24.7.11

हिन्दी की ऐसी तैसी पर, इंगिल्श तगड़ी हो जाती है


एक दौर था, गांव-गांव में खूब जमती थीं चौपाल
मिल जुलकर सब बैठा करते और बांटते अपना हाल
हम किस्मत के मारे देखो, शहर भाग कर आ गए
दो पैसे की खातिर खुद ही अपनी संस्कृति खा गए
लेकिन खुश हूं फेसबुक पर सजी नयी चौपाल है
खुब जमेगी अब हम सबमें, ऐसा मेरा ख्याल है
पर दुश्वारी एक यहां कि, भाषा लगड़ी हो जाती है
हिन्दी की ऐसी तैसी पर, इंगिल्श तगड़ी हो जाती है
फ्रैण्ड बनो, और चैट करो, तौबा धंधे-काम से
एक बार बस आ तो जाओ, सब जानेंगे नाम से
लेकिन एक निवेदन बन्धु, प्रीतम करता है कर जोड़
इस चौपाल पर आ गए तो, कभी न जाना हमको छोड़।
कुंवर प्रीतम

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