28.7.11

क्यों, आखिर मैं क्यों हूँ...

कौन हूँ मैं...
अभी कुछ दिनों पहले ही तो
ये सवाल आया था मेरी जिंदगी में
जवाब खोज पाता इससे पहले ही
एक नया सवाल आ खड़ा हुआ है
मेरे वजूद के आगे...
क्यों हूँ मैं???
हाँ... आखिर क्यों हूँ मैं
जरूरत क्या है मेरी इस धरती पर
किसे है, क्यों है
क्या हर बार हारने के लिए मैं हूँ
या फिर ग़मों का बोझ उठाने के लिए मैं हूँ
क्या हर कदम पर अपनी इक्षाओं की
अर्थी उठाने के लिए मैं हूँ
ये फिर अपनी हसरतों को खोने के लिए मैं हूँ
मैं क्यों हूँ... हाँ, मैं क्यों हूँ...
दुनिया की कटुता पाने के लिए मैं हूँ
या फिर रात अँधेरे आंसुएं बहाने के लिए मैं हूँ
अकेलेपन में जीते हुए मरने के लिए मैं हूँ
या सिर्फ दुनिया की भीड़ बढाने के लिए मैं हूँ
क्यों, आखिर मैं क्यों हूँ...
अपने सपनो को आँखों के भीतर ही ख़त्म करने को मैं हूँ
या रात भर जागते हुए मौत के सपने देखने को मैं हूँ
दिन रात खुशियों का इन्तजार भर करने को मैं हूँ
या फिर मैं सिर्फ न होने के लिए मैं हूँ...
क्यों हूँ मैं, आखिर क्यों हूँ मैं???

1 comment:

  1. abhishek ji bahut sundarta se apne man ke bhavon ko abhivyakt kiya hai aapne

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