इसी क्रम में आगे चलकर 26, मार्च 1931 को कराँची में पं0 जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन का आयेजन किया गया। इस सम्मेलन में देशभर से 700 प्रतिनिधियों ने भाग लिया परन्तु किसी कारणवश यह एक अखिल भारतीय छात्र संगठन का रूप धारण नहीं कर पाया।
ए0आई0एस0एफ0 की स्थापना की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। संयुक्त प्रांत (यूपी) के उस समय के गवर्नर सर मालकाम हैली उस समय के युवा छात्र संगठन के उभार को लेकर काफी फिक्रमंद थे। उनकी कोशिश थी कि छात्रों के असंतोष से बनने वाले किसी प्रभावी छात्र संगठन से पहले सरकार की ओर से कोई आधिकारिक ढ़ाचा खड़ा किया जाए। इसके मद्देनजर इलाहाबाद, बनारस, आगरा, अलीगढ़ और लखनऊ के छात्रों की एक बैठक लखनऊ विश्वविद्यालय के उप कुलपति द्वारा बुलाई गई। परन्तु यह कोशिश ब्रिटिश अधिकारियों को भारी पड़ी। राष्ट्रवादी छात्रों ने बैठक और उसकी कार्यवाही को अपने कब्जे में ले लिया। एम0 बदयँूद्दीन, पी0एन0 भार्गव, शफी नकवी, जमाल अहमद किदवई और जगदीश रस्तोगी सरीखे छात्रों ने ब्रिटिश साम्राज्य की मंशाओं को ध्वस्त कर दिया। इस बैठक में जार्ज वी0 पर एक शोक प्रस्ताव लाया गया जिसके विरोध में उपर्युक्त छात्र ब्रिटिश कम्युनिस्ट नेता एवं सांसद सापुरजी सकतवाला की मृत्यु पर एक शोक प्रस्ताव लेकर आ गए। परन्तु उपकुलपति ने शोक प्रस्ताव में सकतवाला के नाम जोड़े जाने का मुखर विरोध किया। छात्रों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की धमकी भी दी गई यहाँ तक कि तीन छात्रों को विश्वविद्यालय से निलंबित भी कर दिया गया। बावजूद इस घटनाक्रम के बैठक का 50 छात्रों ने बहिष्कार कर दिया। इसके बाद छात्र नेताओं ने निर्णय किया कि यदि फौरन एक अखिल भारतीय छात्र संगठन का निर्माण नहीं किया गया तो ब्रिटिश प्रशासन अपना कठपुतली छात्र संगठन खड़ा कर लेगा। परिणाम स्वरूप यू0पी0 विश्वविद्यालय छात्र फैडरेशन ने तुरन्त अपनी कार्यकारिणी की एक बैठक 23 जनवरी 1936 को बुलाकर निर्णय किया कि उन्हें तत्काल प्रभाव से एक अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन बुलाना चाहिए अन्यथा ब्रिटिश सरकार ऐसी पहल करके एक सरकारी छात्र संगठन खड़ा कर देगी। अन्ततोगत्वा अखिल भारतीय सम्मेलन बुलाने की तारीख 12-13 अगस्त 1936 तय की गई।
पी0 एन0 भार्गव की अध्यक्षता में प्रस्तावित सम्मेलन के लिए एक स्वागत समिति का गठन किया गया। इस स्वागत समिति की तर्ज पर यू0पी0 के सभी प्रमुख जिलो में भी तैयारी समितियों का गठन किया गया। इसके साथ ही देश के सभी छात्र संगठनो और कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सहित सभी राजनैतिक धड़ांे से संपर्क करने का काम विधिवत शुरू हुआ। सम्मेलन की घोषणा ने देश भर में उत्साह का संचार कर दिया और सभी छात्र नेता और संगठन उत्साह पूर्वक सम्मेलन की तैयारियों में लग गए। सम्मेलन में बेहद जनवादी तरीके से नेतृत्व का चुनाव हुआ। सम्मेलन की प्रतिनिधि फीस एक रूपया थी।ए0आई0एस0एफ0 का स्थापना सम्मेलन लखनऊ के सर गंगा राम मैमोरियल हाॅल में संपन्न हुआ। सम्मेलन में 936 प्रतिनिधियांे ने भाग लिया जिसमें 200 स्थानीय और शेष 11 प्रांतीय संगठनों के प्रतिनिधि थे। सम्मेलन में महात्मा गांधी, रवीन्द्र नाथ टैगोर, सर तेज बहादुर सप्रू और श्रीनिवास शास्त्री सरीखे गणमान्य व्यक्तियों के बधाई संदेश भी प्राप्त हुए। सभी विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधित्व के साथ यह विद्यार्थियों की सबसे बड़ी गोलबंदी थी।
