20.6.11

कहानी-सेहरा में खिल उठा है एक फूल..!! Part-2

कहानी-सेहरा में खिल उठा है एक फूल..!!  Part-2

सौजन्य-गूगल

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/06/part-2_20.html


" प्यार से, आराम से,आख़रि नतीज़े तक पहुँच ही गया..!!
  पता ढ़ूँढ कर,आखिर तेरे दिल तक मैं पहुँच ही गया..!!



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कहानी

अहमदाबाद पहुँच कर, रिक्शा भाड़े से ले कर, पता पूछता हुआ मैं, सही स्थान पर पहुंचते ही, रिक्शावाले को पैसे चुका कर, धीरे से आगे बढ़ा । मगर, जैसे ही आगे बढ़ा, मुझे थोड़ी हैरानी और हिचकिचाहट भी हुई..!!

मैंने  देखा कि, सामने वाले बंगले के कम्पाउन्ड में कई सारे सफेद वस्त्रधारी नर-नारी की चहल पहल हो रही थी..!! बंगले के बाहर छोटे से गार्डन एरिया में, एक पंड़ाल बंधा हुआ था, उस में एक फोटो रखी थी, जिस पर फूल हार चढ़े थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था  कि, यहाँ पर किसी मृतक की धार्मिक विधि हो रही थी..!! फिर भी एक पल के लिए मैं बंगले के गेट के पास रुका और फिर मैंने सोचा यहाँ तक आने के पश्चात बिना किसी को मिले वापस लौट जाना ठीक नहीं..!! आखिर, हिम्मत कर के मैंने बंगले के कम्पाउन्ड में प्रवेश किया ।

बंगले के कम्पाउन्ड में जा कर, सफेद वस्त्रधारी एक बहनजी से मैंने सवाल किया," क्या, प्रणव दादा यहीं रहते हैं?"

मानो, मैं किसी दूसरे ग्रह का प्राणी हूँ, ऐसे  मेरे सामने टकटकी लगाते हुए, उस बहनजी ने उल्टा, मुझ से ही एक सवाल पूछा," कहाँ से आयें हैं आप?"

मुझे लगा कि, प्रणवदादा का मैं कोई रिश्तेदार न होने की वजह से शायद  ये बहनजी ने मुझे पहचाना न होगा..!! 

मैंने बड़े ही विनम्र भाव से उत्तर दिया,"बहनजी, मैं  मुंबई से आया हूँ और पणव दादा और संध्या माँ से मिलना चाहता हूँ ।"

" आप मेरे पिछे-पिछे चले आइए..!!" कह कर बंगले के दीवान खाने में ले जा कर, एक कोने में, बहनजी ने मुझे बैठाया ।

" शायद, मैं ने भीतर आकर ठीक नहीं किया, आज बाहर से ही मुझे वापस चले जाना चाहिए था?" मेरे मन में विचार आया, फिर सोचा कि," कोई बात नहीं, मैं मुंबई से अहमदाबाद तक आया और किसी को कुछ कहे बिना अगर वापस चला जाता तो, मेरे मन में एक पीड़ा रह जाती,इसी बहाने इस परिवार में, कोई दुखद घटना घटी होगी तो, मैं भी उनके दुख में सहभागी बनूंगा..!!"  

बंगले के दीवान खाने में, मुझे  बैठा कर, भीतर से वही बहन मेरे लिए पानी का ग्लास ले आयीं जिसे विवेक पूर्ण ढंग से, मैंने पीने से इनकार किया तो, मेरे सामने की कुर्सी पर वह बैठ गईं और मेरे बिना पूछे  ही, बताया कि, " हमारी संध्या माँ का बारह दिन पहले अचानक देहांत हो गया है,  प्रणव दादा बंगले के पिछे के हिस्से में संध्या माँ की बारवीँ की विधि करवा रहे हैं, आपको थोड़ा इंतज़ार करना पड़ेगा..!!" 

