मैं खुद में हूँ बेहोश
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मैं खुद में हूँ बेहोश ,खुद चलता जाता हूँ
ज़माने का न दोष ,खुद बदलता जाता हू
मंजिल मेरा रास्ता ताके,मैं ऐसा हाजी हूँ
उलझे धागे के जैसा ,मैं सुलझाता जाता हूँ
जब भी महफ़िल में होती है ख़ामोशी
मैं मदहोशी में गीत सुहाने रचता जाता हूँ
हर दिन डूबा हूँ सूरज सा मैं ऐसा राही हूँ
जब भी डूबा कहीं सवेरा करता जाता हूँ
सूरा अनंत एहसासों का रखता हूँ अधरों पर
क्षुदा जगत की बेमानी,मैं इसे चखता जाता हूँ
ख़्वाबों के कब्रगाह में ,कितने राज़ है दफ़न किये
पर किसी के आँखों में हरदम, मैं पलता जाता हूँ
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आप लिखिए दिव्या जी ....और लिखते रहिये
आपकी लेखनी और टिपण्णी दोनों सार्थक होंगी ......मंथन करेंगी और सबको उनके अस्तित्व का बोध कराएंगी ...
राह में अकेला नहीं है तू शायर
ख्वाब तेरे साथ हैं
फजूल है फिक्र राही
रब का तुझ पे हाथ है
कोशिशें नहीं थामनी चाहिए
दिए को जलाने की
तूफ़ान भी आया तो क्या
दिल का घरौंदा
ही तेरा कायनात है
रौशन कर ले उसे
वक़्त का क्या तकाज़ा
बस कुछ लम्हे हैं
रूहानी और बस
उन्ही की बात है
कारवां को छोर न नहीं कभी
खुदा खुद तेरे इस सफ़र में
तेरे साथ है
हर शक्स है दीवाना
हर शक्स तुझ सा ही है
तू है अलग क्योंकि
तेरे पाक ज़ज्बात हैं
उनको कहते जा
सादगी न छोड़ना
ये हार न है जीत
ना ही शह नहीं मात है
कारवां को छोर न नहीं कभी
खुदा खुद तेरे सफ़र में
तेरे साथ है ...
खुदा खुद तेरे इस सफ़र में
तेरे साथ है ...
apoorv bhavabhivyakti.
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