स्वागत समिति के अध्यक्ष के तौर पर पी0एन0 भार्गव ने स्वागत भाषण दिया और पं0 जवाहर लाल नेहरू के भाषण से सम्मेलन का उद्घाटन हुआ। अपने उद्घाटन भाषण में जवाहर लाल नेहरू ने तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियांे का विश्लेषण करते हुए छात्रों से आजादी का परचम उठाने का आह्वान किया। इसके अलावा अपने अध्यक्षीय भाषण में जिन्ना ने भी इस बात की खुशी जाहिर की कि देश के अलग-अलग जाति और समुदाय के लोग आज यहाँ पर एक साझे मकसद के लिए एकत्र हुए हैं। आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने के अलावा कई सवालों पर सम्मेलन द्वारा प्रस्ताव भी पारित किए गए।
ए0आई0एस0एफ0 के इस स्थापना सम्मेलन में पी0एन0 भार्गव पहले महासचिव निर्वाचित हुए। इसी के साथ स्टूडेन्ट्स ट्रिब्यून भी ए0आई0एस0एफ0 का पहला आधिकारिक मुखपत्र बना। ए0आई0एस0एफ0 का गठन एक ऐसी ऐतिहासिक घटना थी जिसने पूरे छात्र समुदाय में एक जोश के साथ परिपक्वता का संचार किया। ए0आई0एस0एफ0 का दूसरा सम्मेलन महज तीन महीने के अन्तराल पर ही 22 नवम्बर 1936 को लाहौर में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में ए0आई0एस0एफ0 का संविधान तैयार करने पर सहमति हुई। शरत चन्द्र बोस की अध्यक्षता में हुए दूसरे सम्मेलन में 150 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। शरत चन्द्र बोस ने अपने अध्यक्षीय भाषण में छात्रों को रूसी क्रान्ति से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित किया। सम्मेलन ने स्पेन में नाजी जर्मन की अनुचित दखलंदाजी के खिलाफ भी एक प्रस्ताव पारित किया। देश भर में चल रहे छात्र आंदोलनों के आधार पर ए0आई0एस0एफ0 ने छात्रांे का एक माँगपत्र भी लाहौर सम्मेलन में तैयार किया।
लाहौर सम्मेलन में एक ओर उल्लेखनीय घटना घटी। यहाँ पर कुछ मुस्लिम छात्रों द्वारा 1936 के अन्त में लखनऊ में एक आल इंडिया मुस्लिम छात्र सम्मेलन आयोजित किए जाने से संबंधित प्रस्ताव लाने की कोशिश की गई। परन्तु उन्हें मुस्लिम छात्रों का ही भारी विरोध झेलना पड़ा और उनकी योजना धराशायी हो गई। प्रतिनिधिया ने इस अलग संगठन के विचार के खिलाफ एक जनसभा का आयोजन किया। इस जनसभा में अलग मुस्लिम छात्र संगठन के विचार का भारी विरोध हुआ। यहाँ तक कि अली सरदार जाफरी इस विचार के विरोध में एक प्रस्ताव भी ले आए। इसके अलावा मौलाना अब्दुल कलाम आजाद और खान अब्दुल गफ्फार खान के संदेश भी सम्मेलन में पढ़े गए। जिसमें उन्होनें किसी भी मुस्लिम छात्र संगठन के विचार का विरोध करते हुए छात्रों से अधिक से अधिक संख्या में ए0आई0एस0एफ0 में शामिल होने का आह्वान किया। अलग मुस्लिम छात्र सम्मेलन के विचार को प्रतिपादित करने वाले इफि़्तख़ार हसन ने इसके पक्ष में कई तर्क दिए मगर उनकी बात को छात्रों ने एकदम खारिज कर दिया।
क्रमश:
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