मैंने उनकी बात पर, सम्मतिपूर्वक अपना सिर हिला कर सम्मति जताई तो, बहनजी फिर बंगले के दूसरे कमरे में चली गईं ।  


अरे..!! ये दर्दनाक हादसा क्यों और कैसे हो गया? संध्या माँ के देहांत के समाचार सुन कर मुझे बहुत दुःख हुआ ।  भीतर कमरे से, रह-रह कर, किसी के रोने की धीमी आवाज़ें आ रही थीं और इतने सारे लोगों की भीड़ और चल पहल होते हुए भी, अब मैं बिलकुल अकेला हो गया और मेरे मन का, एक छोटा सा कोना ढूंढ कर,  प्रणव दादा और संध्या माँ  के प्रसन्न दांपत्य के बारे में, मैं सोचने लगा ।

जी हाँ दोस्तों, आपने सही अंदाज़ा लगाया है, ये संध्या माँ,"सेहरा में खिल उठा  है  एक फूल,पार्ट-१ में  प्रस्तुत, प्रणव दादा नामक `सेहरा` की वही ,`नाज़ुक,मुलायम सी प्रिया बदरी`थीं,जिनका बारह दिन पहले देहांत हो गया था..!!  

अभी पिछले माह तो, प्रणव दादा और संध्या माँ, मुंबई में मुझे मिले थे और दोनों बिलकुल स्वस्थ लग रहे थे, फिर अचानक ऐसा क्या हुआ होगा की संध्या माँ और प्रणव दादा का सारस युग्म खंड़ीत हो गया?इतने प्रफुल्लित,ज़िंदादिल और मायालु दंपति-युग्म को खंड़ीत कर के ईश्वर को भी क्या मिला होगा?

जी हाँ, पिछले माह, मेरे एक साहित्य प्रेमी मित्र के यहाँ उनसे मिलने के लिए जब मैं पहुँचा तब, उनके यहाँ किसी मेहमान को देखकर मैंने तुरंत वापस घर जाने के लिए उनसे इजाज़त मांगी,पर मेरे मित्र ने कहा,"एक मिनिट,आपको मैं मेरे मेहमान का परिचय कराता हूँ ।" बगल के कमरे से उन्होंने, प्रणव दादा और संध्या माँ को बाहर बुला कर मेरा परिचय, साहित्य रसिक-संगीतकार के तौर पर कराया । मैंने अनुमान लगाया, प्रणव दादा करीब ६५ के और संध्या माँ ६० साल के होंगे । प्रणव दादा और संध्या माँ को मैंने प्रणाम किया और उनके सामने मैं बैठ गया ।

थोड़ी ही देर में,मुझे ज्ञात हो गया की, साहित्य और संगीत के प्रति, उन दोनों की रुचि, मुझ से भी कई गुना अधिक थीं । अप्रतिम वाचन रस के कारण, वह दोनों खूब पढ़ते थे और चाहे उप शास्त्रीय,शुद्ध शास्त्रीय या फिर फिल्मी संगीत हो, संगीत के मामले में भी, वह दोनों बहुत ज्ञानी गुणीजन श्रोता लगे..!!

कुछ ही देर में, प्रणव दादा और संध्या माँ हमारे साथ, साहित्य-संगीत के ज्ञान आदान-प्रदान में, ऐसे खिल उठे कि, मुझे लगा इतने ज्ञानी मेहमान से मिले बिना अगर मैं यूँ ही चला जाता तो,आज मेरा बहुत नुकसान होने वाला था..!!

दोनों साहित्य-संगीत प्रेमी दम्पति को,पुराने नाटक,फिल्में और सभी बड़े मुर्धन्य साहित्य रचना कारों के उपन्यास, देशी-विदेशी प्रेम कथाएं सब कुछ ज़ुबानी याद था और  इन सारी रचनाओं की तात्विक और बौद्धिक चर्चा भी बहुत सरलता से कर लेते थे..!!

प्रणव दादा और संध्या माँ को, मैं बस सुनता रहा-सुनता रहा, आज मानो मेरे सामने ज्ञान की गंगोत्री स्वयं बह रही थी और पावन होने के लिए, मुझे उस में डुबकी लगाने भर की देर थीं..!!

आखिर में, उन्हों ने मेरे मित्र के आग्रह पर, पुरानी फिल्म `ताजमहल`का वह मशहूर गीत,"जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा" अपने मधुर ड्यूयेट स्वर में गाकर सुनाया तब उनका एक दूजे के लिए प्यार देख कर, मेरे रोंगटे खड़े हो गए..!!

