1. ज्‍योतिष के खिलाफ इस तर्क में कोई दम नहीं है .. 'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' के अध्‍ययन के बाद मैने समझा है कि .. भविष्‍यवाणी करने में मिनट सेकेण्‍ड की शुद्धता आवश्‍यक नहीं .. कुछ प्रकार की भविष्‍यवाणियां जन्‍म तिथि के सापेक्ष .. तो कुछ जन्‍म समय के सापेक्ष की जा सकती है .. दो घंटे के अंतराल में लग्‍न में या ग्रहों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है .. क्‍यूंकि ज्‍योतिष में पृथ्‍वी के सापेक्ष आसमान के 360 डिग्री को 30-30 अंश के बारह भागों में बांटा गया है .. और ग्रहों को इस 30 डिग्‍्री से बाहर निकलने में काफी समय लगता है !!

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  2. तर्क का कोई सिर पैर तो दीजिये? दूसरी बात आस्था के आगे कुछ भी नही।

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  3. कैसा कुतर्क पेश किया है आपने!

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  4. संगीता जी की बात ठीक लगती है । पर हमारा मूल ऐतराज यह है कि हम ईश्वर पर पूर्ण विश्वास क्यों नहीं करते? उसके साम्राज्य में अनावश्यक हस्तक्षेप क्यों करते हैं प्रकृति शोषक विज्ञानियों की भाँति ? वस्तुतः मुझे ईश्वर की अवमानना पसंद नहीं | क्यों हम अपना ख़राब भविष्य जानकार दोष शमन के नितांत स्वार्थपूर्ण उपाय करें , चाहे वह साधारण पूजा -पाठ -यज्ञ -हवन- आचमन हो ,या वह होते -होते बालिका -बलिदान , शत्रु -नाशक -यंत्र में बदल जाए ? देख रही हैं न आप हालात - समाचार अंधविश्वास-अंधभक्ति के ? फिर यदि वह सर्वज्ञ ,सर्वसमर्थ है तो मैं उसे समर्पित होकर सब उसपर क्यों न छोड़ दूँ ? मनुष्य को उसके ज्ञान ,अतिज्ञान का अहंकार ही मारे जा रहा है ,और यही उसे अंततः समाप्त करेगा | वह ज्ञान ज्योतिष का भी हो सकता है और बायोकेमिस्ट्री का भी | कोई भी ज्ञान जानलेवा न हो जाय ,इसलिए मैं उसे अपने अध्यात्म पर हावी नहीं होने देता ,और ऐसा ही अपने समस्त सह - मनुष्यों ,नागरिकों के लिए भी उचित समझता हूँ | सुडोकू ,कुछ गणितीय पहेलियाँ , और राशिफल पढ़ना मुझे मनोरंजक लगता है | कविता की तरह | मैं चिढ़ता नहीं | आत्मविश्वास धारण कर खेलना चाहता अवश्य हूँ अपने भविष्य के ज्ञान के साथ |पर इसके आगे ज्यादा दूर तक इसके साथ नहीं जाता | मैं मूरख केवल उतना ही भविष्य की कल्पना करता हूँ जितना उसे वर्तमान में गढ़ पाऊँ | और मूढ़ता की हद , कि मैं मनुष्यता के पक्ष में अपनी कुछ अज्ञानता को वरदान तुल्य मानता हूँ | जैसे कि यही -ज्योतिष | आप [अपने से कितने भी छोटे व्यक्ति को तुम कहना मुझे अच्छा नहीं लगता ]इतना कुछ जानती हैं ,हमारा नमन है आपको | हम नहीं जानते तो आपसे क्षमा तो माँग सकते हैं !

    पुनश्च : बताइये , सचमुच ,कि मेरा क्या होगा ? क्या मैं ऐसा ही मूर्ख का मूर्ख जीवन भर रह जाऊँगा ? नाम - उग्र नाथ , जन्म -९/९/१९४६ समय -पता नहीं | सप्रेम ,

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  5. ग्रहों का पृथ्‍वी के जड चेतन पर पडनेवाला प्रभाव प्रकृति का एक रहस्‍य है .. और प्रकृति के अन्‍य रहस्‍यों की तरह ही उसका ज्ञान होना भी आवश्‍यक है .. ताकि हम अपनी कार्यशैली या कार्यप्रणाली को संतुलित कर सकें .. ठीक उसी तरह जैसे हम कियी बीज को उपयुक्‍त खेत या उपयुक्‍त मौसम में लगाया करते हैं .. ज्‍योतिष की सही जानकारी अंधविश्‍वास को समाप्‍त करती है .. इसपर संदेह ही अंधविश्‍वास को जन्‍म देता है !!

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  6. संगीता जी, आप कहां पड गईं ज्योतिष के बारे में समझाने के चक्कर में

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