मित्रों,सचिन तेंदुलकर यानि छोटे कद वाला क्रिकेट का सबसे बड़ा खिलाडी.सचिन तेंदुलकर रिकार्डों के एवेरेस्ट पर चढ़कर भी रेस्ट लेने को तैयार नहीं हैं.निस्संदेह क्रिकेट की दुनिया में सचिन की उपलब्धियां बेमिसाल हैं लेकिन सचिन ने देश को रिकार्डों के अलावा ऐसा क्या दिया है कि वे भारत के सर्वोच्च सम्मान के हक़दार हो गए?भारत के सामाजिक क्षेत्र में उनका क्या योगदान है?क्या सचिन अभावों के बीच से उभरे हैं?अगर नहीं तो फिर क्यों भारत की सबसे निकम्मी केंद्र सरकार उन्हें भारत रत्न घोषित करने के लिए बेताब हुई जा रही है?
मित्रों,प्रश्न और भी हो सकते हैं और हैं भी?जैसे भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी क्यों है और अगर हॉकी को ही उसकी तमाम दुर्दशाओं के बाबजूद भी राष्ट्रीय खेल होना चाहिए तो तमाम अभावों के बाद भी दुनिया भर में भारतीय हॉकी का परचम लहराने वाले हॉकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद को उनके जीवित रहते या घुट-घुट कर मरने के ३ दशक से भी ज्यादा समय बीत जाने बाद भी भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया?क्या भारत का माथा परतंत्रावस्था में ऊंचा करनेवाले भारतीय सेना के ब्राह्मण रेजिमेंट में बहुत छोटे पद पर (सूबेदार) रहे ध्यानचंद का भारत रत्न पाने का सबसे पहला अधिकार नहीं बनता है?
मित्रों,इस सन्दर्भ में मुझे एक प्रसंग महाभारत से याद आ रहा है.एक बार महाभारत के युद्ध में अर्जुन-कर्ण के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था.अर्जुन ने वाण चलाकर कर्ण के रथ को कई योजन पीछे धकेल दिया.जवाब में कर्ण ने भी वाण चलाया और अर्जुन के रथ को कुछेक अंगुल पीछे कर दिया.ऐसा होते ही पार्थसारथी श्रीकृष्ण के मुख से शाबासी के शब्द फूट पड़े.देखकर अर्जुन को आश्चर्य हुआ कि जब मैंने कर्ण के रथ को कई योजन पीछे कर दिया तब तो देवकीनंदन चुपचाप रहे और कर्ण ने उसके रथ को कुछेक अंगुल पीछे क्या खिसका दिया वे वाह-वाह किए जा रहे हैं.अर्जुन के पूछने पर मधुसूदन ने कारन स्पष्ट किया कि हे पार्थ मैं तो तीनों लोकों का भार लेकर तुम्हारे रथ पर आरुढ़ हूँ हीं अतुलित बल के स्वामी हनुमान भी तुम्हारे रथ की ध्वजा पर विराजमान हैं.फिर भी कर्ण ने रथ को कुछेक अंगुल ही सही पीछे कर दिया;इसलिए प्रशंसा का पात्र तो वही हुआ न!
मित्रों,ठीक यही बात दद्दा और सचिन पर लागू होती है.दद्दा गुलाम भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.कई बार तो उन्हें और टीम के बाँकी खिलाडियों को खाली पांव भी खेलना पड़ता था.दद्दा के प्रति यह उपेक्षा-भाव आजाद भारत में भी बना रहा.वे हॉकी और हॉकी खिलाडियों की दुर्दशा से इतने आहत थे कि बेटे अशोक को उनसे छिपकर हॉकी खेलना पड़ता था.ऐसी कोई समस्या सचिन के साथ कभी नहीं रही.वे अच्छे खाते-पीते परिवार से तो थे ही आज उन पर धन की मूसलाधार बरसात हो रही है.दद्दा की तरह ही उड़नसिख मिल्खा सिंह,शिवनाथ सिंह,उड़नपरी पी.टी.उषा,महामल्ल सुशील कुमार,तीरंदाज लिम्बा राम,टेनिस खिलाडी साईना नेहवाल,मुक्केबाज निखिल कुमार,विजेंद्र सिंह,क्रिकेटर विनोद काम्बली,गोल्फर मुकेश कुमार जैसे अनेक ऐसे खिलाडी रहे हैं दुःख और अभाव ही जिनके जीवन की कथा रही.असली भारत रत्न तो वे हैं और उनका इस नाते भारत रत्न पर सचिन से कहीं ज्यादा,बहुत ज्यादा अधिकार बनता है.इसी तरह शतरंज में भारत के वन मैन आर्मी विश्वनाथन आनंद का हक़ भी इस सम्मान पर सचिन से कहीं ज्यादा बनता है.