जब मैंने वहाँ से विदा ली, तब तक मैं प्रणव दादा और संध्या माँ के साथ किसी पूर्वजन्मका जुड़ाव महसूस कर रहा था, शायद वो भी..!!

प्रणव दादा और संध्या माँ से मुलाकात हुए चार दिन ही बीते होंगे कि, मुझे अधिक हैरानी हुई, जब पोस्ट में मुझे एक बड़ा सा पैकेट मिला..!! मैंने उसे खोल कर देखा तो,उसमें प्रणव दादा ने, संध्या माँ  को लिखे हुए ढेर सारे प्रेमपत्र थे और साथ में, संध्या माँ का, मेरे नाम लिखा हुआ एक पत्र भी था..!!

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" आत्मिय श्री मार्कण्ड दवेजी, आपके साथ उस दिन की मुलाकात अत्यंत आनंददायक और रोचक रही । इसी मुलाकात के दौरान आपने कहा था कि, आप अपने नये आलेख, `OLD प्रेमपत्र, GOLD नशा ।` के लिए, पुराने ज़माने के प्रेमपत्र की शैली के बारे में अध्ययन करना चाहते हैं, पर कोई भी बुझुर्ग आपको अपने निजी प्रेम पत्र देने को राजी नहीं हैं, उल्टा इस बात पर मज़ाकिया अंदाज़ में हँस देते है..!! पर,  मैंने आपके भीतर के साहित्यप्रेमी जीव को पहचान लिया है और इसी लिए आपके प्रणव दादा ने, शादी के बाद इतने सालों तक, मुझे  लिखे हुए सारे प्रेमपत्र आपको भेज रही हूँ, इस आशा के साथ कि, ये आप के कुछ काम आ जाएं?

हाँ, प्रणव दादा की भी इस में सम्मति है, एक विनती ज़रूर है, हम उम्र के ऐसे मोड़ पर हैं  कि, किसी भी वक़्त हम दोनों में से, कोई एक हरि धाम में चला जायेगा और सिर्फ ये अमूल्य यादें ही बाकी रह जायेगी, फिर  आपको एक बार मिलने के लिए, हम दोनों बहुत उत्सुक हैं,  अतः आपका  आलेख पूर्ण होते ही, मेरे भेजे हुए प्रेम पत्रों के इस पैकेट के साथ, हमारी कुटिया में, अहमदावाद आयेंगे तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी ।

आपको,प्रणव और संध्या के ढेरों आशीर्वादसह ।"

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इस पत्र को पढ़कर मैं अत्यंत भावुक हो गया । किसी अनजान व्यक्ति के साथ पहली ही मुलाकात में,उस व्यक्ति द्वारा कही गई एक पंक्ति, "मैं पुराने प्रेम पत्र की शैली पर आलेख लिखना चाहता हूँ ।" को अपने मन में धर कर, ऐसी अपरिचित  व्यक्ति पर, अपने निजी प्रेमपत्र  सौंपने जैसा, इतना बड़ा भरोसा? 

चलो माना कि, मेरा परिचय उन्हों ने शायद अनमोल मान लिया हो..!! तब भी, उनकी ढ़लती अवस्था की अनमोल याद  समान, अमूल्य प्रेम पत्र मुझे सौंप कर, कोई अपने जीवन में मुझे झांकने क्यूँ देगा भला?

हालाँकि, प्रणव दादा और संध्या माँ के प्यार से भेजे हुए, पुराने प्रेम पत्रों के खज़ाने से मेरा आलेख,`OLD प्रेम पत्र, GOLD नशा ।` सरलता से पूर्ण हो गया ।

अच्छे शिष्टाचार और मानवता के तकाज़े को ध्यान में रखते हुए मुझे लगा कि, इस प्यारे से दम्पति को, उनके प्रेम पत्र का यह पैकेट वापस पोस्ट करने की बजाय मुझे, रूबरू जा कर, उनके हाथों में सौंपना चाहिए । ऐसा करना मेरी ज़िम्मेदारी और कर्तव्य दोनों बनता था ।    

आज निकल रहा हूँ, कल निकलूँगा, करते-करते उस बात को पूरा एक माह बीत गया । इस बीच, उनसे मैं ना कोई संपर्क कर सका, ना उनके यहाँ जा पाया..!! पर, आज तो मन में निश्चय करके मैं निकल आया तो यहाँ आ कर मुझे यह आघातजनक समाचार मिला?

