कब तक भारत के सीने पर, दुश्मन मूंग दलेंगे यार,
कब तक वोटों की खातिर हम, अपनों को छलेंगे यार.......
जहरीले साँपों को अपने, हाथों दूध पिलायें कब तक,
26 /11 , लाल किला, आखिर हम भुलाएँ कब तक,
भगत सुभाष का लाल कहाते, हमको आये शर्म ना क्यूँ कर,
भय बिन प्रीत ना होत है, भूले आखिर मर्म हाँ क्यूँ कर,
कब तक दहशत की आग में, जीते हम जलेंगे यार,
कब तक दुश्मन की करनी पर, चुप चुप हाथ मलेंगे यार..........
कब तक दामाद सा पालेंगे, अजमल अफजल को आखिर,
देश पे अपने नजर गड़ाये हैं, लखवी और दाउद काफ़िर,
अहिंसक भी हिंसक हो सकते है, इनको ये समझाना होगा
अहिंसा की हिंसा खतरनाक है, इनको हमे बताना होगा,
एक के बदले में दस को, क्यूँ ना मार दिखाएँ यार,
हम क्यूँ नपुंसक हो गये हैं, जो ये वापिस आते हर बार,
जड़ों में इनकी जहर घोल दो, बबूल नही फलेंगे यार,
हम भारत के नौजवां, क्यूँ ना इनको मसलेंगे यार .........
bilkul sahi kaha aane :'(
ReplyDeletekya karen hum ...
शायद हमारी "आज़ादी" ही ढ़ंग की नहीं हैं :(
pata nahi kab tak?
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