मित्रों,आज अगर सचिन तेंदुलकर चाहें तो उनके पास इतना पैसा है कि वे कई दर्जन स्कूल,अस्पताल और अनाथालय बनवा और चलवा सकते हैं;लेकिन उन्होंने ऐसा किया क्या?बल्कि कई बार तो वे ऐसे कृत्या भी कर जाते हैं जो उनकी धनलोलुपता को ही जगजाहिर करता है.कभी वे विदेश से आयातित कार पर टैक्स चोरी का प्रयास करते हैं तो कभी आयकर में छूट प्राप्त करने की कोशिश करते हैं.आखिर जब वे सक्षम हैं तो फिर क्यों उनसे पूरा टैक्स नहीं लिया जाना चाहिए?इस बारे में भी एक प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत है.एक बार भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद का शरीर बीमार पड़ गया और उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ा.जब उनकी प्रसिद्धि से प्रभावित होकर डॉक्टर ने उनसे फीस लेने से मना कर दिया तो देशरत्न ने प्यारभरी नाराजगी दिखाते हुए डॉक्टर से कहा कि जो मरीज फ़ीस देने में सक्षम नहीं हों उनसे फ़ीस नहीं लीजिएगा परन्तु मुझ पर मेहरबानी नहीं करिए जबकि मैं पूरी तरह फ़ीस चुकाने की स्थिति में हूँ.
मित्रों,राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर जेल जाते ही अपना नाम और पता भूल जाने का स्वांग करनेवाले कलमाड़ी को आगे करके अरबों रूपये का घोटाला करनेवाली निकम्मी केंद्र सरकार को अचानक खिलाडियों का योगदान कैसे याद आ गया अंत में मैं उन परिस्थितियों पर विचार करना चाहूँगा.इस समय केंद्र सरकार चारों ओर से संकटों और आरोपों से घिरी हुई है और उसके समक्ष सफाई देने तक का कोई रास्ता नहीं बचा है.ऐसे में उसने जनता का ध्यान जनहित से जुड़े मुद्दों से भटकाने के लिए काफी सुविचारित तरीके से यह सचिन को भारत रत्न वाली चाल चली है.बड़े शातिर लोगों को हमने सत्ता सौंपी हैं.सावधान मित्रों,____ से सावधान.उम्मीद करता हूँ कि आप खुद ही रिक्त स्थान को भर लेंगे.
सराहनीय आलेख के लिए बहुत-बहुत धन्यबाद परन्तु हमारे देश मे कुछ एक दशको से अंधे बाँटे कुकूर खाए की दशा चल रही है जो सच बोले उसको दफन कर दो जो झूठ बोले उसकी जय-जय कार करो। समय की मांग या समय की बलिहारी ।
ReplyDeleteसमझ नहीं आ रहा की किन पंक्तियों से मैं आपका धन्यवाद करू. इन सभी विषयो पर सभी ने चर्चा की है परन्तु आपने इन्हें जिस प्रकार पेश किया है वो काबिले तारीफ है. बस इतना ही इसे पढ़ कर मेरे होश उड़ गए
ReplyDeleteआपकी बात एकदम सही है।
ReplyDeleteekdam sahi kaha ,,,, sachin se pahle dadda, pillai. aanand jaise khiladiyon ko bharat ratn dena chahiye.... na jane kitne hi mushkilon se paar pate huye dadda ne hackoey me bharteey jadu ka loha manwaya.. jinka loha hitler ne bhi mana.. jo ki najiyo ke alawa kisi ko shresth nahi samjhta tha.. jab wo jhuk jaaye to isse mahaan aur kya ho sakta hai.. sachin se bhi pahle mere kapil pa ji ate hain cricket me.. sunny ji bhi... lekin scahin ke peechey jane kyu.. azad aur netaji ko kabhi yad nahi kiya.. bhagat ji ko abhi bhi ugravadi me congress ginti hai.. khan abdul gaffar gandhi ko yad karna tha... sirf sachin hi kyu? jabki kumbaley ka yogdan bhi kam nahi.. jiske jabde se khun bah raha uske bawjood pari ke das vicket kisi bhi anya record par bhari padte hain.. mahila mukkebaz marricom ko to sabse pahle milna chahiye... jo abhi bhi itni mushkilo ke baawjood desh ko swarn pe swarn dila rahi hai... sachin hi kyu? dada , paji ya marrykom kyu nahi?
ReplyDeletewaise saina nehwal badminton player...
Aapki baat pehli baar mein padhne par tarksangat lagti hai , lekin jab ise dobara padhte hain to man mein sawal uthte hain.
ReplyDeleteSeedhi seedhi baat yeh hai ki is samay Niyam yeh kahte hain ki Khelon ke khshetra mein Bharat Ratn nahi diya ja sakta.
Sarkar yadi sachin (Ya ksis bhi doosre khiladi ko Bharat Ratn deti hai to use niyamon mein badlaav karna hoga).
Ab doosri baat yeh ki aapne is baat pe bada zor diya hai ki Sachin khate peete parivaar ke hain , isliye woh is samman ke kaqdaar nahi hain , kyonki unhone aabhaavon ko nahi jhela. Yadi is drishti se dekhein to aapne Saina Nehwaal ka bhi naam ginaya hai (Saath hi woh Badminton Khiladi hain naki tennis). Saath hi aisa bhi lagta hai ki aapke anusaar bharat ratn kewal gareebi se ubhre safal logon ko diya jana chahiye. Appne Vinod Kambli ka bhi naam liya hai , Ek baar fir sochke dekhiye kya Vinod Kambli ki tulna Sahi maynon mein sachin se ki ja sakti hai?
Aapka Lekh padhke laga jaise aap Sachin ke bahana System se apni narazgi vyakt karna chahate hain. Shayad ye Sachin ke saath nyaay nahi hai. Use Bharat Ratan Dena hai ya nahi ye abhi sirf "Breaking News" bhar hai. Abhi Dilli door hai.
Vishal