अपने आपको, मन ही मन,कोसते हुए, मैं गुन्हाहित भाव अनुभव करने लगा..!! मेरा आलेख पूर्ण होते ही तुरंत, अगर मैं यहाँ आ जाता तो कम से कम, संध्या माँ को आख़रि बार मिल पाता, पर अचानक ये क्या हो गया?

मेरे विचार प्रवाह में अचानक विक्षेप पड़ा,वही बहन जी ने आकर, सवाल किया," भाई साहब,आप प्रणव दादा से मिले या नहीं?"

विचारतंद्रा से निकल कर, जवाब में ना कहते हुए, मैंने मेरा सिर दाईँ-बाईँ ओर हिलाया..!! अचानक सामने से प्रणव दादा आते हुए दिखे ।

प्रणव दादा को आते देख कर, बहनजी बोलीं, " दादा, ये भाई सा`ब, आप को मिलने के लिये कब से यहाँ राह देख रहे हैं..!!"   

मुझे दूर से देख कर, म्लान से चेहरे के साथ, प्रणव दादा ने कहा," अरे..!! आप यहाँ..!! आप को किसने ख़बर दी..!!"

मैंने सोचा, शायद प्रणव दादा को लगा होगा कि,संध्या माँ के देहांत के समाचार पाते ही, मैं  उन्हें आश्वासन देने चला आया था..!!

हालाँकि, यहाँ के हालात देख कर मैं ने भी, थोड़ा झूठ का सहारा लेते हुए, उत्तर दिया," मैं अहमदाबाद किसी काम से आया था, सोचा आप से मिलता चलूँ? दादा, ये सब क्या, कैसे हो गया?"

मेरा सवाल सुन कर, प्रणव दादा मेरे पास बैठे, फिर बिलकुल उदास और दुःखी स्वर में संध्या माँ के निधन के हालात का बौरा मुझे देने लगे । संध्या माँ का अचानक ब्लडप्रेशर बढ़ जाने की वजह से, उनको ब्रैन हैमरेज हुआ था और इससे पहले की डॉक्टर आते, उन्होंने प्रणव दादा की गोद में ही, अपना सिर रखकर प्राण त्याग दिए थे..!!

मुझे लगा, प्रणव दादा, बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाले हुए थे और अपना दर्द भी सब से छिपा रहे थे । संध्या माँ के अचानक चले जाने से, प्रणव दादा  खुद भी शायद जीने की इच्छा गँवा चुके थे? मेरे साथ पहली ही मुलाकात में, प्रणव दादा के भीतर आनंद से भरपूर जीवन तत्व का, मैंने जो अहसास किया था, उसका रात ही रात में, अभाव अब साफ़ दिख रहा था?

दोस्तों, मैं सच कहता हूँ, मेरे जीवन में, ऐसा धर्म संकट पहले कभी  पैदा न हुआ था..!! इस वक़्त मैं ये समझ नहीं पा रहा था कि, संध्या माँ के भेजे हुए उनके प्रेम पत्र,ऐसे हालात में  प्रणव दादा को, मैं वापस  करूँ या ना करूँ? इस प्रेम पत्र को देख कर, कहीं  संध्या माँ की याद आने के कारण, प्रणव दादा और दुःखी  हो  गये तो? ये समय और हालात भी सही थे क्या?  मुझे महसूस हुआ, " मैंने अगर, उनके प्रेम पत्र वापस  करने की, मूर्खता आज कि तो निश्चित ही, अपने आप को मैं कभी माफ़ न कर पाउँगा?"

प्रणव दादा द्वारा किए गए, भोजन के आग्रह को नम्रतापूर्वक  टाल कर, मैं वापस जाने के लिए खड़े हुआ और उनसे इजाज़त माँगी, तब सहसा प्रणव दादा का सारा संयम एकाएक चूर-चूर हो गया और प्रणव दादा मेरे कंधे पर सिर रख कर,  फूट-फूट कर रो पड़े ।

अचानक घटे इस घटनाक्रम से,मेरे पाँव वही स्थिर हो गए । दादा के बेतहाशा  रोने की आवाज़ सुनकर, सभी रिश्तेदार दीवान खाने में दौड़ आए और उनको आश्वासन देने लगे ।

मगर, अपनी प्राण से भी अधिक प्यारी अर्धांगिनी `बदरी` प्रणव दादा जैसे `सेहरा` को आखिरी बार स्नेह-तृप्त कर के, अनराधार बरसती हुए, अनंत आकाश में बिखर गई थीं..!! शायद इसी लिए, प्रणव दादा के दिल और चेहरे से अचानक स्वस्थता का मुखौटा अपने आप उतर गया था..!!

थोड़ी देर बाद, ज़रा सी स्वस्थता पाते ही, प्रणव दादा ने मुझ से सवाल किया," आप यहाँ, मेरा और संध्या का धन्यवाद करने आयें थे ना? मेरी सहमति से ही, उसने आपको वह प्रेम पत्र भेजे थे..!!"

मुझे लगा की, उनके प्रेम पत्र अगर मैंने अब भी वापस न किए, तो भी मैं मूर्ख कहलाउँगा..!! इस लिए, धीरे से संध्या माँ के प्रेम पत्र का पैकेट मैंने, प्रणव दादा के हाथ में रख दिया, पर ऐसा करते समय, अति भावुक होने की वजह से, अब रोने की बारी मेरी थी, मैं अपनी भावनाओं पर काबू न पा सका और मेरी आँख से आँसू बहने लगे..!!

मेरे लिए अब यहाँ ज्यादा देर रूकना संभव न था । मैंने प्रणव दादा और अन्य सभी उपस्थित रिश्तेदारों से हाथ जोड़े और पीठ घूमा कर मैं दरवाज़े की ओर बढ़ गया ।

पिछे मुड़ कर देखने की मेरी हिम्मत जवाब दे चुकी थी, फिर भी बंगले के मेईन गेट के पास पहुँचते ही मैंने पिछे मुड़ कर देखा तो, प्रणव दादा अभी तक दरवाज़े के बीच खड़े हो कर मेरे मुड़ ने का इंतज़ार कर रहे थे..!!  मैंने अपना हाथ उपर किया, हमारी नज़र कुछ पल के लिए, जब एक हुई तब उनकी नज़र में, मैनें विनती के अत्यंत करूण भाव उभरते देखे..!! मानो मुझ से, वह अपने मन की कोई बात एकांत में कहना चाहते हो और वापस जल्द ही मिलने के लिए, मुझ से मानो प्रार्थना कर रहे हो..!!

मेरे प्यारे साहित्य प्रेमी दोस्तों, वैसे तो कहानी यहाँ ख़तम हो  जानी चाहिए, मगर मेरे मुंबई वापस लौटते ही, इस दर्दनाक कहानी का एक और दुर्भाग्यपूर्ण, दुखद हिस्सा मेरे लिए इंतज़ार कर रहा था?

मुंबई आकर  इस दुःख को भुलाने के लिए, मैंने  अपने आप को, रोज़ के कामों में, अत्यंत व्यस्ततापूर्वक उलझा लिया पर,  मेरी अहमदाबाद की दुखद मुलाकात के पाँचवें दिन ही, मुंबई में प्रणव दादा और संध्या माँ  से, परिचय कराने वाले, मुंबई के मेरे मित्र का फोन आया और उन्होंने   बताया कि, मेरे द्वारा वापस किए गए, संध्या माँ के  प्रेम पत्र का पैकेट ले कर तुरंत, प्रणव दादा अपने बेडरूम में चले गये थे और संध्या माँ की यादों में खो कर, बिना कुछ खाए-पिए-सोये,  अवाक स्थिति में, अपने आप को उन्होंने पूरे ३६ घंटे तक बेडरूम में बंद कर लिया था..!!

प्रणव दादा की ऐसी हालत देख कर, संध्या माँ की स्मृति से उन्हें जल्दी मुक्त कराने के शुभाशय से, उनके बड़े लड़के की पत्नी ने चूपके से उन प्रेम पत्र को फाड़ कर, बंगले के बाहर डस्टबीन में फेंक दिए..!!

यह बात जब प्रणव दादा को पता चली तो, वह अपने लड़के और घर की बहु पर बहुत गुस्सा हुए और फिर बंगले के कम्पाउन्ड में पड़ा डस्टबीन उठा कर, अपनी प्यारी पत्नी की आखिरी याद समान फटे हुए प्रेम पत्र के टुकड़े एकत्रित करते-करते हृदय रोग के ज़ोरदार हमले से, वहीं पर ढेर हो गए..!! इससे पहले की कोई उनकी मदद के लिए आता, पलक झपकते ही, वह भी अपनी प्यारी, नाज़ुक, मुलायम `बदरी` संध्या माँ को मिलने आकाश गमन कर गए..!!

बंगले के कम्पाउन्ड में, घर के सारे सदस्य गभराकर, दौड़ते चले आये, मगर आते ही सब ने देखा, प्रणव दादा के हाथ में, संध्या माँ वाले प्रेम पत्र के कुछ अवशेष जकड़े हुए थे और प्रणव दादा भी, संध्या माँ से मिलने चल दिए थे..!!

मेरे मित्र द्वारा, यह आधातजनक समाचार सुनकर, कुछ देर तक मैं सन्न रह गया," हे ईश्वर, ये कैसी मौत? इसे मैं आधातजनक कहूँ  या अलौकिक मौत कहूँ?"

मेरी आँखें तो शुष्क थीं पर, दिल भीषण रो रहा था," दादा, आपने ये क्या किया? उन सारे प्रेम पत्र फाड़े जाने की  घटना को अपने दिल पर ले कर, क्या आप इतना गुस्सा हो गए कि आप को दिल का दौरा पड़ गया? अगर आपको प्रेम पत्र की सारी कोपीयाँ चाहिए थीं तो मुझे कहना था, मेरे पा...स...!!" बस, इसके आगे मैं न सोच पाया, वर्ना..!!

वर्ना, मैं प्रणव दादा से और भी कुछ कहना चाहता था कि, आपकी अनुमति माँगें  बग़ैर ही, संध्या माँ के उन सारे प्रेम पत्र की फोटो-कॉपी निकलवाने जैसा, मानवता विहीन, अधम कृत्य करने की, मैंने निंदनीय चेष्टा की थी ।

मगर, अब तो बहुत देर हो चुकी थी, उन सारे प्रेम पत्रों की फोटो-कॉपी से प्रणव दादा के प्राण बचाने की बात तो दूर, मेरे इस अधम, निंदनीय कृत्य के बदले, उनसे माफ़ी मांगने का मौका तक, मैं खो चुका था ।

अब मैं क्या करूँ? ये सोच कर, मेरे मन में भारी पीड़ा होने लगी ।

देव लोक निवासी संध्या माँ और प्रणव दादा ने,  मेरे सम्मुख गाया हुआ, `ताजमहल` फिल्म का वह गीत,"रोके ज़माना चाहे  रोके खुदाई तुम को आना पड़ेगा,जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा ।" मुझे रह-रह कर याद आ रहा था ।

दोस्तों, मेरे  माता-पिता तो आज से दस साल पहले ही चल बसे थे । पर आज तो, शायद पहले से भी ज्यादा दुःख का अनुभव करते हुए,  संध्या माँ-प्रणव दादा ले चले जाने से, मुझे ऐसा लगा मानो, आज मैं फिर एक बार अनाथ हो गया हूँ..!!

पवित्र दांपत्य और असीम प्रेम की मूर्ति जैसे,इस  दम्पति को श्रद्धांजलि देने हेतु रचा गया, यह आलेख पढ़ते समय अगर आप को मेरे शब्द बौने लगे या,  इसमें कोई ख़ामी दिखे तो समझना,  इस में, माँ सरस्वती की ग़लती नहीं, पर  मेरी अल्प मति की ख़ामी है ।

आज आप भी, मेरी तरह, एक बात के लिए, अपने मन में गांठ बाँध लीजिए..!!

किसी भी इन्सान को मिलने का वायदा करने के पश्चात, उनसे  मिलने में, कभी देर न करनी चाहिए, वर्ना  कभीकभार उनको श्रद्धांजलि देने के लिए, शब्द भी आपका साथ छोड़ देंगे..!!

(नोट- सेहरा में खिल उठा है एक फूल पार्ट-१-२. दोनों, शत प्रति शत काल्पनिक है ।)  
मार्कण्ड दवे । दिनांक- २०-०६-२०